मुंबई की परिधि में स्थित यह नेशनल पार्क पौधों और पशु जीवन से समृद्ध है। पक्षियों की 254 प्रजातियों, स्तनधारियों की 40 प्रजातियों, सरीसृपों और उभयचरों की 78 प्रजातियों, तितलियों की 150 प्रजातियों और 1,300 से अधिक पौधों की प्रजातियों वाला संजय गांधी नेशनल पार्क दुनिया भर से प्रकृतिवादियों, पक्षी प्रेमियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। पार्क के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि लगभग 103 वर्ग किमी में फैला यह जंगल एक हलचल भरे शहर के केंद्र में है। इस पार्क की समृद्ध जैवविविधता का श्रेय इसकी झीलों को जाता है, जिनका निर्माण 19 वीं शताब्दी में किया गया था। विहार (1860) और तुलसी (1868) के नाम से प्रसिद्ध ये झीलें कई मगरमच्छों और प्रवासी पक्षियों का आवास हैं। इन्हें मुंबई (तब बम्बई) शहर में पेयजल की आपूर्ति के लिए बनाया गया था और इसकी सुरक्षा के लिए इनके चारों ओर नेशनल पार्क बनाया गया था। यहां सख्ती के साथ पर्यावरण कानूनों का पालन किया जाता है। पार्क के निकास द्वार पर, पर्यटक जन धन वन सुवेनियर शॉप पर भी जा सकते हैं, जहां कॉफी-टेबल बुक, नक्शे, वन्यजीव सूचना पुस्तिका, मोनोग्राम वाली टोपी और जैकेट के साथ-साथ स्थानीय हस्तशिल्प के सामान जैसी चीज़ें मिलती हैं। इसी जंगल से उपलब्ध जैम, जेली, जूस और अन्य ऑर्गेनिक खाने की चीज़ें भी यहां मिलती हैं। पार्क में जाने वाले लोग बोटिंग, सफारी और यहां तक कि टॉय राइड जैसी एडवेंचर ऐक्टिविटीज़ भी कर सकते हैं। इस पार्क का एक मुख्य आकर्षण 2000 साल पुरानी बौद्ध रॉक-कट कन्हेरी गुफाओं की श्रंखला है, जिनकी संख्या लगभग 129 है। कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित दक्कन पठार, ईग्नियस रॉक मिट्टी की परतों के कारण भौगोलिक तौर पर काफ़ी समृद्ध है, और यही इस तरह की गुफाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार है। इन गुफाओं में आने से उन बौद्ध भिक्षुओं के बारे में जानकारी मिलती है जो इस क्षेत्र में गांव-गांव जाकर प्रचार करते थे और फिर मानसून की तेज़ बारिश में इन गुफाओं के अंदर शरण लेते थे। 'कान्हेरी' शब्द को संस्कृत शब्द 'कृष्णगिरि' से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है काले पहाड़। पर्यटक भगवान बुद्ध और बोधिसत्वों के अनोखे अवशेषों और प्रार्थना हॉल के स्तंभ वाले गलियारों को यहां देख हैं। यहां आकर पैदल, बस द्वारा या फिर साइकिल द्वारा भी 'कान्हेरी' गुफाओं तक पहुंचा जा सकता है।

अन्य आकर्षण