गणेशपुरी मंदिर

कभी यहां एक घना जंगल हुआ करता था और कुछ आदिवासी समुदाय यहां रहा करते थे। इस घने जंगल गणेशपुरी को आध्यात्मिक नेता नित्यानंद स्वामी ने आध्यात्मिक केंद्र में बदल दिया। इस जगह पर एक शिव मंदिर, कुछ प्राकृतिक गर्म पानी के झरने और कई अन्य मंदिर हैं। गर्म पानी के कुछ झरनों को सार्वजनिक इस्तेमाल के लिये खोल दिया गया है, उनके आस पास स्नानागार भी बनाये गये हैं। इसके जुड़वां शहर वज्रेश्वरी में वज्रेश्वरी मंदिर काफी महत्वपूर्ण है। यह देवी वज्रेश्वरी का मंदिर है, जिन्हें देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। पुर्तगालियों से वसई किले को वापस जीतने के बाद पेशवाओं ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। ज्वालामुखी विस्फोट से बने मंदाकिनी पहाड़ियों की तलहटी में यह स्थित है। इस क्षेत्र में कई खनिज युक्त झरने पाए जाते हैं। एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर विराजमान इस मंदिर तक पहुंचने के लिये लगभग 50 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

गणेशपुरी मंदिर

सिद्धिविनायक मंदिर

प्रभादेवी में स्थित श्री सिद्धिविनायक गणपति मंदिर, भगवान गणेश का मंदिर है। मुंबई में इसे बहुत ही पूजनीय माना जाता है। वर्ष 1801 में निर्मित, इस मंदिर में सभी संप्रदायों के लोग आते हैं। मंदिर में एक छोटा मंडपम (हॉल) है, जहां मुख्य मूर्ति को स्थापित किया गया है। बड़ी ही अनोखी वास्तुकला वाले इस गर्भगृह में लकड़ी के दरवाज़े लगाए गए हैं जिनमें अष्टविनायक यानी आठ रूपों वाले भगवान गणेश की तस्वीरें उकेरी गई हैं। एक अनोखी कलाकृति मानी जाने वाली यहां की मूर्ति को एकाश्म काले पत्थर से बनाया गया है। इस मूर्ति की सूंड को दाईं ओर रखा गया है जो कि आमतौर पर बाईं ओर रखे जाने के बिल्कुल विपरीत है। मूर्ति के चार हाथ हैं जिन्हें चतुर्भुज के नाम से जाना जाता है। ऊपरी दायें हाथ में कमल और ऊपरी बाएं हाथ में एक छोटी कुल्हाड़ी है। यहां मोदकों (एक भारतीय मिठाई) से भरा एक कटोरा और साथ में एक पवित्र माला भी देखी जा सकती है। मंदिर की ऊपरी मंजिलों में पुजारियों के आवासीय क्वार्टर बने हैं। वैसे तो मंदिर में पूरे सप्ताह ही भीड़ रहती है, लेकिन मंगलवार को भक्तों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। गणेश भगवान की मूर्ति के दोनों ओर देवी ऋद्धि और सिद्धि की एक-एक मूर्ति रखी गई है, जो पवित्रता, सफलता, धन और समृद्धि की प्रतीक हैं। 'सिद्धिविनायक' नाम का शाब्दिक अर्थ है इच्छाओं को पूरा करने वाले भगवान गणेश। यहां साथ में एक हनुमान मंदिर भी है। मंदिर को जाने वाली पतली गलियों में से एक को फूल गली कहा जाता है। यहां बड़ी संख्या में भगवान को चढ़ाई जाने वाली ची़जों जैसे फूलों की माला, तुलसी के पत्ते, नारियल और मिठाई की दुकानें हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर

हाजी अली मस्जिद

मुंबई की सबसे आकर्षक जगहों में से एक, हाजी अली के परिसर में मुस्लिम संत, पीर हाजी अली शाह बुखारी का मकबरा और एक मस्जिद है। फोटोग्राफरों में काफ़ी लोकप्रिय, यह स्मारक मुंबई के तटों से देखा जा सकता है और ये तट से करीब 500 गज दूर अरब सागर में एक द्वीप पर स्थित है। कहानियों की मानें तो जब संत पवित्र शहर मक्का की यात्रा कर रहे थे, जो वर्तमान में सऊदी अरब में है, तभी तीर्थ यात्रा के दौरान उनका निधन हो गया। उनका ताबूत अरब सागर में तैरता हुआ मुंबई के तट पर आ पहुंचा, जहां एक मस्जिद बनाई गई। इसकी संरचना में सफेद गुंबद और मीनारें हैं जो मुगल वास्तुकला की झलक देती हैं। यह एक प्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटन स्थल है जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों में काफ़ी लोकप्रिय है। मस्जिद के बगल में एक 85 फुट ऊंची संगमरमर से बनी मीनार है। मस्जिद और मीनार दोनों ही शुद्घ सफेद संगमरमर से बनी हैं जिन पर नक्काशी और गढ़ाई के साथ शीशे का काम भी किया गया है। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि जो कोई भी संत पीर हाजी अली शाह बुखारी से प्रार्थना करता है, वह कभी निराश नहीं होता। ये शांत और निर्मल स्मारक शहर के शोरगुल से दूर समुद्र के कोमल नीले पानी में तैरता हुआ सा लगता है। अक्सर दोपहर के समय यहां लाइव कव्वाली और सूफी संगीत का आयोजन होता है। गुरुवार और शुक्रवार दरगाह के खास दिन होते हैं और इन दिनों में यहां भक्तों की अधिक भीड़ होती है। यहां आने वाले लोग अक्सर इस संत से प्रार्थना करते हैं और अपनी दुआओं के सच होने की कामना करते हैं। उर्स (संत की पुण्यतिथि) और ईद (इस्लामिक धार्मिक त्योहार) जैसे विशेष धार्मिक अवसरों पर, इस स्मारक को खूबसूरती से सजाया जाता है और इस्लामी त्योहारों को मनाया जाता है।

हाजी अली मस्जिद

महालक्ष्मी मंदिर

महालक्ष्मी मंदिर, देवी लक्ष्मी, देवी महाकाली और देवी महासरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है। इनकी मूर्तियों को शानदार आभूषणों से सजाया गया है, जिसमें नाक की छल्लियां, मोती की माला और सोने की चूड़ियां शामिल हैं। यह सुंदर मंदिर अरब सागर के निकट ब्रेच कैंडी के एक सिरे पर स्थित है, जिसे अब भूलाभाई देसाई रोड कहा जाता है। यह एक फैशनेबल आवासीय शॉपिंग क्षेत्र है। शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक महालक्ष्मी मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला और जटिल डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर जाने वाला शानदार मुख्य द्वार न केवल तीर्थयात्रियों को, बल्कि फोटोग्राफर्स को भी समान रूप से आकर्षित करता है। यह मंदिर 16 वीं और 17 वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। मंदिर के बाहर लगे स्टाल देवी-देवताओं की पूजा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं बेचते हैं।

महालक्ष्मी मंदिर

बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ द माउंट चर्च

लगभग 100 वर्षीय प्राचीन रोमन कैथोलिक बेसिलिका अरब सागर के किनारे बांद्रा की एक पहाड़ी पर है। यह उन सभी धर्मों के भक्तों को आकर्षित करता है जो प्रार्थना और मदर मरियम से आशीर्वाद मांगने आते हैं। चर्च को वास्तुकला के नव-गोथिक शैली में बनाया गया है। श्वेत संगमरमर की सात सीढ़ियां दर्शकों की दृष्टि को अपने पुत्र ईसा मसीह को दाहिने हाथ में पकड़ी मदर मेरी की मूर्ति की ओर ले जाती हैं। लकड़ी की मूर्ति पर एक सफेद और सोने का आवरण है जो संगमरमर की सबसे ऊंची सीढ़ी तक जाता है। भित्ति चित्र मेरी के जीवन के दृश्यों को दर्शाती हैं। हालांकि वर्तमान चर्च की इमारत अपेक्षाकृत आधुनिक है, आवर लेडी की मूर्ति का इतिहास 16 वीं शताब्दी का है। मूर्ति को पुर्तगाल से वर्तमान स्थान पर जेसुइट पादरियों द्वारा लाया गया था, उन्होने यहां एक चर्च का निर्माण करवाया था। सितंबर में एक सप्ताह का त्योहार यहां मनाया जाता है। बांद्रा मेले के नाम से प्रसिद्ध इस मेले में हजारों भक्त आते हैं और सुसज्जित चर्च और उसके आस-पास होने वाली उत्सव की गतिविधियों में भाग लेते हैं। धार्मिक कलाकृतियां, क्यूरियोस, मोमबत्तियां और बेक्ड खाद्य पदार्थ बेचने वाले कई स्टाल भी यहां लगाये जाते हैं।

बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ द माउंट चर्च