ज़रदोज़ी

लखनऊ की यह विशेष कढ़ाई सदियों से चली आ रही है और इसे भौगोलिक संकेतक टैग ;जीआईद्ध के रूप में मान्यता दी गई है। लखनऊ ज़रदोज़ी का प्रमुख केंद्र है। इस कढ़ाई की विशेषता यह है कि यह चौक इलाक़े की प्रसिद्ध दुकानों तथा शहर के अन्य बाज़ारों में मिल सकती है। श्ज़रदोज़ीश् का फ़ारसी अर्थ होता है सोने की कढ़ाई।मूल प्रक्रियाए जिसे ष्कलाबातुनष् कहा जाता हैए इसमें असली सोने या चांदी में लिपटे रेशम के धागे का उपयोग किया जाता हैय बाद में धागे को अलग.अलग कपड़ों पर सिला जाता हैए और फिर सोने के धागोंए मोतियोंए छोटी मोतियोंए तारोंए मनकोंए सितारों आदि से सजाया जाता है। नवाबों के समय मेंए ज़रदोज़ी का उपयोग कशीदाकारी और दीवार पर लटकाने के लिए किया जाता है। यहां तक कि हाथियों और घोड़ों को ज़रदोज़ी से सजे भारी कपड़ों से ढका जाता था। उस ज़माने मेंए कढ़ाई के इस रूप को इसलिए बहुत विलासितापूर्ण माना जाता थाए क्योंकि यह केवल मखमलए साटन और रेशम जैसे भारी कपड़ों पर ही की जा सकती थी। इसलिएए केवल शाही लोग ही इसे ख़रीद सकते थे। इसे रईसी का प्रतीक माना जाता था। ज़रदोज़ी बनाने की प्रक्रिया में चार चरण होते हैं। आजकल यह प्रक्रिया एक हद तक मशीनी हो गयी हैए लेकिन इसका मूल सिद्धांत सदियों से वैसा ही है। सबसे पहलेए डिज़ाइन या आकृति को एक अनुरेखण शीट पर खींचा जाता हैए और इसके छिद्र लाइनों के साथ पंच किए होते हैं। पुराने दिनों मेंए यह आकृतियां बहुत जटिल और पेचीदा होती थींए जैसे बड़े फूल और पशुओं के बने हुए पैटर्न। आजए विनिर्माण प्रक्रिया को गति देने के लिएए ज्यादा लाइनें और सरल डिजाइनों को स्थान दिया जा रहा है। इसके बादए ट्रेसिंग ;अनुरेखणद्ध पेपर की एक शीट को कपड़े के ऊपर रखा जाता हैए और मिट्टी के तेल और रॉबिन ब्लू के घोल में डुबोए गए कपड़े के टुकड़े ट्रेसिंग ;अनुरेखणद्ध पेपर पर छापे जाते हैं ताकि डिज़ाइन को कपड़े में नीचे स्थानांतरित किया जा सके। डिजाइन के साथ कपड़े को एक लकड़ी या बांस के फ्रेम में रखा जाता हैए जिसे ष्अड्डाष् कहा जाता है। इस पर कपड़े को फैलाया जाता है ताकि कपड़े में एक समान तनाव रहे। फ्रेम के चारों ओर बैठकर कारीगर सिलाई शुरू करते हैं। अंतिम चरण में ष्एरीष्ए जो लकड़ी की छड़ी से जुड़ी एक कशीदाकारी सुई हैए का उपयोग कपड़े के ऊपर और नीचे धागों को पार करने के लिए किया जाता है। टांके में सलमा.सिताराए गिजाईए बिल्ला और कटोरी का इस्तेमाल किया जाता है।किसी उत्पाद को पूरा करने में कारीगर को एक से 10 दिनों का समय लगता हैए यह इस बात पर निर्भर करता है कि कितना काम करना है। काम जितना अधिक होगाए उसे पूरा करने में उतना ही समय लगेगा और वस्तु की कीमत भी उतनी ही अधिक होगी। हाल ही में ज़रदोज़ी की मांग में वृद्धि हुई हैय ज़रदोज़ी उत्पाद को सस्ता बनाने के लिएए कारीगरों ने अब सोने या चांदी के बजाय तांबे और सिंथेटिक तारों का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

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