नर्गिसी कोफ़्ता

गाढ़े ग्रेवी में पके बकरे के पिसे हुए गोश्तए या कीमा में लिपटे हुए उबले अंडेए कोफ्ते के लिए बिलकुल उपयुक्त हैंए जो अवधी व्यंजनों की स्वादिष्टता के लिए जाना जाता है। नर्गिसी कोफ़्ता फ़ारस का व्यंजन है। कोफ्ते को गोल आकार देने के लिए रसोइये अंडे को इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। ग्रेवी को टमाटर के भर्तेए ड्राई फ्रूट पेस्ट और प्याज का इस्तेमाल करके बनाया जाता है। पिसे हुए गोश्त या कीमे में मसालों को मिलाया जाता हैए इसलिए जब ग्रेवी और कोफ्ता एक साथ मिल जाते हैंए तो वे अद्भुत स्वाद देते हैं। इसे रमज़ान के दौरान विशेष रूप से पसंद किया जाता हैए लेकिन अन्य विशेष अवसरों पर भी इसे तैयार किया जाता है। मूल रूप से यह एक स्नैक हैए लेकिन इसे सादे चावलए पुलाव या बिरयानी के साथ भी खाया जा सकता है। नर्गिसी कोफ्ता भारत में उगाया जाने वाले एक शीतकालीन फूल नर्गिस से मिलता जुलता है। इस फूल का केंद्र पीला होता है जैसा कि इस पकवान में बीच में अंडे की ज़र्दी पीली होती है। जहां नर्गिसी कोफ़्ता आम तौर पर मांस से तैयार किया गया एक व्यंजन हैए वहीं इन दिनों लखनऊ के रेस्तरांओं में इसका शाकाहारी रूप भी लोकप्रिय हो रहा है। यह पिसी हुई सब्जियों में लिपटे उबले अंडे के लिए लोकप्रिय है।

नर्गिसी कोफ़्ता

पनीर गुलनार कबाब

पनीर गुलनार कबाब मांस कबाब का शाकाहारी रूप हैए इसका मुख्य घटक पनीर होता है। पकवान मेंए पनीर केक में खस डाला जाता हैए और एक गाढ़ेए सुगंधित चुकंदर के पेस्ट में मसालों को डालकर मसालेदार बनाया जाता है। सुंदर गुलाबी रंग का यह कबाब मलाईदार होता है। इसे शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर विशेष रूप से पसंद किया जाता है। अनार के दानोंए हरी मिर्च और मेथी के पत्तों से सुसज्जितए गुलनार कबाब एक भरवा स्नैक हैए जिसे कभी.कभी चपाती या चावल के साथ परोसा जाता है। कहा जाता है कि गुलनार कबाब की उत्पत्ति फ़ारस में हुई थीए और फिर इसकी रेसिपी एशियाई और मध्य पूर्वी देशों तक फैल गई। ऐसा कहा जाता है कि इस पकवान के मांसाहारी रूप को तैयार करने के लिएए मांस को छोटे.छोटे टुकड़ों में करने के लिए सैनिक अपनी तलवारों का उपयोग करते थे और उन्हें खुली आग पर ग्रिल करते थे।

पनीर गुलनार कबाब

पसंदा कबाब

पसंदा कबाब उर्दू शब्द श्पसंदेश् से लिया गया हैए जिसका अर्थ है पसंदीदाए क्योंकि इसको बनाने में चुने हुए मांस के बेहतरीन टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। यह मुगल बादशाहों को परोसा जाने वाला एक ख़ास व्यंजन था। इसे आमतौर पर करी के रूप में तैयार किया जाता हैए जिसमें मसालेदार चटनी में पकाए गए बकरे के गोश्त के मसालेदार बड़े.बड़े टुकड़े होते हैं। आजए कई रेस्तरां इसे कबाब के रूप में परोसते हैं। दो इंच चौकोर बोनलेस कबाब मटन की पतली परतों से बनाई जाती है जिसमें कच्चे पपीतेए सफेद मिर्च और अदरक लहसुन के पेस्ट मिलाये जाते हैं। इन कबाबों को कोयले की आग पर सींक से भूना जाता है। चाट मसाले के साथ खाने पर यह अद्भुत स्वाद देता है। इसकी तैयारी के दो मुख्य तरीके हैं. मटन के टुकड़ों को या तो भूना या पकाया जा सकता है। लखनऊ के अधिकांश रसोइये पकाना अधिक पसंद करते हैं।

पसंदा कबाब

शामी कबाब

नवाबों के शासन में शामी कबाब शहर के सबसे लोकप्रिय स्नैक्स में से एक था। शामी कबाब अपने नरम मांस और सुगंधित स्वाद के लिए जाना जाता है। मसालोंए कच्चे आम और बंगाली चने से भरे हुए गोल पैटीज़ कबाब को तवे पर हल्का तला जाता हैए जिससे यह बाहर से कुरकुरा और भीतर से नरम हो जाता है। कैरी या कच्चा आम इस पकवान का मुख्य घटक है। इन कबाबों को तैयार करने के लिएए बकरे के मांस को उबाला या तला जाता हैए और फिर चने के साथ पीसा जाता है। साबूत अदरकए लहसुनए प्याज़ए हरी मिर्चए हल्दीए लाल मिर्च पाउडर और पुदीना के कटे हुए पत्तों के साथ मसाले ;गरम मसालाए काली मिर्चए दालचीनीए लौंग और तेज़ पत्ताद्ध का मिश्रण मिलाया जाता है। कबाब को एक साथ बनाये रखने के लिएए कुछ व्यंजनों में अंडों का भी प्रयोग किया जाता है। शहर के अधिकांश रेस्तरांओं में शाकाहारी कबाब भी मिलता है।

शामी कबाब

लखनवी बिरयानी

लखनऊ की चौक और अमीनाबाद की गलियों मेंए बिरयानी की छोटी.बड़ी बहुत सी दुकानें है। लखनवी बिरयानी दूसरे सभी व्यंजनों में सबसे अधिक शानदार तरीके से तैयार किया हुआ पकवान है। कहा जाता है कि बिरयानी लखनऊ के नवाबों का पसंदीदा भोजन हुआ करता था। श्बिरयानीश् शब्द का अर्थ है श्तला हुआश्ए इसमें चावल को हल्का फ्राई किया जाता है और फिर इसे मटन के साथ मिलाकर पकाया जाता है। केसर और गुलाब जल इसकी खुशबू को बढ़ाते हैंए जबकि खाना पकाने की दम शैली से गोश्त में अद्वितीय स्वाद आ जाता है। स्वाद बढ़ाने के लिए काजू.पेस्टए केसरए दहीए चक्र फूल और जावित्री पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है। बिरियानी बनाने के लिए चावलों को नरम होने तक पानी में भिगोकर रखा जाता है। जब आप नवाबों के शहर में जाइए तो लखनवी बिरयानी का स्वाद अवश्य लीजिए।

लखनवी बिरयानी

पतीली कबाब

यह अनूठा कबाब मसालेदार होता है जिसे धीमी आग पर पकाया जाता है। खाना पकाने की दम शैली इसके स्वाद में इजाफ़ा करती है। अन्य कबाबों की तरहए पतीली कबाब को न तो भूना जाता है और न ही तला जाता है। उन्हें एक गोल.आकार के पीतल या तांबे के बर्तन में ठंडा किया जाता हैए जिसे श्पतीलीश् कहा जाता हैए इसी वजह से इसे पतीली कबाब कहा जाता है। इन कबाबों को टुकड़ों में नहीं काटा है बल्कि पूरा.पूरा कबाब एक साथ परोसा जाता है। चूंकि इन्हें पतीली में पकाया जाता हैए इसीलिए वे बेहद नरम हो जाते हैं और सभी मसालों तथा अन्य सामग्रियों का स्वाद इसमें बरक़रार रहता है। वे आमतौर पर नाश्ते या ऐसे ही खाए जा सकते हैंए लेकिन जब इसको रुमाली रोटी के साथ खाया जाता हैए तो यह भर पेट भोजन में बदल जाता है।

पतीली कबाब

बास्केट चाट

लखनऊ के बास्केट चाट में आलू टिक्की या पैटीए पका हुआ काला चनाए मीठी और मसालेदार चटनी और दही को सेव या तले हुए आलू से बनी कुरकुरी टोकरी में मिलाया जाता है। असली स्वाद पाने के लिए इसे लखनऊ की एक और खासियत पांच स्वादों वाले पानी बताशा ;पानी से भरे तले हुई और फूले हुए गोलगप्पेद्ध के साथ खाना चाहिए। शानदार स्नैकए टोकरी या श्टोकरीश् चाट लखनऊ शहर में उपलब्ध हैए जो सड़क पर खोमचे लगाने वाले विक्रेताओं और रेस्तराओं में बेचा जाता है। यह एक मसालेदारए स्ट्रीट फूड है जो कि अब पूरे देश में लोकप्रिय हो गया है। यहां तक कि शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर भी इसे परोसा जाता है। टोकरी चाट को एक कप गर्म चाय के साथ पेश लीजिए और लखनऊ की रंग में रंग जाइए।

बास्केट चाट

ज़ाफरानी खीर

सबसे अच्छे नवाबी व्यंजनों में से एकए ज़ाफरानी खीर किसी भी समय खाने के लिए एकदम सही है। यह दूधए उबले हुए चावलए इलायची और खुशबूदार केसर से बना हुआ मीठा डिज़र्ट है। इसे घी में तले हुए बादाम और कटे हुए काजू के साथ गार्निश किया जाता है। गार्निश खीर का एक अलग ही स्वाद आता है। यह व्यंजन सामान्य खीर का एक प्रकार है। देश भर में इसके कई रूप मिलते हैं। यह सबसे लोकप्रिय भारतीय स्वीट डिश है। इसका ज़ाफ़रानी रूप ज्यादातर शादियों और धार्मिक समारोहों जैसे विशेष अवसरों पर तैयार किया जाता है।

ज़ाफरानी खीर

टुंडे कबाब

गलौटी कबाब की एक वैराइटी मशहूर और प्रिय टुंडे कबाब मांसए दहीए अदरकए लौंग और नींबू सहित लगभग 160 सामग्रियों से तैयार की जाती है। टुंडे कबाब को रूमाली रोटी या कुरकुरे श्उल्टे तवे का पराठाश् के साथ परोसा जाता है। गलौटी कबाब के बादए लखनऊ का यह शायद सबसे पसंदीदा कबाब हैए जिसे भरपेट खाने के लिए लोगों की भीड़ खोमचे वालों और रेस्तराओं में समान रूप से जुटती है। कबाब का नाम इसके सिरजनहारए हाजी मुराद अली के नाम पर रखा गयाए जो एक हाथ वाला कबाब बनाने वाला टुंडा था। किंवदंती यह है कि एक बार जब हाजी अली छत पर चढ़ गलौटी कबाब को सुधारने पर काम कर रहे थे तो वे छत से गिर गए और अपना एक हाथ गंवा बैठे। लेकिन इससे पाककला में पारंगत होने का उनका उद्यम बंद न हुआ.उन्होंने मज़दूरों को काम पर रखा और उन्हें सिखाया कि कैसे मांस का इतना महीन पेस्ट बनाया जाए कि मुंह में रखते ही कबाब शीघ्र पिघल जाए। अन्य कबाबों की तुलना में उनके इस सृजन में एक रेशमी और मख़मली बुनावट थी। अवध के तत्कालीन नवाब वाजिदअली शाह को कबाब की इस किस्म से प्यार हो गया और उन्होंने इसे देश भर में प्रचारित कर दिया। 1905 से लखनऊ में गोल दरवाज़ा इलाके में अपने स्वादिष्ट कबाब बेचना शुरू करने वाले हाजी मुराद अलीए अपने पीछे अपनी यह ज़ायकेदार विरासत छोड़ गये।

टुंडे कबाब

गलावटी कबाब

वास्तव में मुंह में पिघल जाने वाली डिशए गलावटी कबाब या गलौटी कबाब को बारीक पिसे हुए गोश्त और कच्चे पपीते को मिलाकर तैयार किया जाता है। उसके बाद मसालों के मिश्रण के साथ उसे पकाया जाता है। अंडे का उपयोग मांस और अन्य सामग्रियों जैसे कुचले हुए अदरकए लहसुनए और तले हुए प्याज को एक साथ मिल जाने के लिए किया जाता है। इस मिश्रण को फिर एक तवे पर घी में पतलेए गोल पैटीज़ का आकार दिया जाता है और फिर इसे तेल में हल्का तला जाता है। पैटीज़ ;कबाबद्ध का बाहरी हिस्सा हल्का सोंधा ;सुनहराद्ध होने परए उन्हें बाहर निकाल लिया जाता है और कच्ची प्याज़ और नींबू के साथ परोसा जाता है।यह विशेष व्यंजन लखनऊ के नवाबए आसफ.उद.दौला के लिए विशेष रूप से उस समय बनाया गया था जब उनके मुंह में दांत नहीं थेय और वह चबा नहीं सकते थे। कबाब का यह विशेष रूप 16 वीं शताब्दी में उनके लिए बनाया गया था। इसमें मांस को बेहद बारीक काटा और पीसा जाता है और फिर स्वादिष्ट मसालों के साथ मिलाकर पकाने पर इसका स्वाद पहले निवाले से ही अद्भुत लगता है।वास्तव मेंए यह नवाब कबाब का इतना शौकीन था कि वह अपने मजदूरों को भी इसे चखने के लिए दे दिया करता था! कहा जाता है कि हर दिनए कुछ नई सामग्री मिलाकर उन्हें भर प्लेट कबाब परोस दिया जाता थाए और वे उस सामग्री का अनुमान लगाने की कोशिश करते थे। माना जाता है कि मोती पुलाव के आविष्कारकए हाजीमोहम्मदफ़ख्र.ए.आलम साहब थेए जिन्होंने 150 विदेशी मसालों का उपयोग करके पहली बार गलावटी कबाब बनाया था।

गलावटी कबाब