उत्तर प्रदेश की चहलपहल भरी राजधानी, कला, संस्कृति, भोजन व वास्तुकला के गुलदस्ते, लखनऊ के बहुरंगी अनुभवों में भव्यता की सौंधी-सौंधी खुशबू हमें मिलती है। स्वादिष्ट पाक कला व उत्कृष्ट ऐतिहासिक स्मारकों से लेकर इसकी समृद्ध कला व संस्कृति तथा औपनिवेशिक चमकदमक की निशानियों से सजा, नवाबों का यह शहर, आपका स्वागत उतनी ही शिद्दत से करता है जितनी शिद्दत यहां के लोगों की गर्मजोशी में होती है।

जैसे ही आप ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध और भव्य चारबाग़ रेलवे स्टेशन पर कदम रखते हैं, लखनऊ शहर के हर मोड़ पर उसकी खूबसूरती की पंखुड़ियां खुलती जाती हैं। पुराने लखनऊ की गलियों में, इतिहास पुराने किस्से गुनगुनाता है, जबकि नये इलाकों के चौड़े रास्तों में, शहर का महानगरीय दिल धड़कता है। लोकप्रिय बड़ा इमामबाड़ा के भव्य शेर दरवाज़ों से लेकर कांस्टैंटिनोपल गेट से प्रेरित रूमी दरवाज़ा के सुसज्जित ढांचे तक, शहर के विरासती स्मारक अपना तिलिस्म खोलते जाते हैं। एक ओर इसके स्मारक जहां चौंकाते हैं, वहीं दूसरी ओर शहर की चहलपहल और कारीगर गलियों में शहर की असली रूह मिलती है। इस ऊर्जाशील हलचल के पूरक के बतौर, मंदिरों, मस्जिदों व गिरिजाघरों की शान्ति भी मिलती है।एक पौराणिक कथा के अनुसार, शहर का नाम भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के नाम पर रखा गया था, जिनका यहां एक महल था। ऐतिहासिक रूप से, शहर शाही नवाबों का तख्त था, जिन्होंने इस इलाके पर सदियों तक राज किया। हालांकि, अधिकांश श्रेय नवाब असफ़ उद्-दौला को जाता है, जो वर्ष 1775 में अवध की राजधानी को फैज़ाबाद से गोमती नदी के किनारे ले आये जिसके चलते लखनऊ की तरक्की के बीज पड़े। शोहरत बढ़ते ही, नवाबों ने लखनऊ को आर्ट, कल्चर और मौसिक़ी का मरकज़ बना दिया। उन्होंने भारत की कुछ सबसे खूबसूरत इमारतें बनवायीं जिनके चलते कारीगर पनपे। शहर की खूबसूरत इमारतों का खाका बनाने वाले वास्तुकारों से, लेकर लज्‍़ज़तदार कबाब बनाने वाले खानसामों तक हर कोई, नवाबों के शासन के राज में खूब फला-फूला।औपनिवेशिक युग के दौरान, लखनऊ शहर एक रणनीतिक स्थान था। वर्ष 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई की अनेक घटनाओं का यह शहर चश्मदीद गवाह था, मसलन, लखनऊ की घेराबंदी और क्रांतिकारियों अशफाक़उल्लाह खान और राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा काकोरी रेल लूट को अंजाम देने की घटना। लखनऊ की समृद्ध विरासत अभी भी अपनी संस्कृति में जीवित है और बीते युग की एक झलक दिखाती है।