महाराष्ट्र का नांदेड़ शहर प्रगतिशील वर्तमान के साथ आध्यात्मिक और दार्शनिक प्राचीनता के सम्मिश्रण की एक सटीक मिसाल है। यहां आने वाले लोग इस शहर की बनावट में सिक्खों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की कृपा को सहज ही महसूस कर सकते हैं और इसीलिए यहां उनके अनुयायियों का समुंदर आ जुटता है जो इस अनुभव को पाने के लिए यहां आते हैं। इस जगह को देख कर कोई अचरज नहीं होता कि क्यों गुरु गोबिंद सिंह जी ने गोदावरी नदी के तट पर स्थित इस जगह को अपनी आखिरी संगत के लिए चुना था।नांदेड़ में ऐसे बहुत सारे गुरुद्वारे हैं जो श्रद्धालुओं को उस पवित्र वातावरण का अनुभव लेने के लिए आमंत्रित करते हैं जो स्वयं गुरु महाराज ने यहां अनुभव किए। कहा जाता है कि यही वह जगह है जहां पर सन 1708 में गुरु महाराज ने अपना शरीर त्यागने से पहले गुरु गद्दी श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सौंपी थी। कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह अगस्त, 1708 में बहादुर शाह के साथ नांदेड़ आए थे और बहादुर शाह गोलकुंडा को प्रस्थान कर गया जबकि गुरु गोबिंद सिंह ने नांदेड़ में ही रुकने का इरादा किया। कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह बहादुर शाह के साथ उसे इस बात के लिए राजी करने के लिए यात्रा कर रहे थे कि वह उनके पुत्रों समेत मारे गए बहुतेरे सिक्खों के लिए न्याय प्राप्त कर सकें, लेकिन बहादुर शाह ने नरमी दिखाने से इंकार कर दिया और यहां से इन दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए।नांदेड़ जहां बहुत से सूफी संतों की धरती भी है वहीं ऐतिहासिक दृष्टि से भी गोदावरी के किनारे बहुत सारे वैदिक अनुष्ठान हुए हैं। गोदावरी के कुछ महत्वपूर्ण घाटों में उर्वशी घाट, राम घाट और गोवर्धन घाट हैं। यहां के अन्य प्रमुख आकर्षणों में से एक विराट क्षेत्रपाल की मूर्ति भी है, जिसके बारे में मान्यता है  कि वह 50 फुट से भी लंबा था।

वर्तमान में नांदेड़ महाराष्ट्र का आठवां सबसे बड़ा शहर है। स्थानीय तौर पर इस क्षेत्र को मराठवाड़ा के नाम से जाना जाता है और नांदेड़ मराठवाड़ा में औरंगाबाद के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है। आधुनिक नांदेड़ के विष्णुपुरी स्थित प्रसिद्ध स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय बहुत सारे युवा विद्वानों के आकर्षण का केंद्र है।

सदियों से नांदेड़ ने किसी मूक दर्शक की तरह बहुत सारे साम्राज्यों और शासकों जैसे कि सतवाहन, चालुक्य, राष्ट्रकूट, ककातियों, यादवों, ब्राह्मणों, आदिलशाही और आखिर में मुगलों के प्रताप को बढ़ते-उतरते देखा है। नंदों ने तो यहां पर कई पीढ़ियों तक शासन किया।

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