औंधा नागनाथ

भगवान शिव को समर्पित यह ज्योतिर्लिंग इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि यह महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर माना गया है। कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण तेरहवीं सदी में यादवों के शासनकाल में करवाया गया था। स्थानीय मान्यता है कि मूल मंदिर असल में सात मंजिला था जो बाद में ध्वस्त हो गया। मंदिर का गर्भग्रह भूमि तल से नीचे है और भक्तों को शिवलिंग के दर्शनों के लिए पत्थर से बनी दो सीढ़ियां उतर कर जाना पड़ता है। यहां के स्थानीय लोग बड़े उत्साह से यह बात बताते हैं कि संत नामदेव भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आ चुके हैं। भगवान शिव के भक्त इस मंदिर में नियमित रूप से आया करते हैं।यह मंदिर हेमाड़पंती शैली की स्थापत्य कला का नमूना है जिसमें पत्थरों की बहुत सारी जटिल नक्काशी भी दिखाई देती है। पुराणों में इस जगह को दारुकावन कहा गया है। धार्मिक कारणों से इतर इस मंदिर की अद्भुत वास्तुकला को देखने के लिए भी यहां जरूर आना चाहिए।

औंधा नागनाथ

पराली वैजनाथ

देश भर में स्थित भगवान शिव को समर्पित लोकप्रिय ज्योतिर्लिंगों में से एक पराली वैजनाथ या पराली वैद्यनाथ के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। पत्थरों से बना यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर है और पारंपरिक औषधीय पौधों से घिरा हुआ है। यह मंदिर यहां आने वाले भक्तों को व्यक्तिगत रूप से प्रार्थना करने की अनुमति भी देता है। हर शिवरात्रि पर यहां 15 दिन तक चलने वाला मेला लगता है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर से एक दिलचस्प कथा भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि लंका नरेश रावण एक बार ज्योतिर्लिंग को लंका में ले जाना चाह रहा था लेकिन भगवान ऐसा होने नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने महर्षि नारद को रावण को रोकने के लिए भेजा। नारद मुनि ने अपनी चतुराई से रावण को ज्योतिर्लिंग नीचे गिराने पर राजी कर लिया। कहते हैं कि जहां-जहां उस ज्योतिर्लिंग के टुकड़े गिरे, वहां-वहां भगवान शिव के मंदिर बनाए गए।

पराली वैजनाथ

श्री क्षेत्र माहुर

माहुर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का हिस्सा है। सड़क मार्ग से यह नागपुर शहर से लगभग चार घंटे की दूरी पर है। यह एक गांव है और माना जाता है कि यह संत दत्तात्रेय का जन्म स्थान है और देवी रेणुका का निवास भी। यहां देवी रेणुका को समर्पित एक मंदिर भी है जिसके बारे में मान्यता है कि यह आठ सौ साल पुराना है। हर साल इस मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए इस मंदिर में नई पक्की सीढ़िया बनाई गई हैं। इस मंदिर में देवी को भोग के रूप में सुपारी चढ़ाई जाती है जो कि अपने-आप में अनोखी बात है। इस गांव में और भी बहुत सारे प्राचीन मंदिर हैं जिनमें श्री दत्तात्रेय मंदिर, देव देवेश्वरी मंदिर, अनुसूया मंदिर और सर्वतीर्थ प्रमुख हैं। अनुसूया मंदिर दत्तात्रेय की माता देवी अनुसूया को समर्पित है। यहां नजदीक ही रामगढ़ किले के अवशेष भी देखने योग्य हैं।

श्री क्षेत्र माहुर

सचखंड श्री हुजूर साहिब

इस गुरुद्वारे का निर्माण महान सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने उस स्थान पर करवाया था जहां पर गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी आखिरी सांस ली थी। मान्यता है कि यही वह जगह है जहां पर गुरुगद्दी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को सौंपी गई थी। गुरु गोबिंद सिंह जी को यह अहसास होने लगा था कि प्रत्येक इंसान, चाहे वह उनकी तरह ही क्यों न हो, वह नश्वर है, मगर श्री गुरु गं्रथ साहिब में जो विचार एकत्र किए गए हैं, वे कभी नहीं मिट सकते।पवित्र गं्रथ को गुरु का दर्जा देते समय गुरु गोबिंद सिंह जी ने नांदेड़ को ‘अबचल नगर’ यानी अविचल अर्थात कभी विचलित न होने वाला स्थान कहा था। ‘सचखंड’ का अर्थ है सत्य का क्षेत्र।यह नामकरण यहां पर ईश्वर के निवास को निरूपित करने के लिए था। सिक्ख धर्म में पांच पवित्र तख्तों या सिंहासनों को मान्यता दी गई है। यह गुरुद्वारा, जिसे तख्त साहिब भी कहा जाता है, उन पांचों में से सबसे अधिक पवित्र माना गया है।यह गोदावरी नदी के समीप स्थित है। चमकते सफेद संगमरमर के पत्थरों से बने इस गुरुद्वारे का गुंबद सोने से ढका हुआ है। इस परिसर में दो और पवित्र स्थान भी हैं। पहला है बंगा माई भागो जी जहां पर पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान हैं और दूसरा है अंगीठा भाई दया सिंह और धर्म सिंह (जो कि गुरु के पांच प्यारों में से दो थे)। यह परिसर दो मंजिला है और इसकी साज सज्जा अमृतसर के श्री हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर जैसी ही है। इसका आंतरिक कक्ष अंगीठा साहिब कहलाता है। इसकी दीवारों पर सोने की परतें चढ़ाई गई हैं। यहां पर गुरु गोबिंद सिंह जी की निशानियां संरक्षित करके रखी गई हैं जिनमें एक सुनहरा खंजर, एक तोड़ेदार बंदूक, लोहे की एक जड़ाऊं ढाल और पांच स्वर्ण तलवारें शामिल हैं। यह आंतरिक कक्ष संगमरमर से सुशोभित है जिन पर फूल-पत्तियों की सजावट की गई है। इसकी दीवारों और छतों पर प्लास्टर और टुकड़ियों से कारीगरी की गई है। दिन के समय श्री गुरु गं्रथ साहिब को इस आंतरिक कक्ष से बाहर वाले कक्ष में लाया जाता है और रात के समय वापस अंदर वाले कक्ष में ले जाता है।

सचखंड श्री हुजूर साहिब