कनक भवन

टीकमगढ़ (अब मध्य प्रदेश) की रानी ​​वृषभानु कुमारी द्वारा निर्मित कनक भवन का सुंदर मंदिर भगवान राम और उनकी पत्नी देवी सीता को समर्पित है। राजस्थान और बुंदेलखंड क्षेत्र के भव्य महलों से आश्चर्यजनक समानता रखने वाले इस मंदिर को अक्सर ‘सोने-का-घर’ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

किंवदंती है कि यह मंदिर भगवान राम की सौतेली माँ, रानी कैकेयी द्वारा देवी सीता को तब उपहार में दिया गया था, जब भगवान राम से विवाह होने के बाद वे अयोध्या पहुंची थीं। मंदिर के केंद्रीय हॉल में तीन तरफ मेहराबदार दरवाजे हैं और इसके गर्भगृह में भगवान राम और देवी सीता की सोने के मुकुट से सजी मूर्तियां स्थापित हैं। मूर्तियों को सोने के वज़नदार आभूषणों के साथ खूबसूरती से सजाया गया है । चूंकि सोने का एक पर्यायवाची ‘कनक’ भी है, यही वजह है कि इस मंदिर को कनक भवन कहा जाता है। इस मंदिर में सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 8 बजे से 11.30 बजे और शाम 4.30 बजे से 9 बजे तक जाया जा सकता है।

कनक भवन

नागेश्वरनाथ मंदिर

राम-की-पैरी में स्थित नागेश्वरनाथ मंदिर अयोध्या का एक प्रमुख आकर्षण है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका गर्भगृह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव का भक्तिमय रूप) में से एक है। यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान राम के छोटे पुत्र, कुश ने किया था। किंवदंती है कि जब सरयू नदी में नहाते समय कुश ने अपना कवच खो दिया था, तो वह एक नाग-कन्या को मिल गया, जिसे कुश से प्रेम हो गया। कुश ने भगवन शिव की भक्त उस नाग-कन्या के लिए एक शिव मंदिर स्थापित किया, और यह वही मंदिर है। 1750 में नवाब सफदर जंग के एक मंत्री नवल राय द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय शिवरात्रि उत्सव के दौरान होता है, जिसे यहां बड़े धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है और सड़कों पर भगवान शिव की बारात भी निकाली जाती है। 

नागेश्वरनाथ मंदिर

हनुमान गढ़ी

हनुमान गढ़ी मंदिर अयोध्या के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है और इसमें उनकी माँ अंजनी की गोद में बैठे भगवान हनुमान की एक सुंदर मूर्ति स्थापित है। वर्ष भर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा इस मंदिर का दौरा किया जाता है। 10वीं शताब्दी के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आगंतुकों को 76 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। किंवदंती है कि भगवान हनुमान भगवान राम की जन्मभूमि मानी जाने वाले रामकोट की रक्षा करने के लिए यहां एक गुफा में रुके थे। इस भव्य मंदिर परिसर को चार-तरफा किले की तरह बनाया गया है और इसके प्रत्येक कोने को गोलाकार गढ़ों से सुसज्जित किया गया है। यहाँ यह प्रचलित मान्यता है कि अयोध्या में राम मंदिर जाने वाले भक्तों को सबसे पहले हनुमान गढ़ी के दर्शन करने चाहिए और उसके बाद ही भगवान श्रीराम का आशीर्वाद लेना चाहिए।

हनुमान गढ़ी

त्रेता-के-ठाकुर

अयोध्या का एक लोकप्रिय आकर्षण त्रेता-के-ठाकुर मंदिर है जो भगवान राम को समर्पित है। हिंदू धर्म के अनुसार मानव जाति के चार युगों में से दूसरे युग त्रेता में अवतरित हुए श्रीराम को भगवान के रूप में जाना व माना जाता है । अयोध्या के नया घाट पर स्थित यह मंदिर 300 साल पहले कुल्लू के राजा द्वारा बनाया गया था और काफी धार्मिक महत्व रखने के साथ ही बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। किंवदंती है कि भगवान राम ने रावण नमक राक्षस पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए यहाँ अश्वमेध यज्ञ का संचालन किया था। इस मंदिर में भगवान राम, देवी सीता, भगवान लक्ष्मण, भगवान हनुमान और पवित्र रामायण में वर्णित अनेक अन्य महत्वपूर्ण पौराणिक देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। इन मूर्तियों को काले पत्थर के एक ही खंड से उकेरा गया है। इस मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय हिन्दू पंचांग के कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर) के दौरान होता है, जब मास के ग्यारहवें दिन अर्थात एकादशी को यहाँ भक्तों का बड़ा जनसमूह एकत्रित होता है।

त्रेता-के-ठाकुर

तुलसी स्मारक भवन

अवधी भाषा में रामचरितमानस और हनुमान चालीसा की रचना करने वाले गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में निर्मित तुलसी स्मारक भवन में अयोध्या शोध संस्थान स्थित है। यह एक ऐसा संगठन है जो अयोध्या शहर की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक परंपरा का अध्ययन और वर्णन करता है। इस भवन में रामायण कला और शिल्प पर आधारित स्थाई प्रदर्शनी और एक पुस्तकालय भी है। यहाँ रामलीला का दैनिक आयोजन और रामकथा का नियमित पाठ भी होता है। तुलसी स्मारक भवन में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों व प्रार्थना सभाओं के साथ-साथ अनुभवी कलाकारों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक नाटकों का आयोजन किया जाता है। इस संस्थान के भीतर सन 1988 में रामकंठ संग्रहालय स्थापित किया गया था जिसमें भगवान राम के युग की प्राचीन वस्तुओं के संग्रह के माध्यम से इस नगर के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को सामने लाया जाता है। 

तुलसी स्मारक भवन

गुप्तार घाट

सरयू नदी के तट पर स्थित, गुप्तार घाट का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार, यही वह जगह थी जहाँ भगवान राम ने पृथ्वी को त्यागने और अपने मूल निवास 'वैकुण्ठ' में वापस जाने के लिए अपनी जल समाधि ली थी । भक्तों के बीच यह मान्यता है कि इस घाट पर सरयू नदी में डुबकी लगाने से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें सांसारिक चिंताओं से मुक्ति प्राप्त होती है। यह घाट भगवान राम के नाम के मंत्रों से सदैव गूंजता रहता है और यहाँ भक्तजन और पुजारी उनकी प्रशंसा में भजन गाते हैं। पर्यटक गुप्तार घाट के पास स्थित राजा मंदिर और चक्र हरजी विष्णु मंदिर भी जा सकते हैं। इस घाट पर राम जानकी, चरण पादुका, नरसिंह और हनुमानजी के प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित हैं। इन सुव्यवस्थित घाटों का निर्माण राजा दर्शन सिंह ने 19 वीं शताब्दी के पहले भाग के दौरान करवाया था।

गुप्तार घाट

गोरखपुर

आध्यात्मिकता और इतिहास के रस में डूबा हुआ गोरखपुर अपने वजूद में एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत समेटे हुए है। अयोध्या से लगभग 13 घंटे की दूरी पर स्थित यह शहर संत गोरक्षनाथ के मंदिर के लिए जाना जाता है, जिन्होंने यहां तपस्या की थी और जिनके नाम से प्रेरणा लेकर इस शहर का नाम रखा गया। गोरखपुर के आसपास कई आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक और प्राकृतिक स्थल हैं जिनका नाम संत गोरखनाथ के नाम पर ही रखा गया है। यह शहर अनेकों मंदिरों का गढ़ है, जिनमें से सबसे प्रमुख आरोग्य मंदिर है जो प्राकृतिक चिकित्सा का केन्द्र है। पर्यटक गोरखपुर मंदिर और रामगढ़ ताल नामक 700 हेक्टेयर में फैली एक शांत झील का भी अवलोकन कर सकते हैं। आगंतुक सल और सेकोइया पेड़ों के घने एवं विस्तृत जंगल कुशमी वन में भी जा सकते हैं। यहाँ का एक और उल्लेखनीय स्थान वीर बहादुर सिंह तारामंडल है। साथ ही यह शहर भगवद गीता का प्रकाशन करने वाले गोरखपुर प्रेस के लिए भी प्रसिद्ध हैI

लखनऊ से लगभग 250 किमी दूर स्थित गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। यह पहले मौर्य, कुषाण, शुंग और गुप्त साम्राज्यों का एक हिस्सा था।

गोरखपुर

रामकोट

एक पहाड़ी के ऊपर स्थित रामकोट मंदिर अयोध्या में एक प्रमुख पूजा स्थान है। लोकप्रिय मान्यताओं के अनुसार एक पहाड़ी पर स्थापित यह प्राचीन मंदिर भगवान राम के किले की जगह पर बना हुआ है। इस मंदिर में साल भर हजारों भक्त आते हैं लेकिन दर्शन करने का सबसे अच्छा समय हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने (मार्च-अप्रैल) के दौरान होता है जब भगवान रामनवमी की जयंती बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। इस मंदिर में भगवान राम के सम्मान में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो एक मनोरम अनुभव होता है। इस मंदिर से पूरे शहर के व्यापक दृश्य को देखा जा सकता है, जिसमें इसके अद्भुत मंदिरों और सुंदर घाटों की आकर्षक छटा प्राप्त होती है। किंवदंती है कि इस किले की सुरक्षा महाबली हनुमान एक गुप्त गुफा से किया करते थे। यह मंदिर सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है। यात्रा का समय सुबह 7 बजे से 11 बजे तथा दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक है।

रामकोट

प्रभोसा

कौशाम्बी में स्थित प्रभोसा की पहाड़ी भारत में बौद्धों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध अपने छठे वस्सा अनुष्ठान, जिसके अंतर्गत बौद्ध भिक्षु तीन महीने की अवधि तक मौन रहते थे और यात्रा नहीं करते थे, के दौरान यहीं पर रुके थे। इस पहाड़ी को प्राचीन काल में मांकुला के नाम से भी जाना जाता था और चीनी यात्री ज़ुआंगज़ंग के यात्रा संस्मरणों में इसका उल्लेख मिलता है , जिन्होंने 7वीं सदी में इस स्थान की यात्रा की थी और यहाँ सम्राट अशोक द्वारा निर्मित एक स्तूप की खोज की थी। इस पहाड़ी के चट्टानी इलाक़े में अनेकों गुफाएँ स्थित हैं और उनमें से सबसे बड़ी सीता की खिड़की है। इतिहासकारों का मानना है कि यह वही स्थान हो सकता है जहां भगवन बुद्ध अपनी प्रभोसा यात्रा के दौरान रुके थे। इस पहाड़ी की चोटी से पर्यटकों को यमुना नदी और मंदिरों की नगरी प्रभोसा का भव्य रूप देखने को मिलता है।

प्रभोसा

पाटन देवी

अयोध्या के बाहरी इलाके में स्थित सिद्धपीठ पाटन देवी उन 51 शक्तिपीठों में से एक है जहाँ देवी सती के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे। यह स्थान अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वही स्थान है जहां सती का दाहिना कंधा गिरा था। इस मंदिर का सम्बन्ध महाभारत कालीन महायोद्धा कर्ण से भी है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने इस मंदिर के ठीक बगल में स्थित सूर्य कुंड का निर्माण किया था। इस मंदिर का पुनः नए सिरे से राजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित करवाया गया था, और बाद में इसे 11वीं सदी में श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। इस मंदिर में पाटन देवी के साथ माँ कालिके, काल भैरव और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। यह मंदिर तुलसीपुर से चौधरीडीह की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित है।

पाटन देवी