इसके पहले कि आप जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश की छानबीन की मुहिम पर निकलें, कांगड़ा और डलहौजी की तलहटी में स्थित छोटा-सा हलचल-भरा शहर पठानकोट, एक सुखद उत्प्रेरक की तरह है। ब्यास और रावी नदियों के तानेबाने के बीच फैले इस शहर के हरियाली से भरे परिदृश्य में जगह-जगह प्राचीन क़िले और सदियों पुराने अनेक मंदिर बिखरे पड़े हुए हैं। राजपूत सरदार, जसपाल सिंह पठानिया के संरक्षण में निर्मित आलीशान शाहपुरकंडी क़िले से लेकर, मुग़ल साम्राज्ञी नूरजहां के सम्मान में बने उनके नाम से ज्ञात नूरपुर क़िले तक, पठानकोट अपनी सदियों पुरानी संबंधों को जतन से संभाले हुए है। पर्यटक पुरातात्विक खंडहरों के आकर्षण में डूब सकते हैं, और साथ ही भगवान कृष्ण और मीरा बाई को समर्पित कुछ मंदिरों में अपनी श्रद्धांजलि भी अर्पित कर सकते हैं।

पठानकोट तीन राज्यों, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के संगम-स्थल पर बसा है। जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग के अंतिम शहर के रूप में इसकी अनूठी स्थिति है, और इसे जम्मू-कश्मीर, डलहौजी, चंबा, कांगड़ा, धर्मशाला, मैकलॉडगंज, ज्वालाजी की पर्वत-शृंखलाओं तथा हिमालय की गहराइयों में जाने से पहले, ठहरने के लिये एक विश्राम-स्थल है।

सिख इतिहास के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि पठानकोट की स्थापना पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव जी ने की थी। महान महाकाव्य महाभारत में, पठानकोट का उल्लेख औदम्बर के रूप में और आईन-ए-अकबरी नामक प्राचीन ग्रन्थ में, इसका उल्लेख 'परगना मुख्यालय' के रूप में किया गया है।