पहले धमेरी क़िले के नाम से जाना जाने वाला, विशाल नूरपुर क़िले का निर्माण 16 वीं शताब्दी के अंत में पठानकोट के शासक राजा बसु द्वारा किया गया था। यह अपने प्रभावशाली वास्तुशिल्पीय डिजाइनों, विशेष रूप से उन दीवारों के लिए जाना जाता है, जिनमें पक्षियों, जानवरों, पुरुषों, महिलाओं, बच्चों, राजाओं, देवी-देवताओं की आकृतियों के गहरे उकेरे गये नक्क़ाशीदार फलक अंकित हैं। पर्यटक परिसर के भीतर स्थित बृज राज स्वामी मंदिर के प्रति श्रद्धांजलि भी अर्पित कर सकते हैं। इस स्थल की एक ख़ासियत यह है कि यहां भगवान कृष्ण और मीरा बाई, दोनों की मूर्तियों की पूजा एक साथ की जाती है।

नूरपुर का क़िला, अपने विशाल अहातों, पुरातात्त्विक अवशेषों, तालाबों और 400 साल पुराने मौलश्री के पेड़ के चलते, अपने आकर्षण को बरक़रार रखे हुए है। क़िले का नामकरण मुग़ल साम्राज्ञी नूरजहां के सम्मान में किया गया है, जिनके बारे में यह माना जाता है कि नूरपुर की ख़ूबसूरत घाटी ने उन्हें बहुत आकर्षित किया था।

अन्य आकर्षण