सांभर झील

जयपुर से मात्र 70 किलोमीटर दूरी पर खारे पानी की यह विशाल झील स्थित है। सफेद परिदृश्य वाली यह झील पक्षियों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। ‘सांभर’ शब्द का अर्थ नमक होता है। इस झील का नाम सांभर झील इसलिए पड़ा क्योंकि इसके आसपास के क्षेत्र में नमक की उच्च सांद्रता उपलब्ध है। सांभर झील को रामसर साइट (दुनिया भर में मान्य आर्द्रभूमि) वर्गीकृत किया गया है। यहां पर फ्लेमिंगो पक्षी देखने को मिलते हैं, जो इस झील का मुख्य आकर्षण है। यहां पर बड़ी संख्या में पेलिकन (हवासील) भी देखने को मिलते हैं। सांभर झील का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार यह झील असुर राजा वृषपर्व के राज्य का हिस्सा थी। देवी शाकम्भरी ने यहां के मैदानों को बहुमूल्य धातु की खदान में परिवर्तित कर दिया था। यद्यपि तभी से लोगों को यह चिंता सताती थी कि इस सम्पदा से कई भ्रष्ट हो जाएंगे, अतः देवी ने इसे नमक के भंडार में बदल दिया।  

सांभर झील

नाहरगढ़ जैविक उद्यान

नाहरगढ़ जैविक उद्यान, नाहरगढ़ अभयारण्य का ही हिस्सा है, जो जयपुर से 12 किलोमीटर दूर स्थित है। अरावली पर्वत श्रृंखला में 720 हेक्टयर से अधिक क्षेत्र में फैला यह उद्यान यहां पाए जाने वाले वन्यजीवों व वनस्पति के लिए प्रसिद्ध है। इस पार्क में पक्षियों की 285 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। लोगों में सफेद गर्दन वाली दुर्लभ छोटी चिड़िया को देखने की चाहत अधिक होती है। इस पार्क में ही राम सागर स्थित है जो पक्षियों की विभिन्न गतिविधियां देखने का उपयुक्त स्थल है। इस उद्यान में एशियाई सिंह, बंगाल के बाघ, लकड़बग्घा, अजगर, जंगली सुअर, हिमालयाई काला भालू, भेड़िये, हिरण, भालू, मगरमच्छ इत्यादि देखने को मिलते हैं। इनके अलावा, यहां पर विलुप्त होने वाली वनस्पति एवं वन्यजीवों से संबंधित अनुसंधान होते हैं तथा लोगों को जागरूक भी किया जाता है। 

झालाना सफ़ारी पार्क

जयपुर के बाहरी क्षेत्र में व्यापक स्तर पर फैला झालाना सफ़ारी उद्यान लगभग 700 हेक्टेयर क्षेत्र में बना हुआ है। इसमें करीब 15 तेंदुए रहते हैं तथा यह तेंदुआ सफ़ारी के लिए लोकप्रिय है। तेंदुओं के अतिरिक्त इस उद्यान में अजगर, लक्कड़बग्घा, जंगली लोमड़ी, सुनहरी सियार, कस्तूरी बिलाव, चीतल, नील गाय, जंगली बिल्ली एवं अन्य कई वन्यजीव देखने को मिलते हैं। इन सबके अतिरिक्त यह उद्यान पक्षियों की गतिविधियां देखने में रुचि रखने वालों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं हैं। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इस पार्क में अद्भुत शिकार उड़ी (आखेट के दौरान इस छोटे घर का उपयोग किया जाता था), जिसका निर्माण 1835 में महाराजा स्वाई रामसिंह ने करवाया था, काली माता का बड़ा मंदिर तथा जैन चूलगिरी मंदिर स्थित है।

रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान

लोकप्रिय रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य कभी जयपुर के शाही परिवार के सदस्यों के लिए आखेट स्थल हुआ करता था। जयपुर से 155 किलोमीटर दूर स्थित रणथम्भोर में ढलान वाली पहाड़ियों व चट्टानों के मिश्रण, घास के मैदानों, झीलों व छोटी नदियों जैसे  विविध स्थल देखने को मिलते हैं। यहां के बीहड़ वनों में शानदार बाघ देखने का सुअवसर मिलेगा। बाघ के अतिरिक्त इस अभयारण्य में भालू, तेंदुआ, सियार, लोमड़ी, लक्कड़बग्घा, भेड़िया, चीतल, सांबर हिरण, नीलगाय, वानर, लंगूर एवं पक्षियों की अनगिनत प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इस शुष्क-पर्णपाती वन में दसवीं सदी में बना रणथम्भोर किला सुंदर परिदृश्य प्रस्तुत करता है। इसकी स्थापना 1944 में की गई थी तथा वर्तमान में यह रणथम्भोर की प्रसिद्ध बाघिन मछली के इलाके के लिए लोकप्रिय है। 

रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान