जयपुर में मिलने वाले व्यंजन परंपरा का ही हिस्सा हैं। राजपुताना की समृद्ध विरासत के साथ यहां मिलने वाले पकवान मसालेदार एवं सुगंधित होते हैं। 

कचैरी

कचैरी तेल में तली हुई पूरी की भांति होती है जिसमें मिश्रण भरते हैं। यह मिश्रण आलू, प्याज़ एवं मसालों स बनाया जाता है जो स्वाद तीखा, मीठा एवं चटखारेदार होता है। प्याज़ एवं आलू के मिश्रण वाली कचैरियों के लिए जयपुर बहुत प्रसिद्ध है। यहां की अनेक प्रतिष्ठित दुकानों पर ये बेची जाती हैं।         

घेवर

मुंह में पानी लाने वाला घेवर राजस्थान की पारंपरिक मिठाई है। देखने में इसका आकार थाल तथा मधुमक्खी के छŸो की भांति होता है। मैदे एवं घी से बने घेवर को गर्म तेल में डुबाकर पकाया जाता है। इसका स्वाद बढ़ाने के लिए कभी-कभार इसमें बेसन भी मिलाते हैं।

 

घेवर

सफ़ेद मांस

सफ़ेद मांस मुग़लई व्यंजन है, जो राजस्थान का पारंपरिक पकवान है। यह मटन-आधारित व्यंजन खाने में बेहद स्वादिष्ट होता है। खोया, ताज़ी मलाई एवं दही के कारण इस रंग सफ़ेद होता है। इसकी तरी स्वाद से भरी होती है, जो प्याज़, काजू की लेई, इलायची, नमक, काली मिर्च, अदरक एवं लहसुन की लेई के मिश्रण से बनाई जाती है। ये सामग्री ही इसे स्वादिष्ट बनाते हैं। 

गट्टे की सब्ज़ी

यह स्वादिष्ट कढ़ी बेसन से बनाई जाती है। गट्टे या बेसन की पकौड़ियां, दही से बनी मसालेदार तरी में पकाते हैं।

 

गट्टे की सब्ज़ी

गज़क

गज़क एक साधारण किंतु मीठा व्यंजन होती है। पलती एवं खाने में कुरकुरी गज़क पौष्टिक तिल, मूंगफली एवं गुड़ से बनाई जाती हैं। यह लोकप्रिय चिक्की की भांति होती हैं। सवेरे का आरंभ इस कुरकुरे आहार से किया जा सकता है तथा सर्दियों के महीने में किसी को भी गर्मी प्रदान करती है।
ऐसा माना जाता है कि गज़क की उत्पŸिा मध्य प्रदेश के मुरैना में हुई थी। इसे बनाने की प्रक्रिया में तिल के बीजों को तब तक कूटते हैं जब तक कि उनमें से तेल नहीं निकलता। कइयों का कहना है कि गज़क का उपयोग मुग़लकाल में आरंभ हुआ था। जैसा कि मुग़ल मांस खाया करते थे, इसके माध्यम से उनकी प्रोटीन की आवश्यकता आसानी से पूरी हो जाती थी। यद्यपि हिंदू राजा इसे खाकर शाकाहारी माध्यम से प्रोटीन ग्रहण करते थे। अतः चना, गुड़, मूंगफली एवं तिल के मिश्रण से गज़क तैयार की जाती है ताकि ऊर्जा मिल सके।                 

गज़क

कैर सांगरी

कैर सांगरी राजस्थान में सब्ज़ियों से बनने वाले बेहद लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है। यह सब्ज़ी खेजरी पेड़ों के बेर तथा सांगरी की सेम से बनाई जाती है। इन्हें सरसों के तेल में लाल मिर्च तथा कच्चे आम के साथ भिगोकर रखा जाता है। इसे रोटी के साथ परोसते हैं तथा यह राजस्थानी थाली का अभिन्न अंग मानी जाती है। कैर सांगरी इस संदर्भ में भी विशिष्ट सब्ज़ी होती है कि रेगिस्तान की तपती धूप में जब सभी सब्ज़ियां सूख जाती हैं, खेजरी के पेड़ तब भी बचे रहते हैं। इन पेड़ों की जड़ें ज़मीन में इतनी गहरी होती हैं कि वे जीवित रहने के लिए पर्याप्त पानी ग्रहण करते हैं। इस पेड़ की फलियां इस व्यंजन की प्रमुख सामग्री होती है।

 

कैर सांगरी

लाल मांस

लाल मांस राजस्थान के बेहद लोकप्रिय एवं तले हुए व्यंजनों में से एक है। यह मटन और लाल मिर्चें डालकर बनाया जाता है। यह देखने में सुर्ख लाल होता है। इसमें पर्याप्त मात्रा में घी तथा घनिया डाला जाता है। इसे घंटों धीमी आंच पर पकाया जाता है। रसीले मांस का यह व्यंजन बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है।  

 लाल मांस

कढ़ी

दही से बनी पारंपरिक कढ़ी में बेसन के पकौडे़ डाले जाते हैं। अकसर इसे उबले हुए चावल अथवा रोटी के साथ खाते हैं।

कढ़ी

गुजिया

यह पारंपरिक मिठाई होती है, जो भारत के उŸारी हिस्सों में होली के दौरान बड़े चाव से खाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि राजस्थान में गुजिया उŸार प्रदेश से आई है। इसका आकार अर्ध-चंद्रमा के समान होता है। मैदे से बनी सुनहरी भूरी गुजिया के भीतर पिस्ते, बादाम, मावा, सूखे नारियल, इलायची एवं चिरौंजी से बना मिश्रण भरा जाता है। गुजिया मुंह में रखते ही घुल जाती है।

दाल बाटी चूरमा

यह जयपुर के प्रतिष्ठित व्यंजन के रूप में प्रसिद्ध है। यह दाल (मसालों के साथ उबली दाल), बाटी (आटे के लड्डू जो चूल्हे पर तले या पकाए जाते हैं) एवं चूरमा (घी व चीनी मिला आटे का चूरा) का मिश्रण होता है। इस व्यंजन को खाने के अनेक ढंग हैं किंतु सबसे पसंदीदा ढंग बाटी को पहले दाल फ़िर चूरमा में डुबाकर खाने का है। चूरमा को खाने के अंत में मीठे पकवान के रूप में भी खाया जा सकता है।

 दाल बाटी चूरमा