राजस्थानी हस्तशिल्प एवं हथकरघा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। कुछ प्रतिष्ठित कला रूपों के साथ कढ़ाई एवं प्रिंटिड किए जाने वाले ये हस्तशिल्प दिखने में आधुनिक होने के साथ-साथ बेहद आकर्षक भी होते हैं। इसके अलावा, जयपुर हाथ से बने काग़ज़, आभूषणों एवं चमड़े के उत्पादों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कुछ उत्पादों के बारे में बताया जा रहा है जो जयपुर में ख़रीदे जा सकते हैं तथा यहां के बाज़ार इन वस्तुओं के लिए जाने जाते हैं।            

नीले रंग के बर्तन

ग़लों द्वारा आरंभ की गई बर्तन बनाने की यह कला जयपुर में ईरान तथा अफ़गानिस्तान से आई। इस प्रकार के बर्तन चिकनी मिट्टी से नहीं अपितु बिल्लौर से बनाए जाते हैं। इनमें उपयोग में लाए जाने वाली सामग्री में बिल्लौर, कच्चा कांच, सोडियम सल्फ़ेट एवं मुल्तानी मिट्टी शामिल होती हैं। इन बर्तनों में नीला व फ़िरोज़ा के सुंदर रंग काॅपर आॅक्साइड एवं कोबाल्ट आॅक्साइड के उपयोग से प्राप्त किया जाता है जो इन्हें विशिष्ट रूप प्रदान करते हैं। प्लेट, फूलदान, साबुनदानी, दरवाज़े के कुंडे एवं चमकीली टाइलें जिन पर हाथ से फूलों के डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जैसी अनेक वस्तुएं आप यहां से ख़रीद सकते हैं। जयपुर में अनेक दुकानें हैं, जहां से आप इस प्रकार की वस्तुएं ख़रीद सकते हैं। 

 नीले रंग के बर्तन

चमड़े का सामान

राजस्थान के दक्ष कारीगर चमड़े की अनगिनत वस्तुएं बनाते हैं जिनमें जूतियां व मोजरी (एक प्रकार के पारंपरिक जूते), कुर्सियां, संगीत वाद्य, कपड़े, जूते, टोपियां, काठी, कवच, बैग इत्यादि होते हैं। ये सामान मुख्य रूप से ऊंट की खाल से बनाए जाते हैं।

आभूषण

जयपुर विशेषकर कुंदन आभूषणों के लिए लोकप्रिय गंतव्य है तथा कीमती रत्नों से जड़ित आभूषणों का ढाई सदियों पुराना इतिहास खोजा जा सकता है। कुंदन के अलावा, मीनाकारी जैसे विशेष आभूषणों के निर्माण एवं रंगीन रत्नों की कटाई के लिए जयपुर प्रसिद्ध है। इन सबके अतिरिक्त जयपुर पन्ना की कटाई एवं पाॅलिश का अंतरराष्ट्रीय स्तर है। यहां पर रंगीन रत्नों, चांदी एवं मोतियों की ख़रीदारी भी कर सकते हैं। 
कुंदन के आभूषण अब भी इस शाही शहर की विशेषता हैं। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार राजस्थान में कुंदन के आभूषणों को बनाने की कला दिल्ली से आई थी। वर्तमान में, कुंदन के आभूषण वधुओं की पसंद बन गए हैं। इन आभूषणों को बनाने की प्रक्रिया बहुत ही मनोहारी है। यह प्रक्रिया एक खोखले खाके, जिसे घाट कहते हैं से आरंभ होती है। इस खाके में मोम भरी जाती है तथा डिज़ाइन के अनुरूप उसे ढालते हैं। इस प्रक्रिया को पाध कहते हैं। अगला कदम खुदाई होता है, जिसमें बिना कटाई वाले बहु-रंगी रत्नों को खाके पर लगाया जाता है। यह खाका विशुद्ध स्वर्ण अथवा अन्य धातु से बना होता है। इसके बाद की जाती है मीनाकारी, जिसमें डिज़ाइन को प्रभावी ढंग से उजागर करने के लिए आभूषणों को तराशा जाता है। आभूषणों पर रत्न जुड़े रहें, इसके लिए सोने की परत चढ़ाई जाती है, इस कदम को पकाई कहते हैं। अंत में, चिलाई प्रक्रिया के तहत रत्नों को पाॅलिश किया जाता है।  

आभूषण

लहरिया व बांधेज

राजस्थानी हस्तशिल्प एवं हतकरघा से बने परिधान विश्व भर में लोकप्रिय हैं। विशेषकर जयपुर में, रंगरेज़ द्वारा रंगे जाने वाले लहरिया व बांधेज जैसे पारंपरिक कपड़े ख़रीदने के अनेक स्थल हैं। कपड़े को पहले बांधना तत्पश्चात् उसे रंग में डुबाना, परिधान रंगने की प्रक्रिया है। राजस्थान के पारंपरिक शिल्प में लहरिया व बांधनी अथवा बांधेज कपड़े काफ़ी प्रतिष्ठित हैं। यद्यपि बांधनी पर फूलों व ज्यामितिक डिज़ाइन बनाए जाते हैं जबकि लहरिया पर विकर्ण रेखाएं बनाई जाती हैं, जो देखने में लहरें प्रतीत होती हैं। इस तकनीक में उपयोग में लाये जाने वाले मुख्य रंग लाल, पीला, नीला, काला एवं हरा होता है। रंगाई के बाद, बांधनी अनेक रूपों जैसे लहरों, बिंदुओं, लकीरों एवं चैकोर खानों में विद्यमान होती है। ये प्रतिमान उस तरीके पर निर्भर करते हैं कि कपड़े को किस प्रकार से बांधा जाता है। 

एमआई रोड पर स्थित सरकारी दुकानें, बापू बाज़ार, जौहरी बाज़ार एवं नेहरू बाज़ार कुछ ऐसी जगह हैं, जहां से परिधान तथा हस्तशिल्प की वस्तुएं ख़रीदी जा सकती हैं। छोटी व बड़ी चैपड़ पर भी कुछ स्टाॅल हैं। ये सभी बाज़ार प्रायः रविवार को बंद रहते हैं। 

बगरू

अजमेर मार्ग पर स्थित यह छोटा सा शहर पारंपरिक बगरू प्रिंट के लिए प्रसिद्ध है। यह जयपुर से 35 किलोमीटर दूर स्थित है। 

बगरू लकड़ी से बने ब्लाॅक प्रिंटिंग की क्लासिक स्टाइल है। इसमें लकड़ी के एक ब्लाॅक पर आकृति उकेरी जाती है जिसके बाद उस ब्लाॅक को सब्ज़ियों से बनाई गईं डाई एवं रंगों में डुबाकर कपड़े पर छपाई की जाती है। इस हस्तशिल्प की न केवल इसकी तकनीक के लिए सराहना की जाती है अपितु इसमें पारंपरिक रंगों का उपयोग होने के कारण यह पर्यावरण अनुकूल भी है। बागरू के पिं्रटिंग प्रतिमान ‘अजरक’ कहलाते हैं तथा इस कला की उत्पŸिा 300 वर्षों पहले हुई थी। इस गांव में कुछ ऐसे विशिष्ट स्थान हैं जो बागरू प्रिंटर के गढ़ हैं। इन इलाकों में घूमते समय आगंतुकों को लगभग तीन दर्जन परिवार इस कला मंे संलग्न दिख जाते हैं। यह समस्त प्रक्रिया बेहद मनमोहक होती है, जिसमें शिल्पकार सबसे पहले कपड़े पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाते हैं। तत्पश्चात् कपड़े पर पारंपरिक क्रीम रंग चढ़ाने के लिए उसे हल्दी मिले हुए पानी में डुबा दिया जाता है। इसके बाद, प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हुए कपड़े पर विभिन्न प्रकार के प्रतिमान उकेरे जाते हैं। नीला रंग नील, लाल रंग मजीठ की जड़ों तथा हरा रंग नील में अनार का रस मिलाकर बनाया जाता है। पीला रंग हल्दी से बनाया जाता है।

बगरू

सांगानेर

जयपुर से 16 किलोमीटर दूर स्थित सांगानेर कपड़े पर छपाई एवं हाथ से बने काग़ज़ के लिए प्रसिद्ध है। हाथ से की जाने वाली ब्लाॅक प्रिंटिंग को ‘ज्योग्राफ़िक इंडिकेशन (जीआई) टैग’ से सम्मानित किया गया है। महाराज स्वाई जयसिंह द्वितीय ने 1728 में यहां हाथ से बने काग़ज़ का उद्योग स्थापित किया था तथा वर्तमान में यहां उत्कृष्ट गुणवŸाा वाले उत्पाद बनाए जाते हैं।  
सांगानेर एक प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल भी है क्योंकि यहां पर भगवान आदिनाथ (ऋषभ देव) का प्राचीन जैन मंदिर भी है। कपड़े पर की जाने वाली छपाई देखने के लिए आप इस छोटे से शहर की सैर कर सकते हैं तथा यहां बनने वाले उत्पाद भी ख़रीद सकते हैं।

सांगानेर