वाराणसी की यात्रा गंगा किनारे स्थित विभिन्न घाटों पर गए बिना पूरी नहीं मानी जाती। ये घाट कलाकारों, फ़िल्म-निर्माताओं, छायाकारों, लेखकों एवं संगीतकारों के लिए सदियों से प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। इस शहर में लगभग 88 घाट हैं, जिनमें से अधिकतर का उपयोग स्नान के लिए होता है जबकि दो-चार पर अंत्येष्टि की जाती है। वाराणसी के अनेक घाटों का पुनर्निर्माण 1700 ईस्वीं में किया गया जब इस शहर पर मराठा राजाओं का शासन था। वर्तमान में दिखने वाले घाटों का संरक्षण मराठा, होल्कर, शिंदे (सिंधिया), पेशवा एवं भोंसले राजाओं ने किया था। 

जैसा कि हिंदू धर्म में गंगा नदी में डुबकी लगाना पवित्र माना जाता है, यहां के अनेक घाट स्नान एवं धार्मिक अनुष्ठान के लिए बनाए गए हैं। इन सभी घाटों में दशाश्वमेध घाट सबसे प्रसिद्ध घाट है। मणिकर्णिका घाट का उपयोग अंतिम संस्कार के लिए किया जाता है। एक पंक्ति में स्थित घाटों के अंतिम छोर पर अस्सी स्थित है। यह क्षेत्र सवेरे किए जाने वाले योग सत्रों के लिए प्रसिद्ध है। संध्या को होने वाली आरती (दीयों के साथ किए जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान) जो मुख्य रूप से दशाश्वमेध घाट पर होती है, देखने लायक आयोजन होता है। वैभवशाली घाटों में से एक ललिता घाट भी है। व्यापक स्तर पर ऐसा माना जाता है कि गंगा के घाटों पर लोगों का मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक रूप से शुद्धिकरण होता है। वे उगते सूर्य की उपासना के लिए सदियों से इस स्थान पर आते रहे हैं। 

इस शहर के भ्रमण के दौरान आगंतुक गंगा नदी में नौका विहार कर सकते हैं तथा श्रद्धालुओं से भरे यहां के विभिन्न घाटों पर आध्यात्मिक उत्साह का भी आनंद ले सकते हैं। इनमें से कुछ घाट निजी संपत्ति हैं।

अन्य आकर्षण

इन्हें भी पढ़े