पावन नगरी वाराणसी के बेहद प्राचीन एवं पवित्र घाटों में से एक दशाश्वमेध घाट है। गंगा आरती के लिए यह घाट सबसे लोकप्रिय है, जो एक विस्तृत तथा जीवंत समारोह है और यह हर शाम आयोजित होता है। शंखनाद, घंटियों, पीतल के झांझ की थाप तथा मंत्रोच्चारण के बीच पुजारी वाराणसी की जीवनरेखा मानी जाने वाली गंगा की वंदना करते हैं। इस दौरान पीतल के दीयों को अनेक बार ऊपर-नीचे घुमाया जाता है। दशाश्वमेध का अर्थ होता है, वह स्थान जहां पर भगवान ब्रह्म ने दस अश्वों की बलि दी थी। ऐसा भी कहा जाता है कि बाजीराव पेशवा-प्रथम ने 1740 ईस्वीं में इस घाट का पुनर्निर्माण कराया था। तत्पश्चात् इसे इंदौर की महारानी, अहिल्याबाई होल्कर ने 1774 में बनवाया। यह घाट बेहद प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित है। 

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