जाखू पहाड़ी

जाखू पहाड़ी शिमला की सबसे ऊंची चोटी है। यह जाखू मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो भगवान हनुमान को समर्पित है। यदि आप क्राइस्ट चर्च के पास की वृक्षावली से ऊपर देखते हैं, तो आपको ऐसा प्रतीत होगा कि 33 मीटर ऊंची भगवान की यह मूर्ति आपको घूर रही है। कहा जाता है कि भगवान हनुमान जब लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेने गए थे, तो उन्होंने यहां विश्राम किया था।। यह मंदिर शहर से काफी दूरी पर स्थित है, इसलिए विश्व पटल पर इसका आकर्षण अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए एक छोटी केबल कार की सवारी की जा सकती है, जो पहाड़ के काफी ऊपर से जाती है। इसके अलावा आप पहाड़ी के सुंदर-सुंदर रास्तों से होते हुए मंदिर तक जा सकते हैं, जो चर्च के बगल से शुरू होते हैं। इसके आसपास के इलाके में सैकड़ों बंदर हैं, जो यहां के पर्यटकों में खासे आकर्षण का कारण हैं। इन बंदरों को मंदिर परिसर अपना घर -सा लगता है। साथ ही, ये बंदर कुछ अपनी नटखट गतिविधियों के लिए भी बदनाम हैं जैसे-पर्यटकों से प्रसाद का लिफ़ाफ़ा, उनके सनग्लॉसेस और टोपी आदि छीनकर भाग जाना।

जाखू पहाड़ी

हाटू पीक

शिमला जिले की दूसरी सबसे ऊंची चोटी, हाटू पीक है जिसकी ऊंचाई लगभग 3,400 मीटर है। यह शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। पर्यटक चोटी के ऊपर स्थित विचित्र नारकंडा शहर का दौरा कर सकते हैं। यह शहर स्पीति घाटी और हिमाचल प्रदेश के अन्य उच्चतर स्थानों पर जाने वाले यात्रियों के लिए एक प्रवेश द्वार है। नारकंडा का प्रतिष्ठित हाटू मंदिर, देवी काली की अवतार, हाटू माता को समर्पित है। यह मंदिर पूरी तरह से लकड़ी से बना है। यह इस क्षेत्र का अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर है। 18वीं शताब्दी का स्टोक्स फार्म भी नारकंडा में है, जो व्यापक रूप से अपने सेब के बागानों के लिए जाना जाता है। आप स्टोक्स परिवार से इसके निःशुल्क टूर के लिए बात कर सकते हैं, जहां आप प्रमुख कृषि कंपनियों के सहयोग से सेब की किस्मों और उससे जुड़े कई प्रयोगों को देख सकते हैं। नारकंडा एडवेंचर के शौकीनों के लिए भी एक गढ़ के रूप में विकसित है। पर्यटक यहां ट्रेकिंग, स्कीइंग और सर्दियों के अन्य मशहूर खेलों का आनंद भी ले सकते हैं।

हाटू पीक

सोलन

ऊंची ढलानदार पहाड़ियों से घिरा, सोलन शहर, एक प्रमुख कैंपिंग और ट्रेकिंग स्थल है। यह स्थल समुद्र तल से लगभग 1,467 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सोलन अपने पूर्व में मटिउल चोटी और उत्तर में कोरल चोटी से घिरा हुआ है। सोलन में सबसे प्राचीन शूलिनी माता मंदिर सहित कुछ प्राचीन मंदिर है। शूलिनी देवी को समर्पित, यह इस क्षेत्र के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। जून के महीने में यहां बड़े उत्साह से वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। यहां से पर्यटक जाटोली मंदिर और करोल टिब्बा भी जा सकते हैं। सोलन में टमाटर की अधिकता के कारण इस शहर को लाल सोने का शहर भी कहा जाता है। यहां का एक और मुख्य आकर्षण ऐतिहासिक गोरखा किला है, जिस पर उन्नीसवी शताब्दी के शुरुआत में गोरखों ने कब्जा कर लिया था। पर्यटक यहां आकर दिवारों पर बने शानदार चित्र अवश्य देखें, जो पहाड़ी शैली में बने हैं और किले की शोभा बढ़ाते हैं। सोलन, शिमला से लगभग 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो अन्य लोकप्रिय पहाड़ी जैसे कसौली और चैल के लिए मुख्य प्रवेश द्वार है।

सोलन

सराहन

सराहन सतलुज नदी के किनारे बसा एक छोटा गांव है, जो प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। यह एक तरफ खड़ी चट्टानों और दूसरी तरफ गहरी खाड़ी से घिरा हुआ है। यहां मौजूद देवदार के जंगल, सेब के बागान और सीढ़ीनुमा खेत, इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। पर्यटक यहां से हिमालय के राजसी श्रीखंड चोटी को भी देख सकते हैं। इसकी चोटी बर्फ से ढकी रहती है। जैसे ही सूर्य की किरणें शिखर पर पड़ती हैं, तो सारा वातावरण रोशनी में नहा उठता है और अद्भुत सौंदर्य से भर जाता है। इस क्षेत्र का एक और आकर्षण देवी भीम काली का मंदिर है, जो मठ की तरह दिखता है। यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है, जो इसे एक पूजनीय स्थल बनाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव तांडव नृत्य के दौरान यहां देवी सती के कान गिरा था, जिससे यह स्थल पूजा स्थल के रुप में पूजा जाने लगा। यहां के पेड़ आलूबुखारा, आड़ू और बादाम से लदे पड़े हैं। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आस्वादन करना अपने आप में एक अभूतपूर्व अनुभव है।

सराहन

शोघी

रोडोडेंड्रॉन और ओक के जंगलों के बीच स्थित, शोगी, शिमला के पास स्थित एक शांत उपनगर है। यहां प्राचीन मंदिर और घने जंगल से भरा एक मनोरम नगर है, जो ट्रेकिंग के लिए किसी हेवन से कम नहीं है। यहां पर्यटकों को ट्रेकिंग और कैंपिंग के अवसर प्रदान किए जाते हैं। तारा देवी मंदिर शोघी का सबसे लोकप्रिय आकर्षण है, यहां राज्य के सभी हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं। पर्यटक देवदार के सुंदर जंगलों से पैदल चलते हुए यहांं आ सकते हैं। तिब्बती बौद्धों के सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक 'देवी तारा' को यह मंदिर समर्पित है। 250 साल पुराना यह मंदिर तारा पर्वत पर स्थित है। शरद नवरात्रि और मां तारा देवी महोत्सव के समय यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। हर साल दिवाली के मौसम में इन उत्सवों को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। समुद्र तल से लगभग 1,851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, इस मंदिर के एक तरफ बर्फ से ढका हिमालय है और वहीं दूसरी ओर शिमला का सुंदर नजारा दिखता है। शोगी अपने स्वादिष्ट फलों के उत्पादों जैसे कि घर के बने अचार, सिरप, जूस और जेली के लिए भी बहुत लोकप्रिय है। यह विराट शहर शिमला से लगभग 14 किमी की दूरी पर स्थित है। गर्मियों के मौसम में यहां घूमने का मजा ही कुछ और है। इस क्षेत्र में पर्यटन का सबसे अच्छा समय गर्मियों का सीजन है। कालका-शिमला टॉय ट्रेन से भी शोगी पहुंचा जा सकता है, जो अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है।

शोघी

कोटगढ़

भारत के 'एप्पल बाउल' के रूप में प्रसिद्ध, कोटगढ़, पुराने हिंदुस्तान-तिब्बत मार्ग पर स्थित एक विचित्र और मनोरम शहर है। यह शहर सेब के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर्यटक इन सुंदर सेब के बागानों और देवदार के जंगलों की सैर कर सकते हैं। कोटगढ़ के मुख्य आकर्षणों में से एक, यहां का भव्य सेंट मैरी चर्च है, जो ब्रिटिश शासन की याद दिलाता है। वर्ष 1872 में निर्मित लकड़ी का यह चर्च 'स्टैन्ड ग्लास विंडोज़' के लिए प्रसिद्ध है। यहां देवदार के पेड़ों से बनी कई बैंच मौजूद हैं। यहां पर्यटक मैलान देवता मंदिर भी जा सकते हैं, जो पर्यटकों को अपनी शाही शिखारा शैली की वास्तुकला से आकर्षित करता है। कोटगढ़ से 5 किमी की दूरी पर स्थित
शांत 'तनी जुब्बर झील' है, जहां जून के महीने में वार्षिक कला और शिल्प मेला आयोजित किया जाता है। किंवदंती है कि वर्ष 1916 में अमरीका के फिलाडेल्फिया के एक सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल स्टोक्स मिशनरी कार्यकर्ता के रूप में कोटगढ़ आए थे। वह उस इलाके की खूबसूरती से इतने मंत्रमुग्ध थे कि वे यहीं बस गए। उन्होंने यहां सेब के बागान लगाए जो लुइसियाना के चुनिंदा बागों से आयात किए जाते थे और उन्होंने सभी किसानों को अपनी सामान्य फसल के स्थान पर सेब के बागान लगाने के लिए प्रेरित किया। कुछ ही वर्षों में कोठगढ़ हिमाचल प्रदेश के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक हो गया। इस क्षेत्र के सेब अंतरराष्ट्र्रीय स्तर के हैं और पूरे राज्य का सकल घरेलू आय का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है। इस क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक यह है कि इस प्रांत ने स्वतंत्रता पूर्व के समय से ही अपना आकर्षण बनाए रखा है।

कोटगढ़

फागु

जो लोग शिमला के सुरम्य ग्रामीण क्षेत्र का आनंद लेना चाहता हैं, फागु उनके लिए शिमला के समीप एकांत और बेहद ही बर्फीली जगह है। यह ट्रेकर्स, प्रकृति प्रेमियों और वनस्पतिविदों के लिए किसी बेस कैंप से कम नहीं है। फागु की गहरी घाटियों में पर्यटक सुंदर फूलों और सेब के बागानों का अनुपम दृश्य देख सकते हैं। इस पर्यटन स्थल में रुकने की सुविधा सीमित है, इसलिए पर्यटक हिमाचल प्रदेश पर्यटन द्वारा संचालित होटल 'पिच ब्लोसम' बुक कर सकते हैं। फागु के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक प्रसिद्ध बांठिया देवता मंदिर है, जो शहर की समृद्ध कला और संस्कृति की झलक प्रस्तुत करता है। मंदिर की लकड़ी की सुंदर नक्काशी और प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को आकर्षित करती है। कैंपिंग करने के लिए पर्यटक कटीर जा सकते हैं, जो फागु से लगभग 13 किमी दूर स्थित है। फागु के समीप एक और पर्यटन स्थल है जो आपको मंत्रमुग्ध कर सकता है, वह है थियोग, जो अपने बाज़ारों के लिए प्रसिद्ध है। फागु, समुद्र तल से लगभग 2,450 मीटर ऊपर, हिंदुस्तान-तिब्बत रोड पर स्थित है। सर्दियों में, यह बर्फ से ढका रहता है और अपनी मौलिक सुंदरता से पर्यटकों को आकर्षित करता है।

फागु

नालदेहरा

प्रकृति-प्रेमियों का स्वर्ग, नालदेहरा समुद्र तल से लगभग 2,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह देश के सबसे पुराने गोल्फ कोर्स में से एक है। 18-होल वाले इस गोल्फ कोर्स को भारत में सबसे चुनौतीपूर्ण गोल्फ कोर्सों में से एक माना जाता है। इस गोल्फ कोर्स को ब्रिटिश वाइसराय, लॉर्ड कर्जन द्वारा डिजाइन किया गया था, जो इसकी सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो गए थे। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से 9 होल वाले इस गोल्फ के निर्माण का पर्यवेक्षण किया, जिसे बाद में इसे और विस्तारित कर दिया गया नालदेहरा देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है और इसका मैदान हरी-भरी घासों से भरा हुआ है। इस विस्तृत क्षेत्र की स्थलाकृति यूरोप में मौजूद आल्प्स पहाड़ी जैसी है, इसमें कई विलुप्तप्राय जीवों का आवास भी है। जून के माह में होने वाला 'सिपि फेयर' यहां के विशेष आकर्षणों में से एक है। सिपि फेयर वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है, जो पर्यटक और स्थानीय लोगों को आकर्षित करता है। यह उत्सव उस दृश्य को और भी रंगीन और जीवंत बना देता है, जिसमें पूरे राज्य के लोग अपनी वेश-भूषा में शिरकत करते हैं।

नालदेहरा