त्रिवेणी घाट के निकट भारत मंदिर स्थित है और ऐसा कहा जाता है कि यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इसे ऋषि आदि शंकराचार्य द्वारा 789 ईस्वीं में बसंत पंचमी को बनवाया गया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिनकी मूर्ति एक काले पत्थर से बनी हुई है। यह शालीग्राम के नाम से प्रसिद्ध है। यह प्रतिमा मंदिर के भीतरी कक्ष में स्थापित है। बसंत पंचमी के दिन, शालीग्राम को पावन मायाकुंड में पवित्र स्नान कराने के लिए मंदिर से बाहर निकाला जाता है। यह कुंड मंदिर के निकट ही स्थित है। उसके पश्चात इस मूर्ति को एक भव्य जुलूस के रूप में समस्त शहर में घुमाया जाता है। भगवान विष्णु की इस मूर्ति को मंदिर में पुनः स्थापित किया जाता है। मंदिर के सामने एक प्राचीन वृक्ष स्थित है, जो तीन विभिन्न पेड़ों का मिश्रण है जिनकी जड़ें आपस में उलझी हुई हैं। इनको एक दूसरे से अलग बता पाना असंभव है। ये बरगद, पीपल एवं बेल के प्राचीन वृक्ष हैं। कइयों का मानना है कि ये तीन पेड़ हिंदुओं की पावन तिकड़ी - भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस मंदिर का एक अन्य आकर्षण बुद्ध की खंडित प्रतिमा है। यह उत्खन्न के दौरान यहां से प्राप्त हुई थी जिसे एक पेड़ के नीचे रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह अशोक के काल की है।

हिंदुओं की पावन तिकड़ी - भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस मंदिर का एक अन्य आकर्षण बुद्ध की खंडित प्रतिमा है। यह उत्खन्न के दौरान यहां से प्राप्त हुई थी जिसे एक पेड़ के नीचे रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह अशोक के काल की है।

 

 

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