अजमेर मार्ग पर स्थित यह छोटा सा शहर पारंपरिक बगरू प्रिंट के लिए प्रसिद्ध है। यह जयपुर से 35 किलोमीटर दूर स्थित है। 

बगरू लकड़ी से बने ब्लाॅक प्रिंटिंग की क्लासिक स्टाइल है। इसमें लकड़ी के एक ब्लाॅक पर आकृति उकेरी जाती है जिसके बाद उस ब्लाॅक को सब्ज़ियों से बनाई गईं डाई एवं रंगों में डुबाकर कपड़े पर छपाई की जाती है। इस हस्तशिल्प की न केवल इसकी तकनीक के लिए सराहना की जाती है अपितु इसमें पारंपरिक रंगों का उपयोग होने के कारण यह पर्यावरण अनुकूल भी है। बागरू के पिं्रटिंग प्रतिमान ‘अजरक’ कहलाते हैं तथा इस कला की उत्पŸिा 300 वर्षों पहले हुई थी। इस गांव में कुछ ऐसे विशिष्ट स्थान हैं जो बागरू प्रिंटर के गढ़ हैं। इन इलाकों में घूमते समय आगंतुकों को लगभग तीन दर्जन परिवार इस कला मंे संलग्न दिख जाते हैं। यह समस्त प्रक्रिया बेहद मनमोहक होती है, जिसमें शिल्पकार सबसे पहले कपड़े पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाते हैं। तत्पश्चात् कपड़े पर पारंपरिक क्रीम रंग चढ़ाने के लिए उसे हल्दी मिले हुए पानी में डुबा दिया जाता है। इसके बाद, प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हुए कपड़े पर विभिन्न प्रकार के प्रतिमान उकेरे जाते हैं। नीला रंग नील, लाल रंग मजीठ की जड़ों तथा हरा रंग नील में अनार का रस मिलाकर बनाया जाता है। पीला रंग हल्दी से बनाया जाता है।

अन्य आकर्षण