भव्य अशोक राजपथ के बगल में गंगा नदी के किनारे खुदा बक्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी स्थित है। वर्ष 1891 में इस राष्ट्रीय पुस्तकालय को जनता के लिए खोल दिया गया। इस पुस्तकालय की विशेषता यह है कि इसे केवल एक आदमी ने संग्रहित किया था। इसे मोहम्मद बक्श द्वारा शुरू किया गया था और बाद में उनके बेटे खुदा बख्श द्वारा इसका विकास किया गया। मोहम्मद बख्श ने अपने बेटे को 1ए400 पांडुलिपियों का संग्रह दियाए जो उनके बेटे के लिए एक जुनून बन गया। इसलिए इस संग्रह को और बढ़ाने के लिए खुदा बख्श ने एक व्यक्ति को नियुक्त किया और अरब देशों में पांडुलिपियों को संग्रहित करने के लिए भेजा। वर्ष 1888 में उन्होंने 4ए000 पांडुलिपियों के लिए दो मंजिला इमारत का निर्माण करवाया और इसे आम जनता के लिए खोल दिया। वर्तमान में शोध सामग्री की तलाश में दुनिया भर के विद्वान इस पुस्तकालय में आते हैं। यहां उर्दू साहित्य के विशाल संग्रह के अलावाए दुर्लभ अरबी और फारसी पांडुलिपियांए राजपूती कलाकृतियांए मुगल चित्रकारी और 25 मिमी चौड़ी पवित्र कुरान की पांडुलिपियां जैसा अनूठा संग्रह है। इसके अतिरिक्त यहां स्पेनए कॉर्डोबा के मूरिश विश्वविद्यालय से पुस्तकों और साहित्य का मिश्रण भी देखने को मिलता है। यहां मुगलकाल से संबंधित पुस्तकें भी हैए जिनमें हस्तनिर्मित चित्रकारी की गई है। इस चित्रकारी से उस समय के जीवन और संस्कृति की झलक मिल जाती है। यहां ताड़ के पत्तों पर सुंदर हस्तलिपि में लिखी गई पांडुलिपियां भी हैं। इसके कई संस्करणों को दुनिया में कहीं और नहीं पाया गया है। इस पुस्तकालय में आज 21ए000 प्राचीन पांडुलिपियां और ढाई लाख से अधिक पुस्तकें हैं। वर्ष 1969 में खुदा बख्श की ओरिएंटल लाइब्रेरी को संसद के अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया। अब यह पूरी तरह से भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है और इसका प्रबंधन एक परिषद द्वारा किया जा रहा है। बिहार का राज्यपाल इस परिषद का पदेन अध्यक्ष होता है। इस पुस्तकालय में एक प्रिंटिंग प्रेस भी है जिससे यहां की एक त्रैमासिक पत्रिका छापी जाती है। यहां प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित करने में मदद करने के लिए एक संरक्षण प्रयोगशाला भी है।

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