यह मथुरा जिले में एक पवित्र हिंदू स्थल है, जो गिरिराज नामक पहाड़ी पर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने सात दिन तक गोवर्द्धन पर्वत को अपनी कनिष्का (छोटी उंगली) पर धारण किया था। उन्होंने ऐसा बृज को देवराज इंद्र (वर्षा के देव) के कोप के कारण होने वाली मूसलाधार वर्षा से बचाने के लिए किया था, क्योंकि इंद्र देव इस बात से अप्रसन्न थे कि बृजवासियों ने उनकी पूजा करना बंद कर दिया था। एक अन्य किंवदंती के अनुसार भगवान कृष्ण की दिव्य लीला का हिस्सा बनने के लिए यह पहाड़ी स्वर्ग से उतर आयी थी। आज यह माना जाता है कि गोवर्द्धन पहाड़ी की परिक्रमा पूरी करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।
भक्तों के लिए गोवर्द्धन का बहुत महत्व है, जो कृष्ण जन्माष्टमी और देवताओं से जुड़े अन्य त्यौहारों में यहां आते हैं। यहां गोवर्द्धन की एक विशाल प्रतिमा है, जिसमें श्रीकृष्ण और उनके जीवन की झांकियां दर्शायी गई हैं।
निसंदेह परिक्रमा करना गोवर्द्धन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, हालांकि यहां भगवान कृष्ण से जुड़ी मनोहारी घटनाएं भी दर्शायी गई हैं, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। हालांकि इतिहासकारों के लिए संभवतः इसका इतना महत्व न हो। आप पहले गोवर्द्धन के पहले मुख्य मंदिर में जा सकते हैं, जिसे हरदेव जी के नाम से जाना जाता है। इसमें देवी राधा और श्रीकृष्ण की भव्य मूर्तियां हैं और इसके अलावा उनके जीवन की अन्य घटनाओं को भी दर्शाया गया है। जब आप गोवर्द्धन जाएं तो राजा भगवानदास द्वारा बनवाई गई एक बड़े पत्थर की पानी की टंकी ‘मानसी गंगा’, कुसुम सरोवर (जहां गोपियां कृष्ण की प्रतीक्षा करती थीं) और राधा कुंड (जहां देवी राधा और भगवान कृष्ण गोपियों से मिलते थे) को देखना न भूलें।

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