यह मंदिर वर्ष 1815 में ग्वालियर प्रांत के कोषाध्यक्ष सेठ गोपालदास पारिख द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह मंदिर मथुरा के उत्तर में यमुना नदी के किनारे विश्राम घाट पर स्थित है।
सुंदर रंग और पीले स्तंभों के पुष्प डिजाइन मंदिर के बड़े हॉल को सुशोभित करते हैं, जो एक उच्च मंच पर स्थित है। भगवान कृष्ण के काले संगमरमर पर उकेरी गई मूर्ति है, जबकि उनकी सखी राधा रानी की मूर्ति सफेद संगमरमर पर उकेरी गई है, जो हमें अभिभूत कर देती है। एक सुंदर राजस्थानी शैली का द्वार शानदार सुसज्जित प्रांगण की ओर जाता है। भक्तगण मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर उकेरी गई देवी-देवताओं की मूर्ति को देखने का आनंद ले सकते हैं।
मथुरा के अधिकांश मंदिरों की भांति होली और कृष्ण जन्माष्टमी के त्योहारों के अवसर पर द्वारिकाधीश मंदिर में हजारों तीर्थयात्री आते हैं, हालांकि कुछ विशेष उत्सव भी यहां मनाए जाते हैं। इस मंदिर में श्रावण मास अर्थात जुलाई-अगस्त के दौरान ‘हिंडोला’ उत्सव का आयोजन किया जाता है। फूल और रोशनी से मंदिर की हर सतह को सजाया जाता है। फोटोग्राफरों के लिए एक शानदार दावत की व्यवस्था की जाती है। एक अन्य त्योहार, जिसे ‘झूला’ के रूप में मनाया जाता है, श्रावण के अंत में द्वारिकाधीश के मंदिर में मनाया जाता है, जो बरसात के आगमन का प्रतीक है। इस दौरान भगवान द्वारिकाधीश का सोने और चांदी से बना झूला दर्शन के लिए रखा जाता है।

अन्य आकर्षण