तमिलनाडु का महाबलीपुरम यूनेस्को द्वारा घोषितएक विश्व धरोहर स्थल होने के साथ.साथ एक रमणीय समुद्र तट और पर्यटकों के लिए एक मनोरंजकसर्फिंग हब भी है बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर बसाए तमिलनाडुका सीमांत शहर मामल्लपुरम या महाबलीपुरमए एक सुंदर तटीय गंतव्य स्थान हैए जो धीरे.धीरेदेश का सर्फिंग हब बनता जा रहा हैए जहां लोग समुद्र की लहरों के साथ कुछ पल गुज़ारनेके लिए चले आते हैं। प्राचीन शहर महाबलीपुरम का निर्माण पल्लव रजाओं द्वारा 6वीं से7वीं शताब्दी के बीच किया गया। पल्लव राजाओं को कला और शिल्प में काफी रुचि थी। महाबलीपुरममें यूनेस्को में सुचिबद्ध अनेक विश्व धरोहर स्थल मौजूद हैं। यहां के विस्मयकारी केवटेम्पल्स ;गुफा मंदिरद्धए मूर्तियां और स्मारक उस समय के कारीगरों के कौशल की ओर आपकाध्यान आकर्षित करते हैं। पत्थरों को काट कर चट्टानों पर की गई असाधारण नक्काशी को देखकरऐसा लगता हैए जैसे यह एक खुला संग्रहालय ;ओपेन एयर म्यूज़ियमद्ध हो। ग्रेनाइट पत्थरोंसे निर्मित मंदिरों पर की गई नक्काशियांए हिंदू महाकाव्य महाभारत की कहानियों को प्रतिबिंबितकरती हैं। गुजरे जमाने का संपन्न बंदरगाह आज एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैए जो वहांपाए जाने वाले समुद्री कौड़ियों से बने आभूषणए समुद्री भोजन ;सीफ़ूडद्धए कैफे और बाजारोंतथा सुंदर एवं लुभावने समुद्रतट के लिए प्रसिद्ध है।
आप यहां के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों पर पहुंचतेहैं तो महसूस होगा कि इतिहास आपके सामने हैए लेकिन महाबलीपुरम के प्राचीन समुद्र तटएजो गर्म धूप के साथ हरे.भरे पेड़ों से घिरे हैंए लहरों को छूने के लिए आमंत्रित करतेहैं। जून और सितंबर महीनों के बीच जब समुद्री लहरें अनुकूल होती हैंए तब समुद्र तटके किनारे विशेषज्ञों द्वारा सर्फिंग ट्रेनिंग सेशन का आयोजन किया जाता है। यह शहरचेन्नई और पुदुचेरी जाने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख पड़ाव है।
महाबलीपुरम 7 वीं से 10 वीं शताब्दी के बीच एकप्रमुख बंदरगाह हुआ करता था। ऐसी किंवदंती है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने असुरराजा महाबली का वध किया थाए इसलिए इस स्थान का नाम महाबलीपुरम पड़ा। कहा यह भी जाताहै कि पल्लव राजा नरसिंह देव वर्मन अपनी कुश्ती कौशल के लिए प्रसिद्ध थेए जिन्हें मामल्लभी कहा जाता थाए उन्होंने अपनी राजधानी कांचीपुरम से यहां स्थानांतरित किया और इस स्थानका नाम मामल्लपुरम पड़ा। पल्लव राजाओं के शासनकाल में अनेक महान कलाकारोंए नर्तकियोंएकवियोंएऔर लेखकों ने यहां अपने पैर जमाए और यहां की कला और संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ी।पल्लवों ने वहां उपलब्ध संसाधनों का अच्छा उपयोग किया और मामल्लपुरम को एक ऐसा केंद्रबनायाए जहां वे कला और वास्तुकला की नई शैलियों के अग्रदूत बन गए। हालांकिए पल्लवोंकी सरलता एवं पटुता सदियों तक दुनिया से छिपी रहीए लेकिन जब इस क्षेत्र के गौरवशालीइतिहासए संस्कृति और स्थापत्य कला का पता चलाए तो यह अपने अद्भुत वास्तुशिल्पए भव्यसमुद्र तटोंए पूर्ण शांति और मंत्रमुग्ध करने वाले मंदिरों के लिए तेजी से दुनिया भरमें लोकप्रिय हो गया। यह स्थान पल्लव राजाओं की आकर्षक एवं मनमोहक किस्से.कहानियोंके लिए भी प्रसिद्ध है।

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