शौर्य व पराक्रम से भरी हुई अदम्य राजपूताना संस्कृति के सबसे शानदार प्रतीकों में से एक है चित्तौड़गढ़ का किला। लगभग 180 मीटर ऊंची एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ यह किला 240 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है, और यहाँ से अद्भुत दृश्य दृष्टिगत होता है। किंवदंती है कि इस किले का निर्माण महाभारत काल में पाँच पांडवों में से एक, भीम द्वारा किया गया था। यह अन्दर तक प्रभावित कर देने वाला एक महान किला है, जिसके एक-एक कण में एक ओर इतिहास की त्रासदियों के मर्मान्तक हृदयविदारक क़िस्से भी बसे हुए हैं, तो दूसरी ओर असाधारण शौर्य के स्वामी उन वीर पुरुषों और उनकी उतनी ही स्वाभिमानी व अद्भुत महिलाओं की कहानियों भी गूँजती हैं। इसकी तलहटी से एक किलोमीटर की घुमावदार सड़क से होते हुए आप किले के निकट आते हैं, और सात फाटकों से गुज़र कर रामपोल अर्थात राम के द्वार तक पहुंचते हैं जोकि अभी भी उपयोग में है। 

दूसरे फाटक से तीसरे फाटक तक जाते समय, आपको रास्ते में दो सुन्दर छतरियाँ दिखाई देती हैं, जिन्हें 1568 में मुगल बादशाह अकबर किए गए आक्रमण के दौरान भीषण पराक्रम का परिचय देते हुए अपने प्राण युद्धभूमि में न्यौछावर कर देने वाले दो वीर रणबांकुरों, जयमल और कल्ला की स्मृति व सम्मान में बनाया गया था। इस किले के मुख्य द्वार का नाम सूरजपोल अर्थात सूर्य द्वार है। 

इस किले में आप बहुत से शानदार स्मारक देखेंगे, जिनमें विजय स्तम्भ, कृति स्तम्भ, राणा कुंभा का महल, रानी पद्मिनी का महल, मीरा बाई को समर्पित एक मंदिर और ऐसे ही कई अन्य स्मारक शामिल हैं। इस किले में आप कई जैन मंदिर भी देख सकते हैं। और किले के ऊपर से तो चित्तौड़गढ़ शहर का ऐसा शानदार नज़ारा देखने को मिलता है कि उसकी सुन्दरता आपकी आँखों में बस जाती है।  

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