चेन्नई के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक माना जाता कपालेश्वर मंदिर, भगवान शिव का एक मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव की पत्नी, देवी पार्वती की पूजा की जाती है, जो देवी करपगामबल के अवतार में हैं। माना जाता है कि वह 'कल्पवृक्ष की देवी' है। शुक्रवार की पूजा के एक अनुष्ठान के रूप में, देवी करपगामबल को सोने के सिक्कों से बना एक माला भेंट की जाती है जिसे कासू माला कहा जाता है।

वास्तुकला की द्रविड़ शैली की एक उत्कृष्ट मिसाल इस मंदिर की सबसे अच्छी विशेषता 37 मीटर ऊंचा गोपुरम अर्थात द्वार है। इस मंदिर में प्रवेश करने पर ज्ञानसम्बंदर नामक एक पवित्र संत की मूर्तिकला सामने दिखाई देती है। मंदिर के प्रांगण में 63 संतों की कांस्य मूर्तियाँ और चेन्नई के सबसे पुराने पेड़ों में से एक पुन्नई का पेड़ मौजूद है।

मंदिर में स्वर्ण रथ के साथ वाहन, बैल, अधिकारनंदी, हाथी, मूषक, मोर, बकरी और तोता सहित कई रोचक कृतियाँ स्थित हैं। मंदिर के मूल देवता को पहले तिरुत्तनी के पास कांची में स्थापित किया गया था।

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान पल्लवों द्वारा किया गया था । इस का संदर्भ नयनमारों के भजनों में है। हालांकि, मंदिर की वास्तुकला 300-400 साल पुरानी प्रतीत होती है। किंवदंतियों के अनुसार, यह भी माना जाता है कि यह मंदिर पल्लवों द्वारा 7 वीं शताब्दी में समुद्र के किनारे पर बनाया गया था और बाद में पुर्तगालियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। अतः किनारे से 1 किमी दूर बने मंदिर का निर्माण विजयनगर राजाओं द्वारा किया गया माना जाता है।

प्रत्येक साल मार्च-अप्रैल के महीनों में अरुवथुमूवर त्योहार के दौरान यहाँ 10 दिन तक जुलूस निकाला जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। 

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