भारत का राष्ट्रीय पषु बाघ, देष के जंगलों में दिखने वाले बहुमूल्य वन्यजीवों में से एक है। दुनिया में बाघों की आधी से अधिक आबादी भारत के इन्हीं जंगलों में बसती है। जंगल के इस राजसी प्रहरी की रक्षा के लिए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ नामक एक परियोजना वर्ष 1972 में आरंभ की गई थी। प्रारंभ में, इस वन्यजीव के संरक्षण के लिए नौ टाइगर रिज़र्व (बाघ अभयारण्य) स्थापित किए गए थे। जिम कॉर्बेट नेषनल पार्क और टाइगर रिज़र्व इन सभी रिज़र्व में से सबसे पहले स्थापित किया गया था। वर्तमान में, हमारे देष में लगभग 50 अभयारण्य विद्यमान हैं, जहां पर इस राजसी बाघ को देखने का एक अनूठा अवसर प्राप्त होता है।

नागार्जुनसागर श्रीषैलम बाघ अभयारण्य, आंध्र प्रदेष
 श्रीषैलम में स्थित, नागार्जुनसागर टाइगर रिज़र्व 3,568 वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र में फैलाया हुआ है। यह अभयारण्य लोकप्रिय नागार्जुनसागर जलाषय के निकट स्थित है। आपको यहां पर जो वन्यजीव देखने को मिलेंगे, उनमें बाघ, सियार, लंगूर, मकाक इत्यादि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त यहां पर मोर एवं ग्रे हॉर्नबिल जैसे पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियां भी देखने को मिलेंगी। यह रिज़र्व दलदली मगरमच्छ, अजगर, मॉनीटर लिज़र्ड, सॉफ्ट-षेल्ड कछुए आदि जैसे सरीसृपों की भी आश्रय-स्थली है। इस जंगल में कृष्णा नदी बहती है, जिससे यहां पर हरी-भरी और समृद्ध जैव विविधता विद्यमान है। यहां घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मई के बीच में ही है।

नमदाफ़ा बाघ अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेष
लगभग 1,807 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में व्याप्त, अरुणाचल प्रदेष में स्थित नमदाफ़ा टाइगर रिज़र्व हमारे देष के सबसे बड़े जैव विविध् ाता वाले स्थानों में से एक है। यद्यपि बाघ यहां देखने लायक वन्यजीवों में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं, इनके अतिरिक्त इस अभयारण्य में आप बर्फ में पाए जाने वाले तेंदुए, पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले धूमिल तेंदुए, लाल पांडा, हिमालयन भालू आदि जैसी दुर्लभ प्रजातियों को भी देख सकते हैं। यहां पर भेड़िये, लोमड़ियां, यूरोप व एषिया में पाए जाने वाले ऊदबिलाव, चित्तीदार लिनसांग, भारत में मिलने वाले छोटे ऊदबिलाव, छोटे भारतीय कीलक, झिबरी बिल्लियां, एषियाई सुनहरी बिल्लियां और कई अन्य प्रकार के जीव-जंतु पाए जाते हैं।

पखुई बाघ अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेष 
पखे या पखुई टाइगर रिज़र्व षाही बंगाल बाघ का निवास स्थान है। जंगल में आपको इस बड़ी बिल्ली को अपने वास्तविक स्वरूप में देखने का षानदार अवसर मिलेगा। इसके अलावा यहां पर तेंदुए, पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले धूमिल तेंदुए, हिमालय में रहने वाले काले भालू, हाथी, सियार, काकड़, सांभर, पाढ़ा इत्यादि भी देखने को मिलेंगे।

 

काम्लांग बाघ अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेष
लोहित में स्थित यह अभयारण्य बाघों के अलावा विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों की आश्रय-स्थली है। इनमें हाथी, सूअर, कस्तूरी बिलाव, बंदर, हिरण, लंगूर, उड़ने वाली गिलहरी, हॉर्नबिल आदि षामिल हैं। बाघ अभयारण्य 783 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां बाघ को उनके वास्तविक स्वरूप में देखने का एक अद्भुत अवसर मिलता है।

मानस बाघ अभयारण्य, असम
हिमालय की तलहटी में स्थित मानस बाघ अभयारण्य में उष्णकटिबंधीय जंगल तथा जलोढ़ घास के मैदान विद्यमान हैं। इस टाइगर रिज़र्व में विविध प्रकार के वन्यजीव देखने को मिलते हंै। इनमें बाघ, भारतीय गैंडे, भारतीय हाथी और सानो बनैल जैसी लुप्तप्रायः प्रजातियां षामिल हैं। आप इस अभयारण्य में जिन अन्य जानवरों को देख सकते हैं, उनमें से सुनहरी लंगूर, बिजोन, हिरण, लाल पांडा आदि प्रमुख हैं। इस टाइगर रिज़र्व में पक्षियों की विभिन्न गतिविधियां देखने का अद्भुत अवसर प्राप्त होता है। आपको यहां पर चरस पक्षी, महान चितकबरा हॉर्नबिल, पुष्पांजलि हॉर्नबिल, धेनुक जैसे कई तरह के पक्षी देखने को मिलेंगे। चूंकि इस रिज़र्व को मानस नदी द्वारा पानी मिलता है, इसलिए यहां पर जलीय जीवन काफी समृद्ध है। इसे यूनेस्को द्वारा विष्व धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है।

नामेरी बाघ अभयारण्य, असम   
अरुणाचल प्रदेष के पखुई (पखे) अभयारण्य से लगा हुआ असम का नामेरी बाघ अभयारण्य लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मुख्यतः अर्ध-सदाबहार एवं आर्द्र पर्णपाती वन पाए जाते हैं। यहां गन्ना और बांस की झाड़ियां हैं तथा नदी के किनारे घास के संकरे मैदान विद्यमान हैं। यह पार्क तेजपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर पूर्वी हिमालय की तराई में स्थित है। बाघ के अलावा, आपको यहां पर तेंदुए, सांभर, चितकबरे तेंदुए, गौर, जंगली सुअर, अनेक प्रकार के भालू के साथ-साथ हाथी जैसे अन्य कई वन्यजीव भी देखने को मिलेंगे। पक्षी प्रेमियों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। हाॅर्नबिल्स, सुरमल, पुग्गा, टिटिहरी, बुलबुल इत्यादि जैसे पक्षियों की 300 से भी अधिक प्रजातियां इस अभयारण्य में पाई जाती हैं। वर्ष 1978 में इसे आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था। दो दषक बाद इसे एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिल गया। जैव-विविधता से भरे इस पार्क को देखने के लिए जंगल सफारी का आनंद लें, जो आपको अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करेगी।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य, असम
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान देष के सबसे षानदार वन्यजीव स्थलों में से एक तथा यूनेस्को द्वारा घोषित विष्व धरोहर स्थल है। यह राष्ट्रीय उद्यान दुर्लभ एक सींग वाले गैंडों की दुनिया की दो-तिहाई आबादी के निवास स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। विषाल ब्रह्मपुत्र नदी तट पर स्थित होने के कारण इस टाइगर रिज़र्व में आर्द्रभूमि, जंगल और घास के मैदान विद्यमान हैं। इस अभयारण्य में बाघों की एक बड़ी आबादी निवास करती है। इसके अलावा यहां पर चट्टानों में पाए जाने वाला अजगर, धब्बेदार अजगर और सबसे लंबा विषैला सांप किंग कोबरा जैसे सांप भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। यद्यपि बारहसिंगा और जंगली भैंसे यहां हर तरफ़ दिखाई दे जाते हैं। अगर आप भाग्यषाली हैं, तो आपको इस अभयारण्य के बीच से गुज़रता हाथियों का झुंड भी दिखाई देगा। यह अभयारण्य प्राचीन मंदिरों, निर्मल झरनों और हरे-भरे चाय के बागों से घिरा हुआ है।

ओरांग बाघ अभयारण्य, असम
षक्तिषाली प्रवाह वाली ब्रह्मपुत्र नदी से घिरा हुआ, यह बाघ अभयारण्य महान भारतीय गैंडे, बंगाल टाइगर, साही, चील, पानी के भैंस, तेंदुए, आदि जैसे वन्यजीवों का आश्रय-स्थल है। इनके अलावा, आपको यहां पर कई प्रकार के पक्षी भी देखने को मिलेंगे। इनमें किंगफिषर, कठफोड़वा, सफेद पेलिकन इत्यादि प्रमुख हैं।

वाल्मीकि बाघ अभयारण्य, बिहार
गंगा के मैदानों में स्थित, यह बाघ अभयारण्य लगभग 568 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर आपको बाघ, आलसी भालू, लंगूर, चीतल, सांभर, गौर, काले हिरण आदि देखने को मिलेंगे।

इंद्रावती बाघ अभयारण्य, छत्तीसगढ़
जंगल के बीच में कलकल बहती इंद्रावती नदी के नाम पर ही इंद्रावती बाघ अभयारण्य का नामकरण हुआ है। जंगली जानवरों में रुचि रखने वालों को इस टाइगर रिज़र्व में वन्यजीवों की रोमांचकारी गतिविधियां देखने को मिलेंगी। षानदार बाघ के अलावा इस अभयारण्य में जंगली भैंसे भी बड़ी संख्या में देखने को मिलते हैं। यह टाइगर रिज़र्व 1,258 वर्ग किलोमीटर के मुख्य क्षेत्रफल में व्याप्त है। इस अभयारण्य में वन्यजीवों का स्वाभाविक स्वरूप और उनकी विभिन्न गतिविधियां देखकर आपको एक यादगार अनुभव प्राप्त होगा।

उदंती-सीतानदी बाघ अभयारण्य, छत्तीसगढ़
रायपुर से लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाली से परिपूर्ण यह अभयारण्य छोटी पहाड़ियों एवं साल के जंगलों से घिरा हुआ है। इस अभयारण्य का नाम सीतानंदी नदी पर पड़ा है। इस नदी की उत्पत्ति इस अभयारण्य के बीच में होती है और यह देवकूट के निकट महानदी से जा मिलती है। इस अभयारण्य में सीतानदी के अलावा सोंढुर एवं लेलंग नदियां भी बहती हैं। यहां स्थित विषाल सांढुर बांध देखने लायक जगह है। समृद्ध वनस्पति एवं वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध यह अभयारण्य देष के बेहतरीन अभयारण्यों में से एक है। यहां पर आपको जो वन्यजीव देखने को मिलेंगे, उनमें बाघ, तेंदुए, सियार, चमगादड़, जंगली बिल्ली, काले हिरण, बायसन, भालू, चीतल, सांभर, नीलगाय, कोबरा एवं अजगर प्रमुख हैं। यह अभयारण्य पक्षियों की गतिविधियां देखने वालों के लिए भी उपयुक्त जगह है। यहां पर पक्षियों की 175 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें छोटा बसंता, सफेद बगुला एवं सारस प्रमुख हैं।

अचानकमार बाघ अभयारण्य, छत्तीसगढ़
बिलासपुर ज़िले में स्थित अचनाकमार टाइगर रिज़र्व, में आपको अनूठे वन्यजीव देखने को मिलेंगे। यह बाघ अभयारण्य साल और बांस के पेड़ों से भरा पड़ा है। इस जंगल में आपको बाघ, उसके स्वाभाविक स्वरूप में देखने को मिलेगा। यहां जाने का सबसे अच्छा समय नवम्बर से जून तक है।

पलामू बाघ अभयारण्य, झारखंड
लगभग 414 वर्ग किलोमीटर के कोर क्षेत्र में फैला, पलामू टाइगर रिज़र्व बेतला राष्ट्रीय उद्यान का एक हिस्सा है। षानदार दिखने वाले बाघ के अलावा, आपको यहां पर तेंदुए, जंगली कुकर, पैंगोलिन, भेड़िये, सुस्त भालू, सांभर, काकड़, माउस हिरण, भारतीय रेले, चार सींग वाले मृग आदि भी देखने को मिल सकते हैं। रिज़र्व में हाथियों की आबादी भी है। पलामू को 1974 में टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया था। 

बांदीपुर बाघ अभयारण्य, कर्नाटक
लगभग 874.20 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला बांदीपुर बाघ अभयारण्य 1973-74 में स्थापित किया गया था। बाघों के अलावा आपको यहां पर जंगली कुकुर, जंगली सूअर, सियार, चीते, मालाबार गिलहरी, सुस्त भालू, काली धारी वाले खरगोष, साही, लाल सिर वाले गिद्ध, कठफोड़वा, भूरे उल्लू, पतंगे, किंगफिषर, गोह, भारतीय पहाड़ी अजगर, उड़ने वाली छिपकली, अजगर, चूहा सांप और कोबरा भी देखने को मिलेंगे। यह देष के प्रमुख बाघ अभयारण्यों में से एक है। इसके उत्तर में निकटवर्ती नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, तमिलनाडु में मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य और केरल में वायनाड वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। साथ ही इस अभयारण्य में सबसे बड़ा जीवमंडल भी है। इन जंगलों को सामूहिक रूप से नीलगिरी जीवमंडल रिज़र्व के रूप में जाना जाता है। इतना ही नहीं यह अभयारण्य षिकारियों तथा वनों की कटाई से पूरी तरह संरक्षित हैं। इसमें जंगली मुर्गी और हरे कबूतर जैसे पक्षी भी पाए जाते हैं। इस अभयारण्य में केवल जीव ही नहीं, अपितु कई प्रकार के इमारती लकड़ी के पेड़ों जैसे सागौन, षीषम, चंदन, झुरमुटीदार बांस, भारतीय कीनो के साथ-साथ आपको यहां पर फूलों और फलों से लदे कदंब, आंवला, भिर्रा, अमलतास के पेड़ भी देखने को मिलेंगे।
जंगल के वास्तविक अनुभव के लिए पर्यटकों को रिज़र्व की परिधि में बने जंगलों के लॉज में कुछ दिन अवष्य बिताने चाहिए। ये लॉज आरामदायक कमरों से सुसज्जित हैं। इनमें अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं, यहां पर ठहरने के दौरान आपको आनंद की अनुभूति होगी। इस जंगल में पर्यटकों को जीप से भी घुमाया जाता है। इससे आगंतुक बांदीपुर के इन जीवों को करीब से देख सकते हैं। अगर वे भाग्यषाली हुए तो उन्हें षानदार बाघ की झलक भी देखने को मिलेगी। जिन लोगों को वन्यजीवों की गतिविधियों में रुचि है, उन्हें यहां पर अवष्य आना चाहिए।

नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य, कर्नाटक
बांदीपुर टाइगर रिज़र्व से जुड़ा नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, देष के प्रमुख बाघ अभयारण्यों में से एक है। यह नीलगिरी बायोस्फीयर रिज़र्व का ही एक हिस्सा है। यहां षिकार करने वाले और षिकार होने वाले वन्यजीवों का उचित अनुपात विद्यमान है। यह अभयारण्य बाघों, तेंदुओं, चीतल, सांभर, गौर और एषियाई हाथियों की आश्रय-स्थली है। कन्नड़ में नागरहोल का अर्थ सांप की धारा होता है। इस अभयारण्य का नाम जंगल से होकर गुज़रने वाली सर्पीन नदी के नाम पर पड़ा है।
यह अभयारण्य 643 वर्ग किलोमीटर के प्रभावषाली कोर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस टाइगर रिज़र्व में पक्षियों की 250 प्रजातियां जैसे बगुला, सारस, सफेद बगुला, बत्तख, चील, बाज, षिकारी बाज, तीतर, मोर, कबूतर, खंजन, टिटहरी, कठफोड़वा, चिरई, युद्धक पक्षी, चहचहाने वाली चिड़िया, उल्लू और अन्य प्रकार के परिंदे देखने को मिलते हैं। कुछ सरीसृप भी यहां पर पाए जाते हैं, जैसे कि दलदली मगरमच्छ, सितारा कछुआ, धामिन सांप, दबौया सांप एवं भारतीय अजगर। वन्यजीवों को उनके वास्तविक स्वरूप में देखने के लिए, आप चाहें तो टाइगर रिज़र्व द्वारा उपलब्ध कार की सुविधा ले सकते हैं। उसमें आपके साथ एक गाइड होगा, जो अभयारण्य के बारे में विस्तार पूर्वक बताएगा। 

डंडेली बाघ अभयारण्य, कर्नाटक बेलगाम
से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डंडेली बाघ अभयारण्य प्रकृति और वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक उत्तम भ्रमण स्थल है। घने जंगलों और हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा यह बाघ अभयारण्य एक समृद्ध जैव विविधता से परिपूर्ण है। यहां कई पषु जैसे बाघ, दुर्लभ काले तेंदुए, हाथी, जंगली कुकर और हिरण निवास करते हैं। हालांकि यहां के मुख्य आकर्षण मगरमच्छ हैं। यदि आप भाग्यषाली हैं तो यहां किंग कोबरा को भी देख सकते हैं। यह वन्यजीव अभयारण्य पक्षीप्रेमियों के लिए विषेष रूप से अद्भुत स्थल है क्योंकि यह यहां नीलकंठ बसंता पक्षी, धनेष पक्षी, मालाबार चितकबरा धनेष और पेरेग्रीन बाज जैसी पक्षी प्रजातियां निवास करती हैं। इस अभयारण्य के घने जंगल बांस और सागौन जैसे घने और सदाबहार वृक्षों से आच्छादित हैं, और इसमें भ्रमण करने का सबसे अच्छा तरीका खुली जिप्सी के माध्यम से जंगल सफ़ारी करके इन पषु-पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास में निवास करते देखना है। काली नदी के तट पर स्थित यह कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा अभयारण्य है और देष के सभी हिस्सों से पर्यटक यहां आते हैं।

भद्र बाघ अभयारण्य, कर्नाटक
लगभग 490 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला भद्र वन्यजीव अभयारण्य पष्चिमी घाट की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह एक सुरम्य स्थान है जो वन्यजीवों में रुचि रखने वालों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करता है। अभयारण्य का नाम भद्र नदी के नाम पर रखा गया है, जो जंगल से होकर गुज़रती है।


श्री बिलगिरी रंगनाथस्वामी बाघ अभयारण्य, कर्नाटक
यह बीआर हिल्स टाइगर रिज़र्व के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसे 2010 में बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था। वन्यजीवों में रुचि रखने वालों का सपना होता है कि वे यह टाइगर रिज़र्व देखें। यह अभयारण्य 5,091 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और 574 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस टाइगर रिज़र्व में बाघ के अलावा हाथी, बाइसन, आलसी भालू, हिरण, साही आदि देखने को मिलते हैं। पक्षियों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों के लिए यह किसी जन्नत से कमतर नहीं है। उन्हें यहां पर षाह बुलबुल, कलगी वाला बाज, चील जैसे परिंदे देखने को मिलेंगे। इस बाघ अभयारण्य को देखने का उचित माध्यम जीप सफारी अथवा हाथी सफारी है। आप चाहें तो यहां पर ट्रैकिंग भी कर सकते हैं। 

पेरियार बाघ अभयारण्य, केरल पेरियार
वास्तव में वन का एक साम्राज्य है। इस अभयारण्य में राजसी बाघ हैं, जो आपको हरियाली के बीच मैदानों में घूमते हुए दिखाई दे जाएंगे। आप स्वयं को भाग्यषाली समझें यदि आप इन्हें आराम करते या सुस्ताते हुए देख पाएं। बाघों की भव्यता और उनकी काया देखकर आप हतप्रभ रह जाएंगे। पेरियार भारत में 27 बाघ अभयारण्यों में से एक है। यह केरल का सबसे पुराना वन्यजीव अभयारण्य है, साथ ही सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र होने के लिए प्रसिद्ध है। बाघ अभयारण्य 192,001 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। यह अभयारण्य विभिन्न वनस्पतियों और वन्यजीवों के एक सुरम्य परिदृष्य से भरापूरा है। इस अभयारण्य की सुंदर झील में नौका विहार की सुविधा भी है। यात्री यहां हाथियों के झुंड और पेड़ों पर चहकते पक्षियों की मधुर ध्वनि के साथ हिरणों को चरते हुए देख सकते हैं। यह अभयारण्य मुन्नार से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।यहां फूलों के पौधों की 1,965 प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इसमें घास की 171 प्रजातियां और ऑर्किड की 143 प्रजातियां षामिल हैं। एकमात्र दक्षिण भारतीय षंकु वृक्ष (कॉनिफर) में से एक पॉडोकार्पस वालिचियानस भी यहां उगता है।
स्तनधारियों में तेंदुए, सांभर हिरण, भारतीय जंगली भैंसा, भारतीय जंगली कुकुर, एषियाई हाथी और काकड़ सहित 60 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। यदि आप पेरियार झील में नाव की सवारी करते हैं, तो आप चिकने ऊदबिलाव भी देख सकते हैं। लुप्तप्रायः लंबी पूंछ वाले मकाक, बोनट मकाक और नीलगिरी लंगूर भी पेड़ों के बीच खेलते हुए देखे जा सकते हैं। इस बाघ अभयारण्य में पक्षियों की 265 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें मालाबारी सिलेटी धनेष, भारतीय चितकबरे धनेष, सफेद पेट वाले महालत, मालाबारी ट्रोगन आदि प्रमुख हैं।

परम्बिकुलम बाघ अभ्यारण्य, केरल 
पहले परम्बिकुलम वन्यजीव अभयारण्य के रूप में जाना जाने वाला, परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व, पलक्कड़ षहर से लगभग 3 घंटे की दूरी पर, पष्चिमी घाट के नेलीमपथी अनामलाई में स्थित है। यह पहला स्थान है, जहां पर वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित सागौन वृक्षारोपण किया जाता है और यहां पर दुनिया का सबसे पुराना और सबसे ऊंचा सागौन का पेड़ है। यह पेड़ लगभग 50 मीटर ऊंचा और 17 मंज़िला इमारत जितना लंबा है! इस रिज़र्व में 30 से अधिक बाघ विचरण करते हैं और प्रायः हर मौसम में दिखाई देते हैं। यहां कई अन्य जानवर, पक्षी तथा मछलियां भी देखी जा सकती हैं। यह रिज़र्व, वन्यजीव सफ़ारी के अलावा अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है। लहरदार पहाड़ियों के ऊपर से घने जंगल का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। ऊपर से देखने पर हरे-भरे जंगल का नज़ारा किसी स्वर्ग की भांति दिखता है। तालाब का जैतूनी नीले रंग का पानी और इस पर बगल से निकलने वाली धाराएं देखने में अतिसुंदर लगती हैं। इस रिज़र्व के भीतर कुछ आदिवासी बस्तियां विद्यमान हैं, जहां प्रायः पर्यटकों को दोपहर का भोजन खाने को मिल जाता है।

कान्हा बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेष
बंगाल रॉयल टाइगर के घर के तौर पर विख्यात कान्हा बाघ अभयारण्य 917 वर्ग किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस पार्क के हरे-भरे मैदानों और साल वृक्षों के घने जंगलों ने अंग्रेज़ी उपन्यासकार रुडयार्ड किपलिंग को इतना लुभाया कि उन्होंने इसे अपने प्रतिष्ठित उपन्यास ‘द जंगल बुक’ की पृष्ठभूमि बना डाला। इस अभयारण्य को विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके बारहसिंगा की संख्या बढ़ाने का गौरव भी प्राप्त है। इस बाघ अभयारण्य में तेंदुए और जंगली कुकुर भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। नेषनल ज्योग्राफ़िक चैनल की पुरस्कृत फ़िल्म ‘लैंड ऑफ़ द टाइगर्स’ भी यहीं फ़िल्माई गई थी। यहां के लंबे-चैड़े हरियाले क्षेत्र कुदरत के कई अनोखे नज़ारे प्रस्तुत करते हैं। चाहे बमनी दादर की ओर जाएं या सनसेट पाॅइंट की ओर, चरते हुए चित्तीदार सांभर और भैंसे दिख जाएंगे। इस बाघ अभयारण्य में घूमते हुए इन जानवरों को इनके प्राकृतिक आवास में देखना एक यादगार अनुभव होता है।
भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाले पार्क के तौर पर विख्यात कान्हा बाघ अभयारण्य की स्थापना प्रोजेक्ट टाइगर के हिस्से के रूप में सन् 1974 में हुई थी। यह पार्क वनस्पतियों, जीवों और स्थानीय पर्यावरण-प्रणाली के संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाने वाले अभयारण्य के तौर भी जाना जाता है। गर्मी के दिनों में यह अभयारण्य बंद कर दिया जाता है। इसलिए यहां घूमने के लिए मध्य अक्टूबर से अप्रैल के बीच ही कार्यक्रम बनाना चाहिए। सर्दियों में यहां अनेक प्रकार के प्रवासी पक्षी भी आ जाते हैं। अतः इस दौरान पक्षियों की गतिविधियां देखने का अनोखा अनुभव भी लिया जा सकता है।

पेंच बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेष
नागपुर से लगभग 95 किलोमीटर दूर पेंच बाघ अभयारण्य मध्य प्रदेष राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। मन को लुभाने वाली मनोहर छटा, वनस्पतियों और वन्यजीवों के खज़ाने को अपने आंचल में समेटे यह बाघ अभयारण्य, एडवेंचर एवं जंगली जीवों में रुचि रखने वालों के लिए बहुत ही कमाल की जगह है। षानदार बंगाल टाइगर, चीतल, भेड़िया, भारतीय तेंदुआ, गौर, चार सींग वाले हिरण, आलसी भालू आदि इस अभयारण्य में जगह-जगह पर आसानी से देखे जा सकते हैं। ये वन्यजीव पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसके अलावा महोख, मोर, दिघोंच, अडई, नीलकंठ पक्षी, मुनिया, नीली किंगफिषर, तांबट, लाल रंग की बुलबुल जैसे अनेक परिंदे पाए जाते हैं।    
इस अभयारण्य का नाम पेंच नदी पर पड़ा है, जो इस अभयारण्य में उत्तर से दक्षिण दिषा में बहती है। पेंच नदी इस अभयारण्य को दो समान पष्चिमी और पूर्वी हिस्सों में बांटती है। इनमें से एक हिस्सा सिवनी और दूसरा हिस्सा छिंदवाड़ा ज़िले में पड़ता है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 1998-99 में बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था।  

पन्ना बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेष
षानदार घुमावदार केन नदी और सुंदर झरनों वाला पन्ना बाघ अभयारण्य वन्यजीवों में रुचि रखने वालों तथा एडवेंचर के षौकीन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बाघों के साथ यहां पर घड़ियाल भी देखने को मिलते हैं। यह मगरमच्छ परिवार का एक विषाल सरीसृप है जो केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही पाया जाता है। इस बाघ अभयारण्य में अनेक प्रकार की वनस्पति एवं वन्यजीव पाए जाते हैं। यहां पर एक या दो दिन बिताएं और जीप अथवा हाथी पर बैठकर इस जगह का भ्रमण करें।

सतपुड़ा बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेष
इस अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, जंगली भालू, चार सींग वाले हिरण और नीलगाय जैसे अनेक वन्यजीवों के अलावा, विविध प्रकार के पक्षी भी देखने को मिलेंगे। साथ ही परिंदों की कई प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें षाह बुलबुल, मधुमक्खियों के अंडे खाने वाला पक्षी और हॉर्नबिल प्रमुख हैं। इन जीव-जंतुओं के कारण सतपुड़ा बाघ अभयारण्य वन्यजीवों में रुचि रखने वालों के लिए किसी जन्नत से कमतर नहीं है। यहां पर उड़ने वाली गिलहरी और रीसस बंदर भी पाए जाते हैं। संस्कृत में ‘‘सतपुड़ा‘‘ का मतलब सात पहाड़ियां होता है और यहां दर्रे, झरने, नदियां, संकरी खाइयां व घने जंगल विद्यमान हैं।
लगभग 524 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला यह उद्यान 1981 में स्थापित किया गया था। यह पचमढ़ी बायोस्फीयर रिज़र्व का एक हिस्सा है। इसमें स्तनधारियों की 50 प्रजातियां, पक्षियों की 254 प्रजातियां, सरीसृपों की 30 प्रजातियां, तितलियों की 50 प्रजातियां और कई किस्म के पेड़ और झाड़ियां पाई जाती हैं।

संजय डुबरी बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेष
यह बाघ अभयारण्य लगभग 1,674 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस टाइगर रिज़र्व में डुबरी वन्यजीव अभयारण्य और संजय राष्ट्रीय उद्यान षामिल हैं। विषाल भू-भाग में व्याप्त इस वन में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां और जीव-जंतु देखने को मिलते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण बाघ है। इनके अतिरिक्त आप यहां पर तेंदुए, चिंकारा, लकड़बग्घे, सांभर, हिरण, जंगली कुकर आदि भी देख सकते हैं।

बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य, मध्य प्रदेष
विष्व प्रसिद्ध यह बाघ अभयारण्य, जहां भारत का पहला सफेद बाघ देखा गया था, देखने लायक जगह है। भारत भर में सबसे अधिक बाघ यहीं पर पाए जाते हैं। बांधवगढ़ विंध्य पर्वतमाला पर फैला हुआ है। यहां पर 22 किस्म के स्तनधारी जीव, 250 तरह के पक्षी और 70 प्रकार की तितलियां पाई जाती हैं। साथ ही यहां कई किस्म की वनस्पतियां, ऊंची घास के मैदान और साल के घने जंगल भी हैं। इन सुविधाओं के कारण ही यहां बड़ी संख्या में जानवरों और पक्षियों का अस्तित्व बना हुआ है। बंदर और लंगूर भी यहां बहुतायत में पाए जाते हैं। इस पार्क में सैलानियों के अनोखे अनुभव के लिए लिए जीप सफारी और हाथी की सफारी की सुविधा भी उपलब्ध है।

ताडोबा अंधारी बाघ अभयारण्य, महाराष्ट्र
ताडोबा अंधारी बाघ अभयारण्य महाराष्ट्र में सबसे बड़े अभयारण्यों में से एक है। यह अभयारण्य बाघों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों के लिए किसी स्वर्ग से कमतर नहीं है। पार्क घने जंगलों, चिकनी घास के मैदानों और गहरी घाटियों की कुदरती खूबसूरती समेटे भारत के कुछ चुनिंदा बाघ अभयारण्यों में से एक है। यहां पर्यटक बाघों और उनके कुदरती ठिकानों को आसानी से देख सकते हैं। झूमते सागौन के पेड़ों से भरे इस बाघ अभयारण्य की सुंदरता को देखने का सबसे अच्छा माध्यम खुली जिप्सी में सैर करना है। इस अभयारण्य में आलसी भालू, तेंदुए, गौर, नीलगाय, कस्तूरी बिलाव, धारीदार लकड़बग्घे, सांभर, काकड़, चीतल और जंगली कुकर भी पर्यटकों को लुभाते हैं। राष्ट्रीय उद्यान को तीन वन श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिन्हें ताडोबा उत्तर रेंज, कोलसा दक्षिण रेंज और मोरहुरली रेंज के रूप में जाना जाता है। इस जंगल में कई प्रकार के साप भी पाए जाते हैं, जिनमें अजगर और कोबरा प्रमुख हंै। 

मेलघाट बाघ अभयारण्य, महाराष्ट्र
सतपुड़ा रेंज में स्थित, मेलघाट टाइगर रिज़र्व बाघ का एक प्रमुख निवास स्थान है। इसे 1974 में आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था। यह बाघ अभयारण्य 1,500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में व्याप्त है। ‘मेलघाट‘ षब्द का अर्थ है घाटों का मिलना, जो इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। यहां पर पहाड़ियों और चट्टानों से कटे हुए खड्डे देखने को मिलते हैं। यह जंगल बहुत ही घना है, जो बाघ के अलावा कई प्रकार के वन्यजीवों की आश्रय-स्थली है। यहां पर आपको पक्षियों की कई प्रकार की प्रजातियां भी देखने को मिलेंगी। विषेष रूप से चीलें बड़ी संख्या में देखने को मिलती हैं। मेलघाट घूमने का सबसे अच्छा समय दिसम्बर से मई तक है।

सह्याद्री , महाराष्ट्र  सह्याद्री
रेंज में स्थित, यह टाइगर रिज़र्व महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा राज्यों में फैला हुआ है। रिज़र्व के उत्तरी भाग में कोयना वन्यजीव अभयारण्य और दक्षिणी में चंदोली राष्ट्रीय उद्यान है। बाघों के अलावा, तेंदुए एक बेषकीमती दृष्य हैं। लगभग 1,165 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह अभयारण्य अपनी अनूठी वनस्पतियों के लिए विख्यात है।

बोर बाघ अभयारण्य, महाराष्ट्र
लगभग 138 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला बोर एक विषाल बाघ अभयारण्य है। यह महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले के हिंगनी क्षेत्र में स्थित है। यहां पर आपको बाघ, तेंदुए, बंदर, भालू, जंगली कुकुर जैसे वन्यजीव देखने को मिलेंगे। यह अभयारण्य सागौन, ऐन, तेंदू और बांस जैसी वनस्पति प्रजातियों का आश्रय-स्थल है। अभयारण्य की यात्रा का सबसे अच्छा समय गर्मियों की सुबह है। बोर वन्यजीव अभयारण्य के संबंध में सबसे अच्छी बात यह है कि यह 61 किलोमीटर के सीमित क्षेत्र को कवर करता है। इसमें जंगली जानवरों, विषेष रूप से आकर्षक बाघ को देखना बहुत रोमांचकारी अनुभव प्रदान करता है। एक षानदार अनुभव प्राप्त करने के लिए, पर्यटक महाराष्ट्र के वन विभाग द्वारा प्रबंध् िात वन गेस्ट हाउस में रह सकते हैं। वन्यजीव अभयारण्य का नामकरण कलकल करती बोर नदी से हुआ है, जो इसे दो भागों में विभाजित करती है।

नवगांव-नागजीरा बाघ अभयारण्य, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में सबसे लोकप्रिय वन्यजीवों में से एक, नागजीरा बाघ अभयारण्य भंडारा ज़िले में स्थित है। यह अभयारण्य भारत के सभी कोनों से प्रकृति-प्रेमियों और वन्यजीव प्रेमियों को आकर्षित करता है। इस अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, बाइसन, सांभर, नीलगाय, चोल, जंगली सूअर, भालू और जंगली कुकुर सहित अनेक जानवरों की प्रजातियां पर्यटकों को देखने को मिलती हैं। नागजीरा में विभिन्न प्रकार की तितलियां तथा पानी और धरती पर रहने वाले जानवरों और सांपों की अनेक नस्लें देखकर पर्यटक हतप्रभ रह जाते हैं। पर्यटक नागजीरा बाघ अभयारण्य के निकट स्थित नवीनगांव राष्ट्रीय उद्यान की भी सैर कर सकते हैं। अभयारण्य देखने का सबसे अच्छा तरीका खुली जीप में सवारी करना है। इससे पर्यटकों को जंगली जानवरों को करीब से देखने का मौका मिलता है। इटियाडोह बांध, गोथांगांव में स्थित तिब्बती षिविर और प्रतापगढ़ इस अभयारण्य की कुछ अन्य देखने लायक जगह हैं।

डम्पा बाघ अभयारण्य, मिज़ोरम
लगभग 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में व्याप्त डम्पा टाइगर रिज़र्व मिज़ोरम राज्य में स्थित सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य है। इस अभयारण्य में हाथियों, गौर, बिंतुरोंग, सोनकुकुर, भालू, बाघ के अलावा हॉर्नबिल, जंगल फाउल, तीतर और कबूतर जैसे पक्षियों की अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। मेंढकों और सरीसृपों की अच्छी संख्या के साथ-साथ यहां छिपकली की 16 प्रजातियों भी पाई जाती हैं। आइजोल से लगभग 130 किलोमीटर दूर स्थित डम्पा टाइगर रिज़र्व की यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से अप्रैल के बीच है। अभयारण्य में आने से पहले, आगंतुकों को मिज़ोरम के पर्यावरण और वन विभाग से संपर्क स्थापित करने की आवष्यकता होती है। यह अभयारण्य राज्य की उत्तरी-पष्चिमी सीमा पर स्थित है और पड़ोसी देष बांग्लादेष के साथ 80 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है।

सिमिलिपाल बाघ अभयारण्य, ओडिषा
घने जंगलों, सुंदर घास के मैदानों, प्राचीन जलप्रपातों और दुर्गम नदियांे वाला सिमिलिपाल टाइगर रिज़र्व 2,750 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। बाघों के अलावा, यह अभयारण्य पहाड़ी मैना और हाथियों के लिए भी प्रसिद्ध है। आपको यहां पर तेंदुए, काकड़, चार सींग वाले मृग, जंगली सूअर, सांभर, विषाल गिलहरी, लंगूर आदि भी देखने को मिलेंगे। आप यहां पर पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां देख सकेंगे, जिसमें भारतीय चितकबरा हॉर्नबिल, ग्रे हॉर्नबिल, मालाबार चितकबरा हॉर्नबिल इत्यादि प्रमुख हैं। इस अभयारण्य में किंग कोबरा और ट्रिकारिनेट पहाड़ी कछुए की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। रिज़र्व का अनुभव प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका जंगल सफारी है।

सतकोसिया बाघ अभयारण्य, ओडिषा
महानदी नदी के किनारे पर व्याप्त सतकोसिया टाइगर रिज़र्व जंगल में बाघ को देखने के लिए एक षानदार जगह है। इसके अलावा, यह घड़ियाल आबादी के लिए जाना जाता है। आप हाथियों, तेंदुओं, चित्तीदार हिरण, गौर, छोटा कस्तूरी मृग, आलसी भालू, सांभर आदि जैसे वन्यजीवों को भी यहां पर देख सकते हैं। इसके अलावा पक्षियों की गतिविधियां देखने में रुचि रखने वालों को यहां पर परिंदों की विभिन्न प्रजातियां देखने को मिलेंगी।

रणथम्भोर बाघ अभयारण्य, राजस्थान
लोकप्रिय रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य कभी जयपुर के षाही परिवार के सदस्यों के लिए आखेट का स्थल हुआ करता था। जयपुर से 155 किलोमीटर दूर स्थित रणथम्भोर में ढलान वाली पहाड़ियों व चट्टानों के मिश्रण, घास के मैदानों, झीलों व छोटी नदियों जैसे  विविध स्थल देखने को मिलते हैं। यहां के बीहड़ वनों में षानदार बाघ देखने का सुअवसर मिलेगा। बाघ के अतिरिक्त इस अभयारण्य में भालू, तेंदुआ, सियार, लोमड़ी, लक्कड़बग्घा, भेड़िया, चीतल, सांभर हिरण, नीलगाय, वानर, लंगूर एवं पक्षियों की अनगिनत प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इस षुष्क-पर्णपाती वन में दसवीं सदी में बना रणथम्भोर किला सुंदर परिदृष्य प्रस्तुत करता है। इसकी स्थापना 1944 में की गई थी तथा वर्तमान में यह रणथम्भोर की प्रसिद्ध बाघिन मछली के इलाके के लिए प्रसिद्ध है।
वहीं इस अभयारण्य का बाकुला क्षेत्र भी घने जंगलों से भरा-पूरा है। यहां पर अनेक पोखर एवं तालाब विद्यमान हैं। यही कारण है कि इस अभयारण्य में अधिक संख्या में वन्यजीव पाए जाते हैं। 

सरिस्का बाघ अभयारण्य, राजस्थान
कभी अलवर के महाराजा के लिए आखेट का आरक्षित क्षेत्र रही सरिस्का घाटी, वर्तमान में विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों से आबाद है। इस पार्क में बाघ, नीलगाय, सांभर, चीतल आदि वन्यजीव निवास करते हैं। यहां तक   कि षाम के समय भारतीय साही, धारीदार लकड़बग्घे, तेंदुए भी यहां पर देखे जा सकते हैं। इस स्थान पर भारतीय मोरों, चीलों, सुनहरी पीठ वाले कठफोड़वों, भारतीय सींग वाले उल्लुओं की एक बड़ी आबादी होने के कारण यह पक्षी प्रेमियों के लिए किसी जन्नत से कमतर नहीं है। इस स्थान में घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून तक ही है। 

मुकंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व, राजस्थान
रणथंभौर और सरिस्का के बाद, मुकंदरा हिल्स राजस्थान का तीसरा बाघ अभयारण्य है। लगभग 417 वर्ग किलोमीटर के मुख्य क्षेत्र में फैले इस टाइगर रिज़र्व में तीन वन्यजीव अभयारण्य - दर्रा, चंबल और जसवंत सागर षामिल हैं। बाघ के अलावा, आप यहां पर तेंदुए, सुस्त भालू, लकड़बग्घा, हिरण, चिंकारा, नीलगाय, भेड़िये और मृग देख सकते हैं। पहले के समय में यह रिज़र्व कोटा के महाराजा का षिकारगाह हुआ करता था। 

कलक्कड़ मुंडनथुराई बाघ अभयारण्य, तमिलनाडु
बाघ, तेंदुए, सांभर, आलसी भालू, छोटा कस्तूरी-मृग, भारतीय पैंगोलिन, उड़ने वाली छिपकली, किंग कोबरा, गोह, अजगर, दबौया सांप इत्यादि जैसे वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों को आश्रय देने वाला, यह रिज़र्व वन्यजीवों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए किसी खज़ाने से कम नहीं है। पक्षियों की गतिविधियों में रुचि रखने वालों को यहां पर अनेक पक्षी देखने को मिलेंगे। इनमें उल्लू, ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल, चितकबरा हाॅर्नबिल, भूरे सिर वाली बुलबुल, घास के मैदान में पाई जाने वाली लंबी पूंछ वाली चिड़िया प्रमुख हैं। यहां घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जनवरी तक है।

अन्नामलाई बाघ अभयारण्य, तमिलनाडु 
लगभग 958 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला अन्नामलाई बाघ अभयारण्य, अन्नामलाई पहाड़ियों के नीलगिरी बायोस्फीयर रिज़र्व के दक्षिण् ाी भाग में स्थित है। इसके मुख्य पर्यटन क्षेत्र को टाॅप स्लिप के नाम से जाना जाता है। समुद्र तल से 350 मीटर से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका परिदृष्य ज्यादातर घने जंगली पहाड़ियों, रोलिंग घास के मैदान, पठार और गहरी घाटियों, सदाबहार और अधर्् ा-सदाबहार जंगलों और पर्णपाती कवर से घिरा हुआ है। यहां के अर्ध-सदाबहार और गीले समषीतोष्ण आवासों में सागौन, गुलाब की लकड़ी और कई विविध उष्णकटिबंधीय प्रजातियां मौजूद हैं। पौधों की लगभग 8,000 प्रजातियों के साथ, इस अभयारण्य में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 500 प्रजातियों का बसेरा भी है। कुछ लोकप्रिय वन्यजीव जो आप यहां देख सकते हैं, उनमें तेंदुआ, हाथी, आलसी भालू, उड़ने वाली गिलहरी, जंगली भालू, जंगली कुकुर आदि प्रमुख हैं। इस अभयारण्य को 2008 में बाघ अभ्यारण्य घोषित किया गया था।  

सत्यमंगलम बाघ अभयारण्य, तमिलनाडु
तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में फैला सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व 1,408 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल पर व्याप्त है। यहां पर बाघों और गौर, तेंदुए, हाथी इत्यादि प्रजातियों की बढ़ती आबादी देखने को मिलती है। यहां के घने जंगलों में सफारी का आनंद लें, जो आपको एक रोमांचक अनुभव प्रदान करेगी। 

मुदुमलाई बाघ अभयारण्य, तमिलनाडु
लगभग 321 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला मुदुमलाई, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के जंक्षन पर स्थित है। 1,140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस बाघ अभयारण्य के उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन में नमी से भरपूर टीक वन, दलदल, सूखे सागवान के जंगल और कई प्रकार के जीव-जंतुओं का प्राकृतिक आवास है। यह पार्क विभिन्न प्रकार के पषु-पक्षियों की प्रजातियों को देखने के लिए उचित स्थल है। यहां विभिन्न प्रकार के पक्षी जैसे हॉर्नबिल, मिनीवेट, फेयरी ब्लू बर्ड और जंगली मुर्गियां देखने को मिलती हैं। यह अभयारण्य पक्षियों की विविध गतिविधियां देखने की उत्कृष्ट जगह है। यहां पर्यटक अनेक प्रकार के जंगली जानवर जैसे तेंदुए, हाथी, गौर, छोटा मृग, आलसी भालू, सांभर, चित्तीदार हिरण, काकड़, काला हिरण, मालाबार की विषाल गिलहरियां, चार सींग वाले मृग (चैसिंगा), छोटे भारतीय षावक, साही आदि भी देख सकते हैं। यदि आप भाग्यषाली हैं, तो आपको पानी के कुंड के पास बाघ भी दिख सकते हैं! पार्क में अनेक प्रकार के रेंगने वाले जीव (सरीसृप) जैसे सांप, मॉनिटर छिपकली और उड़ने वाली छिपकली आदि पाए जाते हैं। अधिक रोमांचक अनुभव के लिए पर्यटक हाथी की सवारी द्वारा भी पार्क घूम सकते हैं। वर्ष 1972 में स्थापित थेपकाडू एलीफेंट कैम्प यहां का प्रमुख आकर्षण है।

अमराबाद बाघ अभयारण्य, तेलंगाना
लगभग 2,166 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में व्याप्त अमराबाद टाइगर रिज़र्व पहले नागार्जुनसागर-श्रीसैलम टाइगर रिज़र्व का एक हिस्सा हुआ करता था। वर्तमान में यह अभयारण्य वन्यजीवों की गतिविधियों में रुचि रखने वाले लोगों को आसानी से दिखाई न देने वाले बाघ को देखने का अद्भुत अवसर प्रदान करता है।

दुधवा बाघ अभयारण्य, उत्तर प्रदेष
दुधवा टाइगर रिज़र्व भारत में सबसे संरक्षित अभयारण्यों में से एक है। इसमें दो अलग-अलग क्षेत्र हैं-भाबर, पहाड़ियों और चट्टानी इलाकों से घिरा है, तथा तराई क्षेत्र, घनी घास के मैदानों एवं दलदली मिट्टी वाला है। तराई क्षेत्र में अब स्तनधारियों और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का बसेरा है। इसी कारण से इसे विष्व स्तर के महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षेत्रों में सम्मिलित किया गया है। यह विषाल पारिस्थितिकी तंत्र पष्चिम में यमुना नदी से पूर्व में वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व (बिहार) तक फैला हुआ है। यह पार्क षिवालिक श्रेणी की पहाड़ियों और गंगा के मैदानों के साथ पांच राज्यों में फैला हुआ है।
वर्तमान में, चरस नामक पक्षी और छोटे खरगोष जैसी कुछ लुप्तप्रायः प्रजातियों को दुधवा बाघ अभयारण्य में संरक्षित किया गया है। बाघ के अलावा, स्तनधारियों की 13 प्रजातियां, पक्षियों की नौ प्रजातियां, सरीसृप की 11 प्रजातियां और कुछ लुप्तप्रायः मेंढक भी यहां पाए जाते हैं। अन्य वन्यजीवों के अलावा आपको दुधवा में रंगीन सारस, काली और सफेद गर्दन वाले सारस, क्रौंच, बगुला, भुजंगा, उल्लू, सफेद बगुला, बत्तख, हंस, हाॅर्नबिल, कठफोड़वा, गुच्छेदार चिड़िया, रामचिरैया, मिनीवेट, मधुमक्खी खाने वाली चिड़िया जैसे अनेक परिंदे देखने को मिलेंगे। सरीसृपों में अजगर, छिपकली और घड़ियाल जैसे सरीसृप भी यहां बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।
यदि आप जंगल में सफ़ारी करते हैं, तो इस पार्क में स्थित बांके ताल पर कुछ समय अवष्य बिताएं। यह एक विषाल झील है, जहां पर आपको वनस्पति और वन्यजीवों की पर्याप्त विविधताएं देखने को मिलेगी। विस्तृत वन भूमि, घने वृक्ष और जीव-जंतुओं की विषाल आबादी वाला, दुधवा बाघ अभयारण्य पानी और जलवायु संतुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लखनऊ षहर से 221 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

पीलीभीत बाघ अभयारण्य, उत्तर प्रदेष
दुधवा (1987) और अमनगढ़ (2012) के बाद, 602 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में व्याप्त पीलीभीत राज्य का तीसरा बाघ अभयारण्य है। यहां आपको जो आमतौर पर वन्यजीवों की प्रजातियां देखने को मिलती हैं, उनमें बाघ, तेंदुआ, बारहसिंगा, चरस पक्षी, जंगली सूअर, चीतल, सांभर, पाढ़ा, नीलगाय इत्यादि प्रमुख हैं।

अमानगढ़ बाघ अभयारण्य, उत्तर प्रदेष
उत्तर प्रदेष के बिजनौर ज़िले में स्थित, अमानगढ़ राज्य के सबसे घने जंगलों में से एक है। 80 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले, इस बाघ अभयारण्य में झीलें, घने जंगल एवं घास के मैदान विद्यमान हैं। यह अभयारण्य कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का ही एक बफर क्षेत्र है जो बाघ और एषियाई हाथी की षरण-स्थली के लिए जाना जाता है। आपको यहां पर चीतल, सांभर, तेंदुआ, साही, जंगली सूअर, सियार आदि भी देखने को मिलेंगे।

कॉर्बेट बाघ अभयारण्य, उत्तराखंड
कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व लगभग 821 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें बड़ी झीलें, घास के मैदान, दलदली गड्ढे, पहाड़ियां और नदी के किनारे हैं। भारत के रॉयल बंगाल टाइगर को आश्रय देने के लिए प्रसिद्ध इस पार्क में देषी और प्रवासी पक्षियों की 650 से अध् िाक प्रजातियां, साथ ही षिकारी पक्षियों की 50 से अधिक प्रजातियां, सरीसृप की 33 प्रजातियां, मेंढकों की सात प्रजातियां, मछलियों की सात प्रजातियां और कीट-पतंगों की 36 प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इस बाघ अभयारण्य में कुछ दुर्लभ प्रजातियां जैसे कि स्थानिक मछली खाने वाले मगरमच्छ और ऊदबिलाव भी देखे जा सकते हैं। एक खुली जीप में या हाथी की पीठ पर वन्यजीव सफ़ारी यहां एक यादगार अनुभव साबित होती है। यह अभयारण्य देष के उन कुछ स्थानों में से एक है, जो आगंतुकों को रात भर रहने की अनुमति प्रदान करता है।

राजाजी बाघ अभयारण्य, उत्तराखंड
ऋषिकेष से लगभग 20 किलोमीटर दूर, हिमालय की तराई में षिवालिक की पहाड़ियों व उसकी तराई में राजाजी राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। यह 820 किलोमीटर के क्षेत्र में व्याप्त है। इसमें तीन अभयारण्य चिल्ला, मोतीचूर एवं राजाजी विद्यमान हैं। बाघों के अलावा, यह अभयारण्य हाथियों की बड़ी आबादी के लिए भी प्रसिद्ध है। आपको यहां पर तेंदुए, हिरण, घोरल इत्यादि जैसे वन्यजीव भी देखने को मिलेंगे। पक्षियों में रुचि रखने वालों के बीच यह उद्यान बहुत लोकप्रिय है। यहां पर पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियां भी देखने को मिलेंगी। यहां पर गूलर, नीलसर बत्तख, चैती चिड़िया, तोते, कठफोड़वा, रमाचिरैया एवं बत्तखें जैसे कुछ प्रसिद्ध पक्षी भी देखे जा सकते हैं। यहां पर ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल भी पाया जाता है।

सुंदरबन, पष्चिम बंगाल
सुंदरबन अनोखे रायल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास स्थल है। इसे यूनेस्को ने 1987 में विष्व धरोहर स्थल घोषित किया था। सुंदरबन बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित है। सुंदरबन दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगलों में से एक है। यह जंगल 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कुहासे की चादर से ढका हुआ यह क्षेत्र विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का प्राकृतिक आवास है। इसमें पक्षियों की 260 प्रजातियां और अन्य खतरनाक वन्यजीवों की प्रजातियां देखने को मिलेंगी। इनमें एस्टुरीन मगरमच्छ और भारतीय अजगर प्रमुख हैं। भारत और बांग्लादेष में फैले बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर स्थित कई द्वीपों के समूह से सुंदरबन बनता है। यह दुनिया के सबसे बड़े सक्रिय डेल्टा क्षेत्रों में से एक है। सुंदरबन का नाम ‘‘सुंदरी‘‘ मैंग्रोव पौधे के नाम पर पड़ा जिसका अर्थ ‘एक सुंदर वन होता‘ है। इस क्षेत्र में नदियों, संकरी खाड़ियों और आड़ी-तिरछी सहायक नदियों का विस्तार है। वर्ष 1974 में सुंदरबन को बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था।

बुक्सा बाघ अभयारण्य, पष्चिम बंगाल
वर्ष 1983 में बनाया गया, बक्सा टाइगर रिज़र्व भारत के जलोढ़ बाढ़ क्षेत्र में स्थित है। कई नदियों और उनकी सहायक नदियों द्वारा काटे गए इस रिज़र्व में समृद्ध जैव विविधता विद्यमान है। इस अभयारण्य में स्तनधारियों की 67 से अधिक प्रजातियां, सरीसृपों की 26 प्रजातियां तथा पक्षियों की 230 प्रजातियां देखने को मिलती हैं। बक्सा में विभिन्न वन्यजीवों विषेष रूप से बाघों को देखने का एक अद्भुत अवसर प्राप्त होता है।