स्पीति घाटी में सबसे बड़े मॉनेस्ट्री (बौद्ध मठ) में से एक है 'की मॉनेस्ट्री', यह समुद्र तल से 4,166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अध्यात्म में रूचि रखने वाले यात्रियों के लिए 'की मॉनेस्ट्री' एक दिलचस्प पड़ाव है। इस शांत बौद्ध स्थल की दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग और प्लास्टर की छवियां मौजूद हैं। ये सब 14वीं शताब्दी की मॉनेस्ट्री वास्तुकला के उदाहरण हैं। दर्शकों को इनकी भव्यता अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इसके साथ-साथ यहां पर अद्भुत वाद्य यंत्र भी रखे हुए हैं। इन यंत्रों का प्रयोग छाम नृत्य के दौरान ऑर्केस्ट्रा में किया जाता है। यहां हथियारों का एक सुंदर संग्रह भी है, शायद इनका उपयोग तब होता होगा, जब मठ पर हमलावरों द्वारा हमला किया जाता होगा, या फिर उन लोगों पर नज़र रखने के लिए इनका उपयोग किया जाता होगा, जो मठ के उपदेशों का पालन करने से इनकार करते होंगे। अगस्त 2000 में दलाई लामा ने यहां कालचक्र समारोह का आयोजन किया था। इस आयोजन का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के बुद्धत्व को जगाना है। इसके लिए प्रार्थना, शिक्षण, आशीर्वाद, भक्ति, मंत्र, योग और ध्यान आदि विधि का उपयोग किया जाता है। यह मूल रूप से शांति की खोज का मार्ग है। लोगों का मानना है कि इस दीक्षा समारोह में उपस्थिति मात्र से व्यक्ति कष्टों से मुक्त हो सकता है और ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह समारोह मुख्य पांच आयामों पर केंद्रित है जैसे-ब्रह्मांड विज्ञान, मनोभौतिकी, दीक्षा, साधना-अध्ययन और बुद्धत्व।
यह मठ विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें अनेक कमरे हैं। ये कमरे एक दूसरे से इस प्रकार जुड़े हैं मानो कोई भूल भुलैया हो। इसके कुछ हिस्से तीन मंजिल ऊंचे हैं। यह गोम्पा मठ और किले, दोनों के रूप में इस्तेमाल होता था, माना जाता है कि इसका निर्माण बौद्ध गुरु अतीसा के शिष्य ड्रोमन ने (1008–1064 ईस्वी) करवाया था। इसके निर्माण के निश्चित समय का पता नहीं है। आज की तारीख में यहां सैकड़ों लामा धार्मिक शिक्षा लेने आते हैं।

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