स्पीति घाटी से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित त्रिलोकनाथ मंदिर, इस क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लोग पूजा करने आते हैं। हिंदू धर्म के लोग भगवान शिव के रूप में त्रिलोकनाथ की पूजा करते हैं, और बौद्ध उन्हें आर्य अवलोकितेश्वर मानते हैं; तिब्बती भाषा में उन्हें 'गरजा फगस्पा' कहा जाता है। सन् 2002 में मंदिर में पाये गये एक पाषाण परिसर से, इसके 10वीं शताब्दी में स्थापित होने का अंदाजा लगाता है, तब इसे टुंडा विहार के रूप में जाना जाता था। इसके शिलालेख में ऐसा वर्णन है, कि इस मंदिर का निर्माण त्रिलोकनाथ गांव के शासक राणा ठाकुर के पूर्वज राणा द्वांजरा द्वारा कराया गया था।

भक्त, मंदिर के अनूठे अनुभव के लिए यहां ठहर भी सकते हैं। यहां एक साथ 125 लोगोंं के ठहरने की व्यवस्था है। गर्मियों में मंदिर प्रशासन भक्तों के लिए मुफ्त लंगर सेवा चलाता है।
मंदिर के निकट एक सुंदर प्राचीन झील है, इसका नाम 'हिन्सा नाला' है। इसका पानी बिल्कुल दूध की तरह सफेद है। किंवदंती है कि सात लोग अक्सर यहां आते थे और चरती गायों का दूध पीते थे। एक दिन, उनमें से एक को टुंडू नामक चरवाहे ने पकड़ लिया और अपने गांव ले गया। टुंडू जब गांव पहुंचा, तो देखा कि वह आदमी, जिसे उसने पकड़ा था वह संगमरमर की मूर्ती में बदल गया। कहा यह जाता है कि त्रिलोकनाथ मंदिर में वही मूर्ति स्थापित है। यहां के लोग इस मंदिर को कैलाश मानसरोवर के समान पवित्र मानते हैं।

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