चटाई की बुनाई

बांस की टहनियों और बेंत के साथ चटाई बुनने की कला यहां काफी लोकप्रिय है। ये चटाइयां वहनीय होती हैं और इन्हें कहीं भी आसानी से लाया ले जाया जा सकता है। यह मैट या चटाई, योग या ध्यान के लिए पारिस्थितिक रूप से डिज़ाइन किए गए हैं। इन चटाइयों के साधारण लेकिन आकर्षक डिजाइन सिलवासा की एथ्निसिटी (संजातीयता) का एहसास कराती हैं। सिलवासा के आस-पास आदिवासियों द्वारा बनाई गई सबसे प्रसिद्ध बांस की यह चटाई 'पाला' कहलाती है।

 चटाई की बुनाई

चमड़े से बनी वस्तुएं

भारत भर में दादर और नगर हवेली में बनी चमड़े की चप्पलें काफी लोकप्रिय हैं। ये अपने पैटर्न, डिजाइन और एंब्रॉयडरी के लिए जाने जाते हैं। सिलवासा के कुशल कलाकार चमड़े से कई उपयोगी और सजावटी सामान बनाने में माहिर हैं, जिनमें जूते (फुटवियर) सबसे लोकप्रिय हैं। ये वस्तुएं बनाने में कारीगर पानी, लेटेक्स और चूने के साथ स्थानीय रूप से उपलब्ध चमड़े का इस्तेमाल करते हैं। चमड़े में लाल रंग लाने के लिए, कारीगर बबूल के पेड़ों का उपयोग करते हैं। चमड़े की खाल को एक बैग की तरह सिला जाता है, और उसमें एक घोल भर दिया जाता है। इन पर लगाए गए टांके तीन-चार दिनों के बाद खोले जाते हैं। इस चमड़े का उपयोग मोजड़ी, सपत, बैग, पंखे, घंटियां, दर्पण फ्रेम, पर्स और सुंदर कुशन कवर जैसे उत्पादों को बनाने में किया जाता है।

 चमड़े से बनी वस्तुएं

टोकरी

क्षेत्र के आदिवासी समुदाय विभिन्न आकार, डिजाइन और आकृतियों में बांस से सुंदर टोकरियां बुनते हैं। टोकरी बनाने की उनकी पारंपरिक तकनीक सदियों पुरानी है। आकर्षक टोकरी बनाने के लिए, स्वाभाविक रूप से सूखे बांस या बेंत को आवश्यकता अनुसार बराबर चौड़ाई में काटा जाता है और फिर टुकड़ों को केंद्र से बाहर जाने वाले ताने के साथ बुना जाता है। टोकरी की व्यावहारिकता ही उनके आकृति और आकार को तय करती है। टोकरी का मूल डिजाइन इसकी उपयोगिता पर केंद्रित होता है, मुख्यतः यह ग्रामीण क्षेत्रों के चारागाह समुदायों को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं। इन टोकरियों का आधार आमतौर पर चौड़ा होता है ताकि उन्हें अपने सिर पर ले जाना आसान हो। सिलवासा में खरीदारी करते समय, पर्यटकों को स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई गई एक सुंदर टोकरी को एक याद के रूप में ले जाना नहीं भूलना चाहिए।

टोकरी