भगवान शिव को समर्पित यह ज्योतिर्लिंग इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि यह महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर माना गया है। कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण तेरहवीं सदी में यादवों के शासनकाल में करवाया गया था। स्थानीय मान्यता है कि मूल मंदिर असल में सात मंजिला था जो बाद में ध्वस्त हो गया। मंदिर का गर्भग्रह भूमि तल से नीचे है और भक्तों को शिवलिंग के दर्शनों के लिए पत्थर से बनी दो सीढ़ियां उतर कर जाना पड़ता है। यहां के स्थानीय लोग बड़े उत्साह से यह बात बताते हैं कि संत नामदेव भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आ चुके हैं। भगवान शिव के भक्त इस मंदिर में नियमित रूप से आया करते हैं।यह मंदिर हेमाड़पंती शैली की स्थापत्य कला का नमूना है जिसमें पत्थरों की बहुत सारी जटिल नक्काशी भी दिखाई देती है। पुराणों में इस जगह को दारुकावन कहा गया है। धार्मिक कारणों से इतर इस मंदिर की अद्भुत वास्तुकला को देखने के लिए भी यहां जरूर आना चाहिए।

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