यह प्राचीन मंदिर तमिलनाडु के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। भगवान विष्णु के 108 मंदिरों में से एक इस मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना वातपरासैय के रूप में की जाती है। श्रीविल्लिपुत्तुर अंडाल मंदिर इसलिए भी प्रसिद्ध है कि वैष्णव परंपरा में दो सबसे महत्वपूर्ण संतों पेरियाझवार और अंडाल का जन्मस्थान यहीं स्थित है। इस मंदिर की सबसे लाजवाब खासियत इसका 11 स्तरीय राजगोपुरम अर्थात भव्य सुसज्जित द्वार है। उल्लेखनीय है कि संपूर्ण तमिलनाडु के मंदिरों के राजगोपुरमों में सबसे बड़ा यही है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान की एक मूर्ति विश्राम की स्थिति में स्थापित है, और इसके साथ ही उनकी पत्नियों श्री देवी और भूमा देवी को उनके चरणों में उपस्थित होते हुए प्रदर्शित किया गया है। मंदिर के पहले भाग को वातपत्र सयानार मंदिर कहा जाता है, वहीं इसके दूसरे भाग का प्रचलित नाम अंडाल तीर्थ है। श्रीविल्लिपुत्तुर अंडाल मंदिर के भव्य मंडप अर्थात हॉल लकड़ी की खूबसूरत नक्काशी से सुशोभित हैं जिनके माध्यम से पौराणिक आख्यानों के दृश्यों को दर्शाया गया है। आपके लिए जानना दिलचस्प होगा कि यह मंदिर केवल भक्तिभाव के लिए ही नहीं, अपने प्राचीन रामायण भित्तिचित्रों, आधुनिक दीवार चित्रों के साथ-साथ पांड्य राजाओं के दौर के कई शिलालेखों के लिए ऐतिहासिक व कलात्मक रूप से भी जाना जाता है। इसी मंदिर परिसर में वानमलाई जीयर मठ और वेदांत देसीकर तथा मन्नतल्ला संत के मठ भी स्थित हैं, जिनका भ्रमण करना आपके यात्रा अनुभव को एक अलग ही शांति और विनीत भाव से भर देगा।

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