मदुरै इस देश के प्राचीनतम नगरों में से एक है और तमिलनाडु की अंतरात्मा को अपने भव्य और दिव्य मंदिरों के अंतस में संजो कर रखता है।यहाँ के मंदिर भारतीय वास्तुकला के अद्भुत और विस्मयकारी नमूनों में गिने जाते हैं,और इनमें से सबसे सुन्दर मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर है। यह मंदिर इस इस शहर के प्राणस्वरूप माना जाता है,और प्रत्येक वर्ष हजारों भक्त इस मंदिर के दर्शन ग्रहण करने के लिए यहाँ आते हैं।कभी एक ज़माने में मदुरै वैश्विक व्यापार में अग्रणी स्थान रखता था तथा प्राचीन रोम के साथ इसके कारोबारी रिश्ते हुआ करते थे। प्रशंसनीय बात यह है कि आज भी इस शहर ने उन विभिन्न कलाओं औरवस्त्रों के माध्यम से अपने उस विशिष्ट चरित्र को संरक्षित रखा है जिन्हें पांडियनराजाओं (4 वीं शताब्दी -16 वीं शताब्दी) ने कभी अपना प्रेम व राजाश्रय दिया था।

आप यहाँ भ्रमण करेंगे तो मदुरै को खरीदारी का एक बेहतरीन केंद्रभी पाएँगे, जहाँ आप लाजवाब साड़ियों से लेकर लकड़ी के खिलौनों और मूर्तियों तक बेहतरीन हस्तनिर्मित उत्पादों की खरीदारी कर सकतेहैं।चहलपहल भरी सड़कों से भरे इसके व्यस्त और जीवंत बाजारों से गुजरने के बाद आप इस शहर के इर्दगिर्द फैले शांत और सुंदर हिल स्टेशनों में आराम करने का मज़ा भी ले सकते हैं।जहाँ एक तरफ़ आप कोडाइकनाल की सुरम्य पहाड़ी वादियों की गोद में शांति का अनुभव कर सकेंगे, तो दूसरी तरफ़ यहाँ ऐसे शानदार झरने भी हैं जो मदुरै प्राकृतिक सुंदरता से आपको बिल्कुल सराबोर कर देंगे।

दिलचस्प बात है कि मदुरैको पहलेकभी मधुरपुरी और थूंगा नगरम के नाम से जाना जाता था, अर्थात एक ऐसा शहरजो कभी नहीं सोता है।मदुरै शहर मीनाक्षी अम्मन मंदिर के आसपास विकसित हुआ, जिसका निर्माण 2,500 साल पहले पांडियन राजाकुलशेखर ने किया था। आप इस शहर की ऐतिहासिकता के बारे में यह सुन कर हैरान रह जाएँगे,कि उसके चलते इसे पूर्व का एथेंस कहा जाता है। बताते हैं कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीक खोजी यात्री मेगस्थनीज यहाँ आए थे।उनके अलावा अतीत में कई अन्यप्रसिद्ध यात्रियों ने भी इस प्राचीन दक्षिण भारतीय शहर में भ्रमण किया था, जिनमें 77 ईस्वी में आए प्लिनी, 140 ईस्वी में आए टॉलेमी, 1203 ईस्वी में आए मार्कोपोलो और 1333 ईस्वी में यहाँ आए इब्न बतूता कुछ प्रमुख नाम हैं।किंवदंतीहै कि राजा कुलशेखर ने एक बार सपने में भगवान शिव की छवि देखी थी,जिनके बालों से रिस कर मीठे अथवा मधुर अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिर रहीं थीं।उस स्वप्न में जिस स्थान पर वे बूँदें गिरीं,उस स्थान को ही कालांतर में मधुरापुरी के नाम से जाना गया।