दिल्ली के केंद्र में स्थित राजसी लाल किला, लाल बलुआ पत्थर से बना मुगलों की वास्तुकला की विरासत के प्रमाण के रूप में है। दुनिया के सबसे खूबसूरत स्मारकों में से एक, यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, किला-ए-मुबारिक के रूप में प्रसिद्ध है, और यह महलों, मंडपों और मस्जिदों से परिपूर्ण है। मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा, अपनी राजधानी शाहजहानाबाद के महल किले के रूप में निर्मित लाल किला, अपनी विशाल किलेबंदी की दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। किले की वास्तुकला इस्लामिक, फारसी, तैमूरिद और हिंदू शैलियों के बेजोड़ सम्मिश्रण को दर्शाती है। यहां के प्रमुखआकर्षणों में एक हैं दीवान-ए-ख़ास, जिसे शाह महल के नाम से भी जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर दीवान-ए-आम या हॉल ऑफ़ पब्लिक ऑडियंस और रंग महल (हरम का एक हिस्सा) है, जिसे इम्तियाज़ महल के नाम से भी जाना जाता है। यहां के अन्य स्मारक हैं, नौबत खाना (ड्रम हाउस), जहां से शाही संगीतकारों द्वारा शाही परिवार के सदस्यों के आने की घोषणा की जाती थी; हम्माम (शाही स्नानघर), और मुतम्मन बुर्ज या मुसम्मन बुर्ज, यह एक मीनार है जहां सम्राट खुद अपनी प्रजा से मिलने आते थे। जब मुगलों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी तो सन् 1739 में फारसियों ने, नादिर शाह की अगुवाई में आक्रमण कर किले को लूट लिया। आक्रमणकारियों द्वारा किले के अधिकांश ख़ज़ाने लूट लिए गए, जिसमें मशहूर मयूर सिंहासन भी शामिल था, जिसे शाहजहाँ ने सोने और रत्नों से जड़वा कर बनवाया था। इन रत्नों में कीमती कोहिनूर हीरा भी शामिल था। यहां स्मारकों के अलावा, हर शाम आयोजित किया जाने वाला साउंड एंड लाइट शो 'सोन एट लुमिये' है, जो पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। एक घंटे तक चलने वाला यह कार्यक्रम भारत में मुगल साम्राज्य के इतिहास को दर्शाता है, और उनके गौरवशाली अतीत के साथ-साथ उनके पतन की ओर ले जाने वाले घटनाओं के चरणों की झलक भी पेश करता है। इसमें व्यक्त किये गये वृतांतों को महान अभिनेता अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ दी है, जिसके चलते यह शो दर्शकों को पूरी तरह मंत्रमुग्ध कर लेता है। किले का प्रवेश द्वार लाहौर गेट है, जो रास्ता बाज़ार के इलाके चट्टा चौक की ओर जाता है। यह चौक, एक मेहराबदार मार्ग है जहां शाही दर्जी और व्यापारियों की दुकाने हैं, जो दुकानें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट हस्तशिल्प और कपड़ों को बेचते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि लाल किले में कई सैन्य बैरके भी हैं, जिन्हें अंग्रेजों ने बनाया था। लाल और सफ़ेद बलुआ पत्थर से निर्मित, ये बैरक औपनिवेशिक वास्तुकला के बेहतरीन नमूने हैं, और इसकी प्राचीन सौंदर्य से कोई भी तुरंत ही प्रभावित हो जाता है। सन् 1857 में, ये बैरक ब्रिटिश सेना को यहां रखने के लिये बनाये गये थे जब उन्होने बहादुर शाह जफर, अंतिम मुगल सम्राट को उनकी सत्ता से हटा दिया गया था। ब्रिटिश शासन समाप्त होने के बाद, बैरकों का उपयोग भारतीय सेना के जवानों द्वारा किया जाने लगा, पर भारतीय सेना ने भी इन्हें सन् 2003 में खाली कर दिया। आज, इनमें से कुछ बैरकों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सहयोग से संग्रहालयों और कला दीर्घाओं में बदल दिया गया है। हर साल स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री लाहौर गेट की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, जो लाल किले को देश के सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक बनाता है। इसकी अनोखी बनावट और शानदार वास्तुकला ने राजस्थान, दिल्ली और आगरा के कई स्मारकों के निर्माण को प्रेरित किया है। इस ऐतिहासिक किले की यात्रा, आपको दिल्ली के बीते युग का एक शानदार अनुभव पाने का मौका प्रस्तुत करता है। लाल किले के निर्माण में 10 वर्ष (सन् 1638-48) लगे थे। उस समय किले के बगल से यमुना नदी गुज़रती थी, जिसने वक्त के साथ अपने बहाव का रूख बदल कर अब दूर हो गई है। इतिहासकार यह भी बताते हैं कि किले से एक नहर बाहर निकलती थी, जिसके दोनो ओर पेड़ लगे थे। इसे नहर-ए-बिहिश्त या स्वर्ग की नहर कहा जाता था, और इस नहर के पानी का स्रोत यमुना नदी थी।

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