1472 में निर्मित होने के बाद दो शताब्दियों तक कार्यशील रहा यह संस्थान आज एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। इसमें छात्रों के लिए 36 कमरे, एक बड़ा और प्रभावशाली पुस्तकालय, एक प्रसिद्ध मदरसा, एक प्रयोगशाला और छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए आवास सुविधाएं शामिल थीं। मदरसे के अलावा, यह इमारत अपनी कलात्मकता व स्थापत्य सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध थी। कुरान की आयतें भी शिलालेख का हिस्सा हैं। इसके प्रमुख द्वार को अति सुंदर बारीक़ पत्थरों के शिल्प से आच्छादित किया गया है। अपने बेहतरीन वक़्त में इस संस्थान की ओर हजारों विद्वानों के साथ-साथ इस्लामी दुनिया से बड़ी संख्या में छात्र आकर्षित हुआ करते थे। वास्तुकला की दृष्टि से यह मदरसा फेज़ के मदरसे के ही समान एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।  

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित इस स्मारक को महत्वपूर्ण संरचना घोषित किया गया है। इसका निर्माण महमूद गवाह या गवन ने किया था, जो बहमनी सल्तनत में आए एक व्यापारी थे। कुछ लोग कहते हैं कि वह फारस से निर्वासित थे, जबकि अन्य कहते हैं कि वह यहाँ व्यापार करने आए। अपने विनम्र स्वभाव और बौद्धिक श्रेष्ठता के कारण उन्हें आगे चल कर इस राज्य का प्रधानमंत्री बनाया गया था। वह न केवल शासकों बल्कि सामान्य आबादी से भी सम्मान प्राप्त करने में सफल रहे। अपने बेहतरीन वक़्त के दौरान इस संरचना में चार मीनारें थीं, जिनमें से एक आज भी यथावत है। 

अन्य आकर्षण