यहाँ के हथकरघे के उत्पादों की काफ़ी ज़्यादा रेंज है जो औरंगाबाद आने वाले खरीदारों को काफ़ी लुभाती है। यहां कई अनोखी चीजें खरीदी जा सकती हैं, जैसे कि हिमरू शॉल जिसमें ढीले रेशम की एक ज़्यादा परत होती है, जो इन्हें इतना नरम बना देती है कि जो लगभग रेशम जैसा अहसास कराता है। कुछ लोकप्रिय हिमरू चीजें जो आप खरीद सकते हैं, वे हैं शॉल, तकियाखोल, जैकेट, चादर, कोट और पर्दे। यदि आप औरंगाबाद में हैं तो आपको एक पैठणी साड़ी ज़रूर लेनी चाहिए। शानदार बुनाई वाली इन साड़ियों की यह विशेषता है कि ये दोनो तरफ और पाड़ और पल्लू, पर बिल्कुल एक सी दिखती है। एक साड़ी को बनाने में लगभग एक या दो महीने का समय लगता है और इसको बुनने में हाथ, पैर और आंखों के बीच सटीक मेलजोल चाहिए। जहां एक रंग के धागे का उपयोग लंबाई दिशा पर किया जाता है, वहीं दूसरे रंग का उपयोग चौड़ाई दिशा पर किया जाता है। इससे साड़ी को रोशनी में चमकने की क्षमता मिलती है जिससे इसमें झिलमिलाते सुंदर रंग उभर कर सामने आते हैं। ऐसा लगता है कि मानो साड़ी अपना रंग बदल रही हो। कागज़ीपुरा गांव का एक अनोखा हाथों से बना कागज़ भी खरीदने योग्य है। कागज़ बनाने की यह कला लगभग 700 साल पुरानी बताई जाती है, जो दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक के समय की है। यहां का एक और आकर्षण बीदरीवेयर है और इसकी तश्तरियां, कटोरे, फूलदान, ऐशट्रे, आभूषण आदि जैसी कई वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं, जो तांबे पर सोने और चांदी के धागों से जड़ाई का काम कर बनाई जाती हैं।

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