राजस्थान में बसा अजमेर शहर, अना सागर झील के मनोरम विस्तार में बसी अरावली पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जो विविध धर्मों और संस्कृतियों का प्रतीक है। तीर्थयात्रियों के लिए यह एक लोकप्रिय ठहराव है तथा अजमेर-ए-शरीफ के घर के रूप में प्रसिद्ध है जोकि चिश्ती आदेश के संस्थापक, तथा भारत में सूफी संप्रदाय के प्रमुख फ़कीर ख्वाजा मुइन-उद-दीन चिश्ती की दरगाह को कहा जाता है। इस दरगाह में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन रमजान के त्योहार और उन फ़क़ीर के उर्स के दौरान और ज्यादा शानदार हो जाता है, जब वहाँ बड़ा जनसमूह उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचता है।

इस शहर की स्थापना करने वाले चौहान राजाओं की तत्कालीन राजगद्दी होने के नाते, अजमेर अपने भव्य किलों, प्राचीन मंदिरों और एक जीवंत इतिहास के लिए प्रसिद्ध है जो इसकी कला और शिल्प में दृष्टिगोचर होता है। यह शहर पुष्कर शहर का प्रवेश द्वार भी है, जिसे एक प्रमुख हिंदू तीर्थ माना जाता है। पुष्कर रेत के टीलों, झीलों, पहाड़ियों और जंगलों के सुरम्य परिदृश्य में बसा हुआ तथा शांत व पुष्कर झील के चारों ओर बसा हुआ नगर है, और अपने सुविख्यात मेंले के लिए प्रसिद्ध है जो प्रत्येक वर्ष अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान 2,00,000 से अधिक लोगों को अपनी ओर खींचता है।

अजमेर अपनी तहों में एक पूरा इतिहास समेटे हुए है। यह शहर राजा अजयपाल चौहान द्वारा तब स्थापित किया गया था जब पृथ्वीराज चौहान 12 वीं शताब्दी में मुहम्मद गौरी के हाथों मारे गए थे। बाद में इसे 1532 में मारवाड़ राजवंश द्वारा जीत लिया गया था, जिसके बाद 1559 में यहाँ अकबर के अधीन मुगल वंश का शासन स्थापित हुआ। अकबर ने अजमेर को एक पूर्ण प्रांत का दर्जा दिया था। मुगलों ने 1770 तक अजमेर पर शासन करना जारी रखा और उसके बाद मराठों ने उन पर फ़तह हासिल कर के इस का शासन अपने हाथों में ले लिया। अंत में, सन 1818 में अजमेर को मराठों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया।