अजमेर-ए-शरीफ

एक अतिव्यस्त सड़क पर बनी हुए अजमेर-ए-शरीफ दरगाह देश की सबसे पाक सूफी इबादतगाहों में से एक है। दरगाह शरीफ या अजमेर-ए-शरीफ दुनिया भर के ज़ायरीन को आमंत्रित करता है, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को श्रद्धांजलि देने आते हैं। वह अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा और शांति से संबंधित महान शिक्षाओं के लिए जाने जाते थे। दरगाह के बाहर की सड़क पर इत्र, मिठाइयाँ, फूल, चादरों और कपड़ों जैसी कई प्रकार की वस्तुओं की दुकानें हैं, जो ख्वाजा को चढ़ाई जाती हैं। जैसे ही आप दरगाह में प्रवेश करते हैं, अद्भुत नक्काशी के साथ चांदी से बने विशाल दरवाजों की एक श्रृंखला से होते हुए गुज़रते हैं। यह दरवाजे एक विशाल आंगन में खुलते हैं जिसमें मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जो संगमरमर से बनाई गई है। दरगाह में छत की तरफ सोने की परत चढ़ी हुई है और इसे चांदी की रेलिंग और संगमरमर की दीवार से सुरक्षित रखा जाता है। शाम की रस्मों में महफ़िल-ए-समा शामिल है, जो आगंतुकों के लिए एक रोमांचकारी अनुभव है। जब आप दरगाह परिसर से बाहर निकल रहे हों, तो खाना पकाने की बड़ी देग को भूल न जाएँ। यह माना जाता है कि इस देग में पैसा फेंकने से आपकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।

अजमेर-ए-शरीफ

अढ़ाई-दिन-का-झोंपड़ा

अजमेर शहर के बाहरी इलाके में स्थित, अढ़ाई-दिन-का-झोंपड़ा एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है जिसे वास्तुकला की भारतीय- इस्लामिक शैली में बनाया गया है। यह एक मस्जिद का खंडहर है जो इसी नाम से जाती है। कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण ढाई दिन में हुआ था। हेरात के अबू बक्र द्वारा डिजाइन किए गए अढ़ाई-दिन-का-झोंपड़ा में 10 गुंबद हैं, जो 100 से अधिक स्तंभों पर टिके हुए हैं। मुख्य सभागार की दीवारों को काट कर झरोखे बनाए गए हैं ताकि सूरज की रोशनी अन्दर प्रवेश कर सके। मस्जिद के आंतरिक सदन में एक मुख्य हॉल है जिसमें लगे हुए स्तंभों पर अद्भुत कारीगरी की गई है। यहाँ से 500 मीटर की दूरी पर स्थित दरगाह शरीफ में नमाज अदा करने के बाद अढ़ाई-दिन-का-झोंपड़ा का दौरा किया जा सकता है।

अढ़ाई-दिन-का-झोंपड़ा

पुष्कर

शांत पुष्कर झील के चारों ओर स्थित पुष्कर नाम का शहर रेत के टीलों, झीलों, पहाड़ियों और जंगलों के मध्य एक अद्भुत परिवेश को समेटे हुए है। अध्यात्म में लीन पुष्कर नगर के नाम का शाब्दिक अर्थ है कमल का फूल, और माना जाता है कि यह स्थान भगवान ब्रह्मा का आसन है। अतः, पुष्कर शहर अत्यधिक दुर्लभ स्थानों में से एक है जहाँ भगवान ब्रह्मा का मंदिर है। यह मंदिर एक लाल रंग का भवन है जिसे 14 वीं शताब्दी ईसवी के दौरान बनाया गया था, तथा यहाँ दूर-दूर से भक्त आया करते है। किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने एक बार जमीन पर कमल का एक फूल गिराया था, जिससे एक झील का निर्माण हुआ। उस झील का नाम बाद में उन्होंने फूल के नाम पर रखा।

पुष्कर की आत्मा अपनी गलियों में बसी हुई है और यहाँ की पुरातन गलियों, बाजारों और घाटों से गुज़रते हुए आप इस शहर का आनंद ले सकते हैं। पुष्कर मेला मवेशियों, घोड़ों और ऊंटों का एक बहुत बड़ा पशुबाज़ार या नखासा होता है, जो अपने भव्य आयोजन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह सात दिन का पर्व है जो अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान आयोजित होता है। इस मेले की जीवंतता हर साल लगभग 2,00,000 आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करती है; जिनमें घोड़ों, ऊंटों और भैंसों के विक्रेता व खरीदार शामिल होते हैं। इन आगंतुकों को अपनी और आकर्षित करने के लिए यहाँ हथकरघे के सामान, खाने-पीने की वस्तुएँ, मिठाई, कुल्फी, आइस क्रश, चूड़ियाँ व ऊंट की काठी इत्यादि सामान बेचने के लिए बहुत सी अस्थाई दुकानें स्थापित की जाती हैं।

पुष्कर