सन् 1705 में ता सांग (शुद्ध तिब्बती भिक्षुओं) के लिए निर्मित यह त्रिमंजिला मठ सिक्किम राज्य के सर्वाधिक प्रसिद्ध मठों में से एक है। इस मठ का निर्माण ‘त्संगखांग’ नामक एक छोटे से मंदिर से शुरू हुआ था। जिसकी स्थापना लहात्सन छेंपो ने सन् 1650 से 1651 ई. के बीच की थी। इस मंदिर को बाद में वर्तमान स्थल पर स्थापित कर दिया गया। वर्ष 1705 में छोग्याल छगडोर नामग्याल और लामा खंछेन रोलपाई दोरजे (पेमयांगत्से गोम्पा के पहले प्रमुख लामा) ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। इसके प्रवेश द्वार के पास एक छोटी धार्मिक संरचना में दोरजे फाग्मो (वज्र वरही) की एक पवित्र मूर्ति है, जिसे तिब्बत के टर्टन टेर्डग लिंग्पा ने अपनी बेटी से विवाह करने पर उपहार के रूप में चोग्याल ग्युरमेड नामग्याल को दिया था।

यहां का मुख्य त्यौहार गुरु द्रकम छम है; जिसे फरवरी-मार्च के महीनों में सर्दियों में मनाया जाता है। वर्तमान में 100 से अधिक भिक्षुओं वाले, पेमयांग्त्से मठ को सिक्किम में मिन्द्रोलिंग शाखा के सभी मठों का मूल माना जाता है।

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