आध्यात्मिकता, महाकाव्यों और दंतकथाओं से बुने अपने समृद्ध इतिहास के कारण हरियाणा का पानीपत शहर, इतिहासकारों के लिए किसी सुखद आनंद से कम नहीं है। इस शहर में कब्रों और ईंटों से बने स्तूपों के जैसे न जाने कितने ही दर्शनीय स्थल हैं, जिनको देखकर यहां आने वाले पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। पानीपत को महाभारत के समय पाण्डवों द्वारा स्थापित प्रस्थों (नगरों) में से एक माना जाता है।        

भारतीय इतिहास में पानीपत तीन प्रमुख युद्धों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। पानीपत का पहला युद्ध, 21 अप्रैल 1526 को, दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, और तैमूर के सरदार ज़हीरुद्दीन बाबर के बीच हुआ था। इस युद्ध में बाबर की सेना ने इब्राहिम के एक लाख से अधिक सैनिकों को हराया था। इस प्रकार पानीपत के पहले युद्ध ने भारत में बहलोल लोदी द्वारा स्थापित लोदी शासन को समाप्त कर दिया। पानीपत का दूसरा युद्ध, 5 नवंबर 1556 को, हरियाणा के रेवाड़ी से ताल्लुक रखने वाले उत्तर भारत के सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य और अकबर की सेनाओं के बीच हुआ था। पानीपत का तीसरा युद्ध वर्ष 1761 में अफगान के आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली और मराठाओं के बीच हुआ था। इसमें मराठा सेना का नेतृत्व पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा ने किया था। इसमें अहमदशाह ने जीत हासिल की, लेकिन दोनों तरफ के काफी लोग हताहत हुए थे। इसके परिणामस्वरूप यह इतिहास में मराठाओं की सबसे बुरी हार थी। इस युद्ध के बाद सत्ता का शून्यकरण हो गया, जिसके चलते बाद में भारत पर ब्रिटिश साम्राज्य की विजय हुई।    

पानीपत को 'बुनकरों के शहर' के रूप में भी जाना जाता है, इसके हथकरघा उत्पादों की दुनिया भर में सराहना की जाती है। यहां से निर्मित दरी (एक प्रकार का कालीन), कालीन, और घरेलू साज-सज्जा के सामान कनाडा, जापान, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में निर्यात किए जाते हैं, आप यहां उनकी खरीदारी भी कर सकते हैं।