बेहद फैशनेबल फुटवियर, कोल्हापुरी चप्पल पूरे देश में अपने हलके वजन और एक पतले तले के लिए प्रसिद्ध हैं। वे विभिन्न प्रकार के रंगों और डिजाइनों में बने होती हैं और पारंपरिक व भारतीय-पशिचमी दोनों तरह की पोशाक पर फबती हैं। कोल्हापुरी चप्पल अच्छी गुणवत्ता वाले चमड़े से बनाई जाती हैं और पारंपरिक रूप से भूरे रंग की होती हैं। बारीक धागों की कढ़ाई वाले डिजाइन से बनी इन चप्पलों के लकड़ी के फ्लैप के बीच में लाल लटकन गोली लगी होती है। आज, इस पारंपरिक डिजाइन को और बेहतर बनाने के लिए, बैंगनी, नारंगी, सुनहरी, लाल, हरा और गुलाबी रंगों का प्रयोग किया जा रहा है। धागे से कढ़ाई करने के बजाय, फ्लैप में मोती, सितारे, या पोत भी लगे होते हैं। इन चप्पलों रोज तो पहना ही जा सकता है, साथ ही पार्टियों में भी पहना जा सकता है।

ऐसा कहा जाता है कि कोल्हापुरी चप्पल की उत्पत्ति 13 वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के गांवों में हुई थी। शाही परिवार ने उनके अद्वितीय डिजाइनों की खोज की और उनके संरक्षण में, चप्पलें अधिक सुंदर ढंग से बनने लगीं और लोकप्रिय हो गईं। 

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