जोशीमठ

पवित्र जोशीमठ शहर को ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्रतिवर्ष भारी संख्या में हिन्दु तीर्थ यात्री आते हैं। पवित्र ज्योतिर्मठ या शकंराचार्य मठ, इस शहर का केन्द्र है। दरअसल, भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में चार मठों की स्थापना की थी, जिसमें जोशीमठ एक है। यहां का एक प्रमुख आकर्षण करीब 1200 वर्ष पुराना विशाल कल्प-वृक्ष है। इसके अलावा भी यहां कई महत्वपूर्ण मंदिर और पूजा स्थल है, जिनमें भगवान नरसिंह को समर्पित मंदिर मुख्य है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है, साथ ही यहां हनुमान मंदिर, गौरी शंकर मंदिर, गणेश मंदिर, नौदेवी मंदिर तथा सूर्य मंदिर समेत ढेरों ऐसे छोटे-बड़े मंदिर हैं, जहां लगभग पूरे वर्ष भक्तगणों का तांता सा लगा रहता है। 

जोशीमठ, ज्यादा ऊंचे पहाड़ों की चढ़ाई के लिए बेस कैंप के रूप में भी खासा प्रसिद्ध है। इसलिए ट्रैकिंग के रोमांच पसंद युवा बड़ी संख्या में यहां हर साल आते हैं। प्रसिद्ध फूलों की घाटी का ट्रैक गोविंदघाट से शुरू होता है, जो जोशीमठ से महज 26 किमी की दूरी पर स्थित है। इस जगह पर बहुत से ऐसे स्थान हैं, जहां कैपिंग के शौकीन लोग अच्छा खासा समय बिता सकते हैं। जोशीमठ से ही विष्णु प्रयाग का सुंदर दृश्य दिखाई देता है, जहां ऊफान मारती अलखनंदा नदी और धौलीगंगा नदी का संगम होता है। यहां स्थित हाथी पर्वत चोटी का अद्भुत नजारा विशेष रूप से पर्यटकों को अपने मोहपाश में जकड़ सा लेता है। इस शहर को हिमालय पर्वत श्रृंखला की ऊंची-ऊंची चोटियां चारों ओर से घेरे हुए हैं, जिससे यहां के प्राकृतिक सौंदर्य में और ज्यादा निखार आ जाता है। 

जोशीमठ

बागेश्वर

सरयू नदी, गोमती नदी और गुप्त रूप से बहती भागीरथी नदी के संगम पर बसा बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। यह जगह शिव की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है, जो कष्टहर्ता हैं। यहां भगवान शिव का एक बेहद प्रसिद्ध बागनाथ मंदिर कहते हैं, जहां पर्यटक एक सीधे रास्ते पर चलते हुए आसानी से पहुंच सकते हैं। नागर शैली में निर्मित भोले शंकर के इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में करवाया गया था। मंदिर में लगी पीतल की अनगिनत छोटी-बड़ी घंटियां पर्यटकों का ध्यानाकर्षित करती हैं। यहीं पर मां काली को समर्पित चंडिका देवी मंदिर भी है तथा गरुड़ बैजनाथ का भी एक मंदिर है। गरुड़ बैजनाथ का यह मंदिर वास्तुकला के मामले में बहुत हद तक जागेश्वर मंदिर से मिलता-जुलता है। बागेश्वर का जिक्र प्राचीन हिन्दु पुस्तकों और पुराणों में एक ऐसे स्थान के रूप में मिलता है, जहां आकर इंसान जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा लेता है।

बागेश्वर

कटारमल

भारत के पूर्व में स्थित उत्तराखंड राज्य यूं तो बहुत सी बातों के लिए प्रसिद्ध है, पर यहां एक ऐसा मंदिर है, जो इस जगह को और अधिक महत्वपूर्ण ना देता है। कटारमल गांव में उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण सूर्य मंदिरों में से एक यहां स्थित है। कोसी नदी पर बने पुल के किनारे बना यह मंदिर बेहद खूबसूरत और मनभावन दृश्य प्रस्तुत करता है। कत्यूरी राजवंश के राजा कटारमल्ला द्वारा 9वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। जैसा कि इस मंदिर के नाम से ही पता चलता है, यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। यहां सूर्य देव अपने प्राचीन काल के नाम से यानी बूढ़ादीत या वृद्धदित्य के नाम से जाने जाते हैं। मंदिर परिसर में सूर्य देवता के अलावा शिव-पार्वती और लक्ष्मीनारायण की मूर्तियां भी विराजमान हैं। यह मंदिर अपने बेहद खूबसूरत शिल्प और अनूठी वास्तु-कला के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बेहद सुंदर नक्काशी वाले खंबे तथा द्वार शामिल हैं। इन पर पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियां उकेरी गयी हैं। क्योंकि सूर्य पूरब से उदय होता है और यह मंदिर भी सूर्य देव को समर्पित है, इसलिए इस मंदिर को पूर्वमुखी बनाया गया है, ताकि सूर्य की पहली किरण यहां स्थापित शिवलिंग पर बिलकुल सीधी पड़े। मंदिर का गर्भगृह प्राचीनतम संरचना, जिसके चारों ओर 45 छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को हवाल्बघ और कोसी नदी के किनारे स्थित मातेला गांव को पार करते हुए करीब 3 किमी तक पैदल आना पड़ता है। मंदिर के दरवाजे अब यहां से हटाकर दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित कर दिये गये हैं। समुद्रतल से करीब 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर अल्मोड़ा से 17 किमी की दूरी पर स्थित है तथा इसे वृद्धदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

कटारमल

अनासक्ति आश्रम

कौसानी बस स्टैण्ड से महज एक किमी की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध अनासक्ति आश्रम। सन 1929 में गांधीजी ने यहां कई दिनों तक प्रवास किया था और आज भारी संख्या में लोग यहां उनके नैतिक मूल्यों को समझने के लिए आते हैं। इस जगह के बारे में प्रसिद्ध है कि गांधीजी यहां के अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से इतने ज्यादा अभिभूत हो गये थे कि उन्होंने इस जगह को भारत के स्विटजरलैंड का नाम दे डाला। ऐसा भी माना जाता है कि यही वह स्थान है, जहां उन्होंने अनासक्ति योग के सिद्धांत पर काम किया था, जो बताता है कि राग और द्वेष से असंपृक्त हो जाना ही अनासक्ति है। यहां आश्रम में एक छोटा सा प्रार्थना कक्ष भी है, जहां रोजाना सुबह एवं सांय प्रार्थना की जाती है। कुमांऊ क्षेत्र के बाकी इलाकों की तरह यहां से भी विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला का मनभावन दृश्य दूर-दूर तक दिखाई पड़ता है। आमतौर पर बेहद शांत रहने वाली इस जगह में एक प्रसिद्ध स्थानीय पुस्तकालय भी है, जो यहां की शांति में थोड़ी सी हलचल पैदा करता है। आश्रम में एक छोटा सा पुराना संग्रहालय भी है, जिसमें महात्मा गांधी के यहां रुकने के दौरान के फोटोग्राफ्स लगे हैं और उनसे जुड़ी कई तरह की अन्य वस्तुएं भी यहां रखी गयी हैं। आश्रम के भीतर ही एक अध्ययन और शोध केन्द्र भी है, जहां गांधीजी की विचारधारा का प्रचार-प्रसार का कार्य किया जाता है। जो लोग इस जगह को और करीब से महसूस करना चाहते हैं या और गहराई से जानना चाहते हैं, उनके लिए यहां रुकने की भी व्यवस्था है। यहां कुछ कमरे बने हुए हैं, जिन्हें इच्छुक सैलानी किराये पर लेकर रह सकते हैं। 

अनासक्ति आश्रम

सोमेश्वर

कौसानी की यात्रा बिना सोमेश्वर नाथ के मंदिर जाए पूरी नहीं मानी जाती। शहर के बाहरी छोर पर एक विशाल चट्टान को काटकर सोमेश्वर नाथ का मंदिर बनाया गया है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में चांद राजवंश के संस्थापकों द्वारा करवाया गया था। मंदिर का नाम इस शहर को बसाने वाले राजा सोमचंद के नाम और भगवान शिव के नाम को मिलाकर रखा गया है। इस स्थान पर शिव, महेश्वर के नाम पूजे जाते रहे हैं। इसलिए इस स्थान को सोमेश्वर कहा गया है। हिमालय की ऊंची-ऊंची बर्फीली चोटियों से घिरा यह मंदिर कुदरत की एक बेमिसाल चित्रकारी सा प्रतीत होता है। यहां मंदिर में बजती घंटियों का स्वर और धूप-बत्ती की खुशबू से सुवासित माहौल इस जगह को बेहद शांत और सुकूनभरा अहसास देता है। सोमेश्वर के नजदीक ही एक कुंआ भी है, जिसके बारे में प्रचलित है कि यहां श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सोमेश्वर