तनोट माता का मंदिर

यह प्रसिद्ध मंदिरए जिस ने 1971 के भारत.पाकिस्तान युद्ध के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाईए एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहाँ ज़रूर जाना चाहिए। यह मंदिर तनोट माता को समर्पित हैए जो हिंगलाज माता की अवतार मानी जाती हैं। यह मंदिर दोनों देशों के बीच लोंगेवाल की सीमा के काफी नजदीक स्थित है। ऐसी मान्यता है कि युद्ध के दौरान हजारों बम बरसाए गए थे लेकिन जो भी बम मंदिर के पास गिरे थेए फटे नहींए इस तरह उन्होंने स्थानीय लोगों और सैनिकों की रक्षा की। पर्यटक इससे लगे हुए संग्रहालय की सैर भी कर सकते हैंए जिसमें युद्ध के समय की यादगारें रखी गई हैं। इस मंदिर की देखभाल भारत के सीमा सुरक्षा बल द्वारा की जाती है। इस क्षेत्र में पवनचक्कियों की कतारें भी हैं जो क्षेत्र की निस्तब्धता को तोड़ती हैं। यह मंदिर जैसलमेर से 150 किमी की दूरी पर है। 

तनोट माता का मंदिर

ओसियां

जैसलमेर से 240 किमी दूरए ओसियां एक प्राचीन रेगिस्तानी कस्बा है जहां मंदिर और स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने मौजूद हैं। यहाँ का मुख्य आकर्षण सूर्य मंदिर हैए जो सूर्य भगवान को समर्पित है। इसमें देवी दुर्गा और भगवान गणेश की भी प्रतिमाएँ हैं। मंदिर की छत पर बारीकी से तराश कर नागों की आकृतियाँ उकेरी गई हैंए जो कमल के फूल के चारों ओर कुंडली मारे हुए हैंए जो बेहद सुंदर हैं। पर्यटन के अन्य आकर्षण हैंए हरिहर मंदिरए सचिया माता मंदिर और एक जैन मंदिर जो भगवान महावीर को सैमर्पित है। 

ओसियां का दूसरा नाम उपकेशपुर हैए यह 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ बहुसंख्यक जैन आबादी थी जिन्होंने यहाँ कलात्मकता से तराशे गए और खूबी के साथ संरक्षित मंदिरों की अनमोल विरासत छोड़ी हैए जिस के कारण ओसियां में दूर दूर से पर्यटक आते हैं। प्रतिहार शासन के काल खंड में ओसियां को मारवाड़ कि राजधानी का मुख्य धार्मिक व सांस्कृतिक केंद्र माना जाता था। प्राचीन काल सेए गुप्तए नाग और प्रतिहार शासन काल के दौरान अपनी नीतिगत महत्वपूर्ण स्थिति के कारण इस क्षेत्र का बड़ा सांस्कृतिक प्रभाव रहा है। 

ओसियां

पोखरण

धरोहर शहर पोखरण जैसलमेर से लगभग 110 किमी दूर थार रेगिस्तान के बीचों बीच स्थित है। वास्तविक अर्थों में यह पाँच मृगतृष्णाओं वाला एक स्थान है और यह पाँच बड़ी नमक की चट्टानों से घिरा हुआ है। राजशाही हवेलियाँए प्राचीन मंदिर और भव्य संरचनाएँ इसकी शोभा बढ़ाती हैं। पोखरण में समय थम गया है। इसका मुख्य आकर्षण पोखरण का किला हैए जो चंपावत राठौड़ों का गढ़ थाए जो मारवाड़ के शक्तिशाली राजपूत रईस थे।

इस किले को अब एक धरोहर होटल में तब्दील कर दिया गया हैए जिसमें एक संग्रहालय भी हैए जिसमें स्थानीय हस्त कलाकृतियों एवं अन्य कलाकृतियों का दिलचस्प संग्रह मौजूद है। पर्यटक रामदेवरा गाँव भी देख सकते हैं जो एक छोटा सा गाँव है और जो अपने पवित्र मंदिरों के लिए मशहूर है। यह बाबा रामदेव जी का अंतिम विश्राम स्थल माना जाता हैए जो 14वीं शताब्दी के एक संत थेए और जिन के बारे में हिन्दू विश्वास करते हैं की वह भगवान श्री कृष्ण का अवतार थे। अगस्त और सितंबर के बीच में यहाँ एक बड़ा मेला लगता हैए जिस को रामदेवरा मेले के नाम से जाना जाता हैए जिस दौरान पूरे प्रदेश से हजारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। पोखरण इस बात के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है कि यहाँ वेधशाला और भूमिगत परीक्षण की सुविधा उपलब्ध हैए जहां 1988 में न्यूक्लियर टेस्ट किया गया थाए जिसके बाद भारत को सम्पूर्ण न्यूक्लियर शक्ति घोषित कर दिया गया था। 

पोखरण

बाड़मेर

जैसलमेर से 155 किमी दूर अनोखा और निर्मल बाड़मेर कस्बा स्थित है। यह उत्तर में जैसलमेर और पूर्व में जोधपुर से घिरा हुआ है और पश्चिम में इस की सीमा पाकिस्तान से लगी हुई है। यह थार रेगिस्तान को बनाने वाले चार सबसे बड़े महानगरों का हिस्सा है और यह अपने हस्त निर्मित ब्लॉक प्रिंटिंग उद्योगए लकड़ी की नक्काशीए मिट्टी के बर्तनोंए रंग बिरंगे कामदार परंपरागत राजस्थानी वस्त्रों और अजरक प्रिंट के लिए जाना जाता है। बाड़मेर से लगभग 35 किमी दूर भूतपूर्व किरादू कस्बे में स्थापत्य के हिसाब से उल्लेखनीय पाँच मंदिर हैंए इनमें सोमेश्वर मंदिर अपने बहु स्तरीय शिखर के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावशाली है। बाड़मेर लूनी नदी का भी घर हैए जो 500 किमी की यात्रा करते हुए आखिरकार कच्छ के रण की दलदली भूमि में विलीन हो जाती है।

तिलवारा गाँव में मल्लानी परगनाए जो एक राजपूत बस्ती हैए के संस्थापक रावल मल्लिनाथ को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से वार्षिक मल्लिनाथ पशु मेले का आयोजन किया जाता हैए जो एक मुख्य आकर्षण है। अन्य लोकप्रिय आकर्षण बाड़मेर का किला हैए जिसे बाड़मेर गढ़ भी कहा जाता है जो 1552 ईस्वी में एक छोटी पहाड़ी पर बनवाया गया था जो आज का बाड़मेर है। इस किले की सुरक्षा के लिए देवताओं का आशीर्वाद पाने के मक़सद से दो महत्वपूर्ण मंदिर बनवाए गए थेए जिनमें से एक जोगमाया मंदिर ;गढ़ मंदिरद्ध हैए जो 1383 फुट की ऊँचाई पर स्थित है और दूसरा नागणेची माता का मंदिर है जो 500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ कई मेलों का आयोजन किया जाता हैए विशेषतः नवरात्रि ;एक पवित्र नौ दिन का त्योहारद्ध के अवसर पर। 

बाड़मेर