महात्मा गाँधी को हमारे बीच से गए 70 साल गुज़र चुके हैं। लेकिन उनका जीवन, उनकी आत्मा और उनके द्वारा खोजे गए मानवता के तरीके आज भी देश की सीमाओं से परे, पूरे विश्व पर अपना प्रभाव डाल रहे हैं। मानवता के विकास के क्षेत्र में उनका योगदान इतना महान है कि उसे कदापि भुलाया नहीं जा सकता, न इसकी उपेक्षा की जा सकती है। आज विश्व उन्हें ऐसे दमदार नायक के रूप में जानता है जैसा इस मानवता के इतिहास में और कोई पैदा नहीं हुआ। 

मोहनदास करमचंद गाँधी का जीवन मानव जीवन में सत्य और अहिंसा के मूल्यों को स्थापित करने की दिशा में किए गए साहसिक प्रयासों की दास्तान है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयासों ने उन्हें एक अकेले सेनानी से एक महात्मा में तब्दील कर दिया। बीसवीं शताब्दी में विश्व भर में हिंसा की आग में घिरे हुए लोगों के लिए वह एक पैगंबर बन गए। वह राष्ट्रपिता भी बन गए। भारत की स्वतंत्रता के लिए किए जा रहे संघर्ष के दौरान उन्होंने सत्य और अहिंसा के साथ किए गए अपने प्रयोगों के जरिये भारत और ब्रिटेन को परस्पर नफरत और बदले की भावना से बचाया। इससे एक ऐसे माहौल की रचना हुई जिसने एशिया और अफ्रीका के दूसरे देशों के लिए भी बिना खून बहाये यूरोपीय देशों की ग़ुलामी से बाहर निकलने के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर दी। 

उन्होंने साउथ अफ्रीका में व्यापक सामाजिक अवज्ञा की तकनीक खोजी जो बाद में भारत और पूरे विश्व में भी अपनाई गई। 30 जनवरी 1948 को एक हत्यारे की गोलियों ने महात्मा गाँधी के भौतिक शरीर का अंत कर दिया और वह अविनाशी हो गए, जिन्होंने मानव मात्र पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी- 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।'

गांधीजी की कर्मभूमिराष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत भारत में पूर्ण रूप से संरक्षित है। विभिन्न संग्रहालयों और स्मारकों से लेकर गांधीजी के आश्रम तक, देषमें ऐसे विभिन्न पड़ाव हैं जो इस महान नेता के जीवन से संबंधित घटनाओं के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। सत्य और अहिंसा से संबंधित उनकादर्षन वर्तमान में भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है। सैकड़ों लोग उन्हें समर्पित विभिन्न स्मारकों पर जाकर उनके सिद्धांतों का अनुसरणकरते हैं। मानव विकास में गांधीजी का योगदान बहुत महान और विविधता पूर्ण है। इसे भुला पाना अथवा इसकी अनदेखी करना षायदसंभव नहीं है। समस्त दुनिया आज इस महान नेता को मानवमात्र से कहीं अधिक प्रभावषाली सामाजिक नवोन्मेषक के रूप में पहचानती है।

भारत - गांधी की कर्मस्थली
1915 से 1948 तक, महात्मा गांधी ने भारत भर में बड़े पैमाने पर यात्रा की, क्रांति की मषाल प्रज्जवलित की तथा सभी समय के महानतमस्वतंत्रता संघर्षों में से एक के लिए देष को एकजुट करने का कार्य किया। आज, वह राष्ट्र के स्वतंत्रता इतिहास में एक महान व्यक्तित्ववाले व्यक्ति के रूप में खड़े हंै, जिसने राष्ट्र निर्माण में अपना अहम योगदान दिया था। देष भर में की गई एक यात्रा के माध्यम से यहजानने को मिला कि किस प्रकार से गांधीजी के दर्षन और समानता, अहिंसा के समावेष एवं भाईचारे की मान्यताओं से जुड़े सिद्धांतों कीस्थाई छाप भारतीय सामाजिक ताने-बाने में रची-बसी है। जैसे-जैसे हम राष्ट्रपिता से जुड़े स्मारक देखते जाते हैं, वे साक्ष्य के रूप में हमेंइस बात से अवगत कराते हैं कि नेता की विरासत किस प्रकार से अबतक विद्यमान है।


गांधी की भारत वापसी
जनसैलाब 9 जनवरी, 1915 को गांधीजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा का स्वागत करने के लिए बाॅम्बे के अपोलो बंदरगाह (अब मुंबई) परउपस्थित थे। उनका जलपोत एस. एस. अरेबिया बंदरगाह पर आ चुका था। गांधीजी ने अपने संबंधी मगनलाल को एक पत्र लिखा, जिसमेंउन्होंने वर्णन किया, ‘‘बंबई के निकट पहुंचकर जब मैंने समुद्रीतट देखा तब मेरी खुषी का ठिकाना नहीं रहा।’’ लगभग 22 साल हो गए थेजब उत्सुक युवा वकील अपने करियर में एक सुअवसर पाने की तलाष में अपने घर से बाहर निकल गए थे। अब जब वह लौट आए थे,तब वह एक अनुभवी सत्याग्रही बन चुके थे, जो अपने समय के सबसे महान नेताओं में से एक के रूप में प्रतिष्ठित थे।

पोरबंदर
बंबई में थोड़ा समय व्यतीत करने के पष्चात, गांधीजी अपनी जन्मस्थली पोरबंदर गए। वह और उनकी पत्नी जैसे ही ट्रेन से उतरे, उनकेदर्षनों के लिए लोगों का हुजूम उनकी ओर बढ़ा। हर कोई जानना चाहता था कि वह व्यक्ति अब कैसा दिखता है, जिसे उन्होंने इतनीख्याति मिलने से पहले इस षहर में देखा था। लोगों की धक्का-मुक्की में गांधीजी और कस्तूरबा को रास्ता नहीं मिल रहा था और वे मोटरकार तक भी नहीं जा पा रहे थे। उन्हें कार द्वारा ही अपने पैतृक घर कीर्ति मंदिर जाना था। कीर्ति मंदिर 200 वर्षों पुराना भवन परिसर था,जहां 1869 में गांधीजी का जन्म हुआ था।वर्तमान में, उन लोगों के लिए एक प्रकार की वेदी है जो बापू के पद्चिह्नों और उनकी विचारधाराओं का अनुसरण करते हैं।


विषाल आंगन,एक खुली छत और लोहे की ग्रिड की खिड़कियों के साथ चैकोर आकार की हवेली, युवा गांधी के संस्मरणों और चित्रों से सुसज्जित है।दीवार पर एक चित्र टंगा हुआ है, जिसके नीचे ‘सात साल के गांधीजी’ लिखा हुआ है। उस चित्र में एक लड़का जैकेट पहने हुए है औरउसके सिर पर गोल टोपी भी है (जिसे बाद में विष्व विख्यात गांधी टोपी के नाम से जाना गया)। उस बालक के माथे पर एक टीका औरउसके गले में एक चेन है। इनके अलावा कस्तूरबा गांधी की भी अनेक तस्वीरें हैं जिनमें दोनों हंसी-मज़ाक करते हुए दिखाया गया है।

सन 1944 में गांधीजी को जेल से रिहा करने की याद में, पोरबंदर के लोगों ने हवेली के साथ ही एक मंदिर का निर्माण किया। अब इसमंदिर को एक छोटे से संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें उन वस्तुओं को प्रदर्षित किया गया है, जिनका उपयोग गांधीजीकिया करते थे तथा कुछ पुरानी तस्वीरें भी रखी गई हैं। इस संग्रहालय में एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनके द्वारा लिखित अथवा उनकेदर्षन व सिद्धांतों से संबंधित किताबें सहेजकर रखी गई हैं। गांधीजी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए विष्व के अनेक महान नेता इसमंदिर में जा चुके हैं।

राजकोट
गांधीजी ने अपना सत्याग्रह आंदोलन आरंभ करने से पहले देष भर की यात्रा की थी। उन्होंने ये यात्राएं रेल द्वारा की ताकि वह भारत केसामाजिक ताने-बाने को भली-भांति समझ सकें। जैसा कि उन्होंने अपने मित्र, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले सेवादा किया था, गांधीजी ने स्वयं को ‘प्रोबेषन पीरियड‘ पर रखा और राजकोट से अपनी यात्रा आरंभ की, जहां उन्हांेने दीवान के पुत्र केरूप में (सन 1881 से 1887 तक) अपना बचपन बिताया था।
उनका निवास स्थान काबा गांधी नो डेलो, आज एक विषेष विरासत स्थल बनगया है। इस भवन में विद्यमान छायाचित्रों से कोई भी महात्मा गांधी के जीवन से संबंधित घटनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकता है। इनचित्रों के नीचे हिंदी अथवा गुजराती में कैप्षन लिखे हुए हैं। यह भवन सौराष्ट्रीय षैली में बना हुआ है तथा इसमें मेहराबादार द्वार व आंगनहै। गांधीजी की व्यक्तिगत वस्तुओं के प्रतिरूप तथा अन्य अनेक प्रकार की चीज़ें यहां पर रखी हुई हैं। हथकरघा के प्रति गांधी के जुनून कोयहां एक बुनाई स्कूल के रूप में प्रोत्साहित किया गया है। इस स्कूल में युवा लड़कियों को सिलाई और कढ़ाई का प्रषिक्षण प्रदान कियाजाता है। 

बनारस (वाराणसी)
गांधीजी के ‘प्रोबेषन पीरियड‘ की समाप्ति के बाद 1916 में उन्हें बनारस हिंदू विष्वविद्यालय (बीएचयू) की आधारषिला रखने के लिएवाराणसी बुलाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि उनके द्वारा दिए गए ओजस्वी भाषण ने भारत में उनके राजनीतिक आंदोलन की षुरुआतका ही संकेत दिया था।

उन्होंने कहा था, ‘‘यह हमारे लिए बहुत अपमान और षर्म की बात है कि मैं इस षाम को इस महान कॉलेज की छाया में, पवित्र षहर में,अपने देषवासियों को एक ऐसी भाषा में संबोधित करने के लिए बाध्य हूं जो मेरे लिए एक विदेषी भाषा है।
’’जब इस षांत षहर ने, जब उनके द्वारा बेधड़क होकर बोले गए ये षब्द सुने तब सभी को ऐसा प्रतीत हुआ कि आंदोलन का आह्वान करदिया गया है और एक बड़े नेता का आगमन हुआ है।

वर्तमान में, जब कोई इस विष्वविद्यालय परिसर में टहलता है तब किसी को भी गांधी की आभा का अहसास हो सकता है।बाद में, सन 1936 में गांधीजी ने इस षहर में प्रसिद्ध भवन - भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया, जो मील का पत्थर साबित हुआ। इसअनोखे मंदिर में किसी देवी-देवता की पूजा-अर्चना नहीं की जाती अपितु भारत माता की स्तुति होती है। इसमें संगमरमर से बनी भारतमाता की एक प्रतिमा है, जो भारत की छवि का संकेत देती है। इससे यही आभास होता है कि भारत माता सभी धर्मों को मानने वालों,नेताओं तथा स्वतंत्रता सेनानियों की देवी हैं। इसमें संगमरमर से बना अखंड भारत का भौगोलिक मानचित्र भी है, जिसमें मैदानों, पर्वतों एवंसमुद्र को दिखाया गया है।

अहमदाबाद
षांतिनिकेतन (पष्चिम बंगाल) में कुछ समय ठहरने के बाद, जहां पर वह नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर से मिले थे, गांधीजी 1915में सीधे अहमदाबाद गए। वहां पर उन्होंने साबरमती नदी के किनारे पर सामुदायिक भवन का निर्माण किया, जिसका नाम साबरमती आश्रमरखा। यह आश्रम अंग्रेज़ों के विरुद्ध उनके अहिंसावादी संघर्ष का मुख्य केंद्र हुआ करता था।
यहां पर आज भी उनकी आभा का प्रत्यक्ष आभास होता है और जो यहां पर घूमने आता है, उसे गांधीजी की विचारधारा एवं उल्लेखनीयजीवन से रूबरू होने का सुअवसर मिलता है। उनके अहिंसावादी संघर्ष से संबंधित दस्तावेज़ यहां पर विद्यमान हैं, साथ ही दांडी मार्च काभी उल्लेख मिलता है जो गांधीजी ने साबरमती आश्रम से आरंभ किया था। ये सभी कुछ गांधी स्मारक संग्रहालय में प्रदर्षित करके रखागया है। यहां पर एक पुस्तकालय भी है, जिसमें गांधीजी द्वारा लिखे गए पत्र रखे गए हैं, जो उन्होंने विभिन्न नेताओं को लिखे थे। इनमेंसे अधिकतर पत्रों को लिखने के लिए रद्दी के काग़ज़ों का उपयोग किया गया था। इस आश्रम के निकट ही हृदयकुंज स्थित है, जहां परगांधीजी रहा करते थे। विनोबा-मीरा कुटीर, जो मेहमानों के लिए था तथा यहां पर प्रार्थनाघर व एक भवन भी था, जिसका उपयोग कुटीरउद्योग के लिए प्रषिक्षण हेतु किया जाता था।
जब आश्रम की स्थापना हुई तब तक गांधीजी ने धोती एवं पादुकाएं धारण करनी आरंभ कर दी थीं, जो उनकी पहचान बन गई थीं (उन्होंनेअपनी प्रतिष्ठा को दरकिनार करते हुए निर्धन लोगों के साथ घुलमिलकर रहने के लिए ही इन्हें धारण किया था)। जल्दी ही, उन्होंने कताईएवं बुनाई सीख ली थी और खादी का उत्पादन आरंभ कर दिया था। खादी कातना एक अहम अभियान बन गया।

बाॅम्बे (मुंबई)
गांधीजी जिस क्षण भारत पहुंचे, लगभग छः राष्ट्रीय आंदोलनों के षुभारंभ के बाद, बॉम्बे 1917 और 1934 के बीच उनकी अधिकांषगतिविधियों का केंद्र बना रहा। गांधीजी इस षहर में स्थित मनी भवन में ही ठहरा करते थे, जो दो-मंज़िला इमारत थी। सन 1955 मेंविरासत की धरोहर इस भवन को महात्मा गांधी के स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था जो भारत की स्वतंत्रता की कहानीका इतिहास बयां करता है। उल्लेखनीय है कि, 1921 मंे महात्मा गांधी ने चार दिवसीय उपवास यहीं पर रखा था ताकि मुंबई में षांतिबनी रह सके। मनी भवन में गांधीजी चरखे के साथ ठहरे थे और वह वहां पर खादी कातते थे। रोचक तथ्य यह है कि सविनय अवज्ञा,सत्यग्रह, स्वदेषी, खादी एवं खिलाफ़त जैसे आंदोलनों का आरंभ यहीं से किया गया था। इस इमारत के बड़े बरामदों में घूमते हुए हमें उनराजनीतिक संघर्षों के बारे में जानने को मिलेगा, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किए गए थे। इस संग्रहालय के फोटो संभाग मेंसूचनाओं का भंडार व्याप्त है, जिससे भारतीय इतिहास की व्यापक जानकारी मिलती है।

पुणे
सन 1942 में, जब ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन आरंभ किया गया तब गांधीजी एवं कस्तूरबा को उनके सचिव महादेव देसाई के साथ पुणेके आगा ख़ान पैलेस में नज़रबंद कर दिया गया था। इस महलनुमा हवेली का निर्माण सन 1892 में सुल्तान मोहम्मद षाह आगा ख़ान तृतीयने करवाया था। यही वह स्थान था, जहां पर दिल का दौरा पड़ने से बा (कस्तूरबा गांधी इसी नाम से प्रसिद्ध थीं) और देसाई का निधन होगया था। संगमरमर से बनीं उनकी प्रतिमाएं अब भी यहां पर बनी हुई हैं।

वर्तमान में, इस भव्य भवन में इतालवी वास्तुषिल्प तथा ऐसे बाग देखने को मिलते हैं, जिनमें मूर्तियां लगी हुई हैं। अब यह गांधी राष्ट्रीयस्मारक सोसाइटी का मुख्यालय है। खादी, जो हाथ से बना प्राकृतिक सूत होता है, जिसे महात्मा गांधी अपने चरखे से कातते थे, यह आज भी यहां पर बनाई जाती है। 2.5 मीटर लंबा गोलाकार गलियारा जो बेहद प्रसिद्ध है, महल के चारों ओर स्थित है। यहां पर अनेक छायाचित्रहैं जिनमें महात्मा गांधी और स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित अन्य नेताओं का चित्रण किया गया है। इनमें से सबसे प्रभावषाली चित्र वह है,जिसमें गांधीजी को अंग्रेज़ों के विरुद्ध किए गए मार्च का नेतृत्व करते हुए दिखाया गया है। आगंतुक यहां पर गांधीजी द्वारा किए गए कार्योंका भी अवलोकन कर सकते हैं, जो उन्होंने सेवाग्राम में किया था। यह यहां से 8 किलोमीटर दूर वर्धा गांव में स्थित है। इस महल की अन्यविषेषताओं में वह कक्ष भी है, जिसमें गांधीजी कस्तूरबा के साथ रहा करते थे। उस कक्ष में उनका चरखा, पादुकाएं एवं अन्य वस्तुएं रखीहुई हैं।

दिल्ली
वह जनवरी का सर्द दिन था। 78 वर्षीय महात्मा गांधी बिरला हाउस से चलकर उस बाग की ओर जा रहे थे, जहां पर प्रार्थना सभा काआयोजन किया गया था। वह अपनी दो भतीजियों के कंधों का सहारा लेकर लोगों से मिल रहे थे। तभी एक व्यक्ति उनके करीब आया,जिसने नीली पेंट एवं खाकी कमीज़ पहन रखी थी, उसने बापू का अभिनंदन किया। नमस्ते कहने के बाद उस व्यक्ति ने पिस्तौल निकालीऔर बेहद करीब से गांधीजी पर तीन गोलियां दाग दीं। बाद में उसकी पहचान नाथूराम गोडसे के रूप में हुई।गांधीजी के निधन पर देष ने एक महान नेता को खो दिया था।
उनकी एक भव्य समाधि देष की राजधानी में राजघाट पर बनाई गई।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार 31 जनवरी, 1948 को यहीं पर किया गया था। आज भी लाखों लोग गांधीजी को श्रद्धांजलिदेने यहां पर आते हैं। यमुना नदी के किनारे पर स्थित राजघाट हरियाली से भरा हुआ है।

इस लाॅन में अनेक पेड़ लगे हुए हैं। गांधीजीकी समाधि उनके सादे व्यक्तित्व को ही प्रतिबिंबित करती हुई प्रतीत होती है। जहां उनके पार्थिव षरीर को अग्नि दी गई थी, वहां परकाले पत्थर का एक बड़ा सा चबूतरा बनाया गया है। उसके चारों ओर संगमरमर की बाड़ लगाई गई है। इस पर ‘हे राम’ लिखा हुआ है,जो उनके अंतिम षब्द थे। इसके साथ ही एक अखंड ज्योति जलती रहती है। इस मैदान के आसपास जो वृक्ष लगे हैं वे किसी न किसीमषहूर हस्ती द्वारा लगाए गए हैं। इनमें महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहाॅवर, आॅस्ट्रेलिया के पूर्व प्रध्ाानमंत्री गफ़ वाइटमैन इत्यादि षामिल हैं। इन वृक्षों पर एक पट्टी लगी है जिन पर इन नेताओं का नाम भी लिखा है। इस महान नेता कोश्रद्धांजलि देने जाने से पहले आगंतुकों को जूते उतारने होते हैं। जिस दिन बापू का निधन हुआ था, उसकी याद में प्रत्येक षुक्रवार को एकअनुष्ठान किया जाता है। इसके निकट ही दो संग्रहालय भी स्थित हैं जो गांधीजी को समर्पित हैं।

यद्यपि यह दिन एक व्यक्ति के अंत को चिह्नित करने की दिषा में मनाया जाता है, किंतु यह एक किंवदंती की षुरुआत का प्रतीक था, जोनिरंतर चलती रहेगी।
 

महात्मा के पदचिह्न (यात्रा कार्यक्रम)

# शीर्षक यूआरएल
1 (पोरबंदर-राजकोट-अहमदाबाद-वडोदरा-सूरत) यात्रा कार्यक्रम -1
2 (पोरबंदर-राजकोट-भावनगर-अहमदाबाद यात्रा कार्यक्रम -2
3 (पोरबंदर-राजकोट-भावनगर-अहमदाबाद-सूरत) यात्रा कार्यक्रम -3
4 (दिल्ली-जयपुर-आगरा-दिल्ली)
यात्रा कार्यक्रम -4
5 (मुंबई-पुणे)
यात्रा कार्यक्रम -5
6 (कोलकाता)
यात्रा कार्यक्रम -6
7 (मदुरै-कन्याकुमारी)
यात्रा कार्यक्रम -7
8 (12 दिन / 11 रातें)
यात्रा कार्यक्रम -8
9 (कोलकाता-बिहार)
यात्रा कार्यक्रम -9
10 (कोलकाता-उड़ीसा)
यात्रा कार्यक्रम -10
11 (दिल्ली-शिमला) यात्रा कार्यक्रम -11