भारतीय राजवंश के अवशेष देश भर के विभिन्न किलों तथा महलों में देखे जा सकते हैं। राजस्थान के पहाड़ी किलों से लेकर ग्वालियर, गोलकुंडा और दिल्ली तक के दुर्जेय किलों तक भारतीय इतिहास गौरवपूर्ण रहा है जो इन भव्य रचनाओं के भीतर स्थित है।

आगरा का किला एक अन्य प्रसिद्ध संरचना है जिसका निर्माण 1565 ई. में मुगल सम्राट अकबर ने कराया था। यह भव्य बलुआ पत्थरों से निर्मित ढाँचा है जो मुगल साम्राज्य की भव्यता को प्रदर्शित करता है। 2.5 किलोमीटर लम्बी दीवारों से घिरे इस शाही नगर की गढ़ी की आकृति अर्द्धचन्द्राकार है, इसकी पूर्वी दीवार यमुना नदी से सटी हुई है।

जयपुर से केवल 11 किमी दूर भव्य अम्बर का किला (आमेर का किला) एक पहाड़ी पर स्थित है और ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई पहरेदार शहर की रक्षा में तैनात है। महाराजा मानसिंह प्रथम द्वारा 1592 में निर्मित यह किला राजपूत और मुगल वास्तुकला का मिश्रित नमूना है जिसमें शानदार महल, मन्दिर और अनेक सजीले दरवाजे हैं। लाल बलुआ पत्थरों और सफेद संगमरमर से निर्मित यूनेस्को का यह विश्व धरोहर स्थल समृद्धि और भव्यता का साकार चित्र है जो रेगिस्तानी पृष्ठभूमि और ढालू पहाड़ियों पर स्थित है।

ऊँची पर्वत चोटी पर स्थित अजेय कुम्भलगढ़ दुर्ग अतीत के चित्र की भाँति दिखाई देता है। 3,600 फीट की असमतल पहाड़ियों पर स्थित इस दुर्ग को दूर से भी देखा जा सकता है। विश्व की दूसरी सबसे लम्बी लगभग 38 किमी की दीवार वाला कुम्भलगढ़ दुर्ग यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल है।

अजेय राजपूतों के सर्वाधिक गौरवशाली प्रतीकों में से एक प्रतीक चित्तौड़गढ़ का किला है। 180 मीटर ऊँची पहाड़ी पर लगभग 240 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह किला भव्य दृश्य प्रस्तुत करता है।

जीवन्त थार मरुस्थल में पीले बलुआ पत्थरों से निर्मित एक भव्य संरचना जैसलमेर का किला है। त्रिकूट पहाड़ी (तीन चोटियों वाली पहाड़ी) पर स्थित यह किला लगता है जैसे मरुस्थल से निकलकर सीधे उठ खड़ा हुआ हो और इसका चमकदार पत्थरों वाला अग्रभाग भव्य थार के विस्तार की छाप प्रस्तुत करता है। इस अद्भुत वास्तुकला के जादू का आनन्द सूर्यास्त के समय तब उठाया जा सकता है जब सम्पूर्ण किला प्रदीप्त हो जाता है मानो यह डूबते हुए सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर रहा हो जिसके कारण इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में स्थान दिया गया है।

3 किमी लम्बे पठारी विस्तार में स्थित नीचे पसरे हुए शहर को निहारते हुआ मनमोहक ग्वालियर के किले को देखे बिना नहीं रहा जा सकता है। 8वीं शताब्दी की अद्भुत वास्तुकला वाला ग्वालियर का यह गगनचुम्बी किला शहर के एक किनारे से शहर की रक्षा करता हुआ प्रतीत होता है। अनेक शताब्दियों तक सैकड़ों राजाओं के आश्रय स्थल रहे इस किले के भीतर समय के साथ-साथ महलों, मन्दिरों एवं अन्य भवनों का निर्माण किया गया और यह विभिन्न राजवंशों के प्रभाव को प्रदर्शित करता है।

हैदराबाद से लगभग 11 किमी दूरी पर स्थित 16वीं शताब्दी का गोलकुंडा किला भारत के प्रसिद्ध किलों में से एक है। पूर्व के गोलकुंडा राज्य की राजधानी, यह किला इस क्षेत्र में गोलकुंडा का केन्द्रबिन्दु था और इस प्रकार यह अजेय बनाया गया था। इसके पूर्व का गौरव तथा इसकी भव्यता अब भी इसे घेरने वाले मजबूत परकोटों तथा किलेबन्दी में देखी जा सकती है। 120 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह ऐसे प्रेक्षणीय स्थान पर बना है जहाँ से शत्रुओं को आसानी से देखा जा सकता था। आज इस ऊँचे स्थान से पर्यटक आसपास के क्षेत्रों का अवलोकन कर सकते हैं और दूर क्षितिज तक के दर्शन किये जा सकते हैं।