नृत्य अभिव्यक्ति का एक बोलता हुआ माध्यम है। शास्त्रीय और पारंपरिक नृत्य से लेकर लोकनृत्य और आदिवासियों के नृत्य तक, भारत में नृत्य के कई प्रकार प्रचलित हैं। इनमें से 8 प्रकार कुछ ज़्यादा ही जाने पहचाने हैं, जो पौराणिक और धार्मिक इतिहास में डूबे हुए हैं और हिन्दू नाट्य शास्त्र में उन की चर्चा की गई है। यह नृत्य के प्रकार हैं: भरत नाट्यम (तमिल नाडु), सत्रीया (असम), मणिपुरी (मणिपुर), कथकली (उत्तरी और पश्चिमी भारत), ओडिसी (उड़ीसा), कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), कथकलीली तथा मोहिनी अट्टम (केरल)। 

भरतनाट्यम

यह नृत्य का सब से प्राचीन प्रकार है तथा बाक़ी सभी नृत्य इसी से प्रेरित हैं। भरत नाट्यम तमिल नाडु का वह नृत्य है जो मंदिरों में किया जाता था, यह नृत्य का एक सुंदर प्रकार है, जिसकी प्रस्तुतियाँ जादुई प्रभाव छोडती हैं और इसका संबंध धार्मिक पुस्तकों और पौराणिक कथाओं से है। फुर्तीली और जटिल लेकिन सफाई से की जाने वाली चेष्टाएँ, नर्तकों की चमकीली पोशाकें और सर से पाँव तक पहने जाने वाले भारी भरकम गहने दर्शकों की नज़रों को बांध लेते हैं। लगातार बदलने वाली लय और उस के साथ नर्तकों का तालमेल आप को स्तब्ध कर देता है।

भरतनाट्यम

सत्रीया

इसकी प्रस्तुति में नृत्य और नाटक का मिश्रण होता है और इसका मूल असम में है। सत्रीया नृत्य की रचना 15वीं सदी में की गई थी और तब से ले कर आज तक यह एक जीवित परंपरा है। यह साधारणतया मठों में, धार्मिक भोज में प्रस्तुत किया जाता है जहाँ नर्तक सुंदर पट रेशम की पोशाक पहन कर और परंपरागत असमी गहनों से सज कर, बांसुरी हारमोनियम और वाइलिन के सुर के साथ और झांझ और ढ़ोल की ताल से कदम ताल मिलाते हुए मन मोह लेने वाला समां बांध देते हैं। 

मणिपुरी

मणिपुरी नृत्य की उत्पत्ति मणिपुर में हुई है। इस दिव्यता से परिपूर्ण नृत्य में कला अपनी बुलंदी पर पहुंच जाती है और देखने वालों को एक आध्यात्मिक अनुभव कराती है। यह नृत्य को अधिकतर राधा-कृष्ण की गाथाओं के इर्द गिर्द बुना जाता है, इस मंद, शांत और शालीन नृत्य में नर्तक मंद स्वर में गाए जाने वाले गीतों पर सुंदर और शालीन चेष्टाएँ करते हैं। इस नृत्य में नर्तकियाँ एक विशेष तरह का घाघरा पहनती हैं, जिसे सरोंग कहते हैं, जबकि नर्तक धोती और पगड़ी पहनते हैं। 

कथक

कहा जाता है कि इस नृत्य की उत्पत्ति बार्डों ने की, जो उत्तर भारत के क्षेत्रों की यात्राएँ किया करते थे। कथक में धार्मिक कथाएँ और किंवदंतियाँ समाहित होती हैं, जिन्हें ताल में पिरो कर प्रस्तुत किया जाता है, तथा इसमें पाँव की ताल, हाथों तथा आँखों की विभिन्न चेष्टाओं के माध्यम से और चेहरे के हाव भाव द्वारा कहानी की बारीकियों को उजागर किया जाता है। कथक नृत्य में नर्तकों की दक्षता देख कर दर्शक मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। नर्तकियाँ लंबा कामदार लहंगा, कामदार चोली और चुनरी में सजी होती हैं। 

ओडिसी

ओडिसी की प्रस्तुति में नर्तकियाँ चमकदार रंग की रेशमी साड़ी में तथा चांदी के गहने और घुँघरू पहनते हैं, यह नृत्य उड़ीसा में उत्पन्न हुआ है। इस नृत्य में पौराणिक और लोक गाथाओं का समावेश होता है। ओडिसी में प्रभावशाली चेष्टाएँ और सुंदर हाव-भाव शामिल होते हैं। 

कुचीपुड़ी

मुख्यतः भगवान श्री कृष्ण के जीवन की घटनाओं का प्रदर्शन करने वाला नृत्य कुचीपुड़ी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का नृत्य है और यह मुख्यतः मंदिर में प्रस्तुत किया जाने वाला नृत्य है। इसमें नर्तकी तह दार साड़ी पहनती है, जो एक पंखे की तरह खुलती है, जब कि नर्तक धोती पहनता है। नर्तक सुंदर गहनों से सजावट करते हैं और झांझ, बांसुरी, वीणा और तंबूरे की सुर-ताल पर नृत्य करते हैं। 

कथकली

केरल में उत्पन्न होने वाली यह शास्त्रीय नृत्य नाटिका है। मान्यता है कि कथकली नृत्य की लगभग 300 साल पुरानी शैली है। यह भूतकाल की कहानियों को प्रदर्शित करता है जिस में महाकाव्य, वीरगाथाएँ और पौराणिक कहानियाँ समाहित होती हैं, नर्तकों का श्रंगार वास्तव में अद्भुत होता है और जब संगीत और ताल का श्रद्धा और विश्वास से मिलन होता है तो देखने वालों पर विस्मयकारी प्रभाव पड़ता है। इस नृत्य में भाग लेने वाले नर्तक जटिल वस्त्रों में अलंकृत होते हैं और अपने चेहरे की हर मांसपेशी से भाव प्रदर्शन करते हैं और अपनी उँगलियों के घुमाव और होंटों के कंपन से विशेष प्रभाव पैदा करते हैं, जो इस नृत्य की पहचान है। 

मोहिनीअट्टम

मोहिनीअट्टम नृत्य का शालीन, सुंदर और स्त्री सुलभ प्रकार है, जिसकी उत्पत्ति केरल में हुई है। नृत्य के इस प्रकार ने अपना नाम 'मोहिनी' से लिया है जो भगवान विष्णु का स्त्रीलिंग अवतार है। यह नृत्य साधारणतया एक अकेली नर्तकी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तथा इस नृत्य प्रकार में संगीत के साथ सुंदर भावों और चेष्टाओं द्वारा भावनात्मक नाटिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं। इसके गीत आमतौर पर संस्कृत और मलयालम का मिश्रण होते हैं। 

नृत्य महोत्सव

भारत में और भी सैंकड़ों लोक नृत्य हैं जो देश की विविधता भरी संस्कृति में जन्मे और पनपे हैं और जो इस पूरे क्षेत्र की उत्सव धर्मिता की आत्मा हैं। इन सुंदर नृत्य कलाओं का अनुभव करने का सब से उचित तरीका कई नृत्य महोत्सव हैं, जो विभिन्न जगहों पर आयोजित किए जाते हैं। खजुराहो नृत्य महोत्सव दर्शकों को देश के बेहतरीन नर्तकों तथा नृत्य के हर तरीके को देखने का अवसर प्रदान करता है। यह महोत्सव खजुराहो के मंदिर की जटिल कारीगरी की पृष्ठभूमि में आयोजित किया जाता है। यह वह अवसर है जब उत्कृष्ट नर्तक मंदिर की प्रस्तर मूर्तियों को अपने नृत्य की दक्षता और लालित्य से दर्शकों के सामने जीवंत कर देते हैं। 

तमिल नाडु का मामल्‍लपुरम नृत्य महोत्सव भी आँखों के लिए एक विलक्षण नज़ारा प्रस्तुत करता है, जो 8वीं शताब्दी में निर्मित शोर मंदिर की पृष्ठभूमि में भारतीय नृत्य कला की तहें खोलता है। 5 दिनों का नाट्यांजलि महोत्सव भी तमिल नाडु में आयोजित किया जाता है। यह महोत्सव महाशिवरात्रि के शुभ दिन पर आरंभ होता है और इसकी पृष्ठभूमि में 12वीं सदी का चिदम्बरम मंदिर होता है। 

एक अन्य अवसर जहाँ हर पर्यटक को ज़रूर भ्रमण करना चाहिए, उड़ीसा का कोणार्क नृत्य महोत्सव है, जो अपने दिव्य सूर्य मंदिर के लिए विख्यात है। महोत्सव के दौरान कोणार्क कलाकारों और उन के क़द्रदानों से भर जाता है। इस महोत्सव में शास्त्रीय ओडिसी नृत्य के साथ ही साथ स्थानीय नृत्यों, जैसे गोटीपुआ तथा मयूरभंज छऊ नृत्य की प्रस्तुतियाँ होती हैं, इसे किसी भी पर्यटक को देखना ही चाहिए। 

ओड़ीसा में ही मुक्तेश्वर नृत्य महोत्सव भी इसी नाम के 10वीं सदी पुराने मंदिर में होता है। यह भव्य महोत्सव आँखों के लिए एक दर्शनीय नज़ारा होता है। निशागांधी नृत्य महोत्सव जो केरल में आयोजित किया जाता है, वह भी एक ऐसा अवसर है, जिसे एक बार देखना ही चाहिए। यहाँ नृत्य के लगभग सभी प्रकारों को आमंत्रित और प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन कथकलीली महोत्सव में सब से ज़्यादा भीड़ इकट्ठा होती है, और इसको ज़रूर देखना चाहिए। 

इन के अलावा और भी बहुत से लोक कला के प्रकार हैं जो या तो शुद्ध नृत्य के प्रकार हैं या वह नृत्य और नाटक का सम्मिश्रण हैं और अपनी बोलती हुई प्रस्तुतियों के लिए लोकप्रिय हैं, जैसे महाराष्ट्र की लावणी, पंजाब का भांगड़ा, गुजरात का गरबा, असम का बिहू, झारखंड का झूमैर और ऐसे ही और भी बहुत से हैं।