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यह उत्सव केरल के कुन्नूर ज़िले में कोट्टियूर मंदिर में मनाया जाता है। यह आयोजन 28 दिनों तक चलता है। पहाड़ों से घिरा कुन्नूर एक सुंदर स्थल है। यहां के दो मंदिरों अक्कारा कोट्टियूर तथा इक्कारा कोट्टियूर में यह महोत्सव मनाते हैं।

कैसे मनाया जाता है यह पर्व?
श्रद्धालुगण इन मंदिरों में शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं। पास ही में बहने वाली बावेली नदी से लाए गए पत्थरों से एक मंच बनाया जाता है। उसी मंच पर शिवलिंग को स्थापित किया जाता है। यह मंच मणिथरा कहलाता है। इस मंच के ऊपर भक्तगण छप्पर की एक झोंपड़ी बना देते हैं। तत्पश्चात धार्मिक अनुष्ठान आरंभ किए जाते हैं। वे नेत्तयम करते हैं अर्थात शिवलिंग पर घी या मक्खन अर्पित किया जाता है। वायानाड के मुथिरेरिकुवा से एक तलवार भी मंगवाई जाती है। पुजारी शिवलिंग को आलिंगनबद्ध करता है, इस अनुष्ठान को रोहिणी आराधना कहते हैं। इसके बाद एलानीर वायप्पु नामक धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। इसमें भेंट स्वरूप शिवलिंग पर नारियल चढ़ाए जाते हैं। इस उत्सव का समापन एलानीरथम नामक आयोजन से होता है। इसमें मंदिर का प्रमुख पुजारी शिवलिंग पर नारियल अर्पित करता है।