गंगा नदी के पूर्वी किनारे, वाराणसी के तुलसी घाट के विपरीत रामनगर किला स्थित है। यह किला 18वीं सदी में लाल पत्थर से मुग़ल शैली में बनाया गया। इसका निर्माण काशी के महाराजा बलवंत सिंह ने करवाया था और यह बनारस के महाराजा का पैतृक आवास था। यह किला वाराणसी से 30 मिनट की दूरी पर स्थित है। नदी के किनारे बना यह किला देखने में शानदार लगता है। किले में एक मंदिर महाभारत के रचयिता वेद व्यास तथा एक अन्य लोकप्रिय मंदिर हनुमान को समर्पित है। परिसर में स्थित संग्रहालय में राज परिवार से संबंधित वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यह संग्रहालय प्राचीन पांडुलिपियों व ग्रंथों, पुराने फर्नीचर, कारों, शाही पोशाकों, ज़री वस्त्र से सुसज्जित पालकियों, हाथी पर बैठने की चांदी से बनी काठियां के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर एक शस्त्रागार भी है जिसमें बर्मा (म्यांमार), जापान तथा कुछ अफ्रीकी देशों से लाई गई तलवारें एवं पुरानी बंदूकें हैं तथा खगोलीय घड़ी भी है। इस घड़ी से माह, सप्ताह, दिन, समय एवं अन्य खगोलीय विवरण जैसे गृहों, चंद्रमा तथा सूर्य की स्थिति का पता चलता है। इस घड़ी का निर्माण 19वीं सदी में वाराणसी के राजा के दरबार में किया गया था।  

इस किले का इतिहास भी बहुत रोचक है एवं इसकी दीवारों पर मौजूद शिलालेख 17वीं सदी के हैं। ऐसा कहा जाता है कि वेद व्यास यहां पर रहा करते थे तथा उन्होंने रामनगर में ही तपस्या की थी। इसलिए उनके सम्मान में यह किला बनवाया गया था। अक्टूबर-नवम्बर में एक माह तक आयोजित होने वाले रामलीला महोत्सव के दौरान यह किला जीवंत दिखाई देता है, जिसमें महाग्रंथ रामायण से संबंधित घटनाओं का मंचन किया जाता है।

अन्य आकर्षण

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