खगोल विज्ञान में उज्जैन शहर ने अतुलनीय भूमिका निभाई है। यहां खगोलिकी के पंच सिद्धान्त और सूर्य सिद्धान्त पर काम होता रहा है। भारतीय खगोलविदों का कहना है कि कर्क रेखा को उस शहर से गुजरना चाहिए, जो चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से देश का ग्रीनविच है। उज्जैन में वेधशाला का निर्माण आमेर (1614-1621) के शासक मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा किया गया था। राजा जयसिंह को अरबी से संस्कृत में यूक्लिड और टॉलेमी की रचनाओं के अनुवाद का श्रेय दिया जाता है। इस वेधशाला का निर्माण हिंदू ज्योतिषियों और विद्वानों को उनके अध्ययन और अनुसंधान में मदद करने के उद्देश्य से, विशेष रूप से खगोलीय सारणियों के मिलान, सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की गति संबंधी गणना के लिए किया गया था। यह 18 वीं शताब्दी में भारत के राजाओं द्वारा बनवाए गए पांच वेधशालाओं में से एक है। अन्य चार वेधशालाएं दिल्ली, मथुरा, जयपुर और वाराणसी में हैं। राजा जयसिंह द्वारा यहां स्थापित किए गए मूल वाद्ययंत्रों में सुंदरियाल, नाड़ी वलय यंत्र, पारगमन यंत्र, दिग्यांश यंत्र और शंकु यंत्र शामिल हैं। कई उपकरणों के कार्य एवं महत्व को बताने के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जगह-जगह तख्तियां और नोटिस बोर्ड लगे हैं। इसे वेधशाला कहा जाता है। इस वेधशाला के उपकरणों का आज भी अनुसंधान के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह वेधशाला एक वास्तुशिल्प चमत्कार है और इस शहर का महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है।

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