देशभर के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक, महाकालेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित है। यह उज्जैन के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। महाकालेश्वर मंदिर के भूमिगत कक्ष में लिंगम (भगवान शिव का प्रतीकात्मक रूप) का निवास है और ऐसा माना जाता है कि यहां वे स्वयंभू या स्वयं प्रकट हुए हैं। वर्तमान समय में यह मंदिर पांच मंजिला है। 18 वीं शताब्दी में यहां मध्य मार्ग का निर्माण किया गया था। भूमिजा, चालुक्य और मराठा वास्तुकला की शैलियों में निर्मित, यह मंदिर वास्तुशिल्प का एक चमत्कार है। इसके पैदल मार्ग संगमरमर के हैं जो 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सिंधियों द्वारा बनवाए गए थे। इस मंदिर के तीन मंजिलों पर क्रमशः महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर और नागचंद्रेश्वर का निवास है। नागचंद्रेश्वर लिंग का दर्शन भक्तों के लिए केवल नाग पंचमी के अवसर पर सुलभ है। परिसर में एक कुंड (तालाब) भी है जिसे कोटि तीर्थ कहा जाता है, जिसे सर्वतोभद्र शैली में बनाया गया है। कुंड की सीढ़ियों से मंदिर तक के मार्ग पर आपको मंदिर की मूल संरचना की कई छवियां दिखाई देंगी, जो परमारों (9 वीं और 14 वीं शताब्दी) की अवधि की भव्यता को दर्शाती हैं। रुद्र सागर के पास स्थित, मंदिर में एक विशेष भस्म आरती होती है, जहां पर सुबह 4 बजे से ही भक्तों का जमावड़ा लग जाता है। यहां की हवा में एक उत्साहपूर्ण कशिश होती है और जलते हुए सभी दीपक एक अद्भुत महक एवं आश्चर्यजनक दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

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