स्क्रीन प्रिंट

स्क्रीन प्रिंटिंग एक खूबसूरत कला है। इसमें सजावटी पैटर्न बनाने के लिए किसी महीन कपड़े पर स्याही या पेंट डाला जाता है। अलग-अलग तरह के कपड़ों पर इसका अभ्यास किया जा सकता है। स्क्रीन प्रिंटिंग ने वर्ष 1960 के दशक में कला की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। इस तकनीक में धातु से बने एक सांचे का प्रयोग किया जाता है और उसके बाद इससे स्क्रीन प्रिंट बनाए जाते हैं। कपड़े के सभी किनारों को ठीक करने के बाद, मनचाहे परिणाम के लिए कपड़े पर प्रकाश संवेदी रसायन (फोटोसेन्सिटिव केमिकल) लगाया जाता है। इस प्रक्रिया को परंपरागत रूप से सेरिग्राफी कहा जाता है। पहले इस तरह की छपाई के लिए रेशम का उपयोग किया जाता था लेकिन अब इसमें सिंथेटिक धागों का अत्यधिक उपयोग होता है। सामान्य रूप से, जाल को पॉलिएस्टर से बनाया जाता है। कपड़े (कपड़े के ऊपरी भाग) पर स्याही फैलाने के लिए एक जाल का उपयोग किया जाता है। हालांकि ऐसे भी क्षेत्र होते हैं जिनको ब्लॉकिंग स्टेंसिल के उपयोग से अभेद्य बनाया जाता है। इसके बाद ब्लेड को पूरी स्क्रीन पर घुमाया जाता है ताकि खुला जाल स्याही से भर जाए। ब्लेड को जब पूरे स्क्रीन पर उल्टा घुमाया जाता है तो स्क्रीन कपड़े को छूने लगती है। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराने से कपड़े पर रंग और डिजाइन छप जाती है। इसी तरह से बहुरंगी चित्र भी कपड़ों पर प्रिंट किया जा सकता है।

स्क्रीन प्रिंट

बाघ प्रिंट

मध्य प्रदेश के बाघ शहर के कारीगर, इस प्रकार की छपाई अपने हाथों से करते हैं। वे वस्त्रों को बार-बार धोकर, रंगते हैं और फिर उस पर छपाई करते हैं। सबसे पहले, कपड़े को पूरी रात पानी में भिगोया जाता है और फिर देर तक धूप में सुखाया जाता है। फिर इसे अरंडी के तेल, समुद्री नमक और पानी से भरे बड़े टब में डुबोया जाता है। उसके बाद, इसे पानी से धोया जाता है, इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराया जाता है। अंत में, कपड़े को रंगा जाता है। रंगाई और छपाई में उपयोग होने वाले रंग, फूलों, फलों और बीजों से निकाले जाते हैं। लाल रंग फिटकरी और इमली के बीजों के मिश्रण को उबालने से प्राप्त किया जाता है, जबकि काले रंग को लोहे, गुड़ और पानी के मिश्रण से प्राप्त किया जाता है जिसे एक महीने तक संग्रहीत किया जाता है।

छपाई में उपयोग किए जाने वाले लकड़ी के कुछ ब्लॉक 300 साल से भी अधिक पुराने हैं। उन पर उकेरे गए डिजाइन वन्यजीव, प्रकृति, प्राचीन बाघ गुफा के चित्र और वास्तुकला से प्रेरित हैं। कॉटन, सिल्क, टसर, कॉटन-सिल्क, जूट और क्रेप सहित अन्य कपड़ों पर बाघ प्रिंटिंग की जा सकती है।

बाघ प्रिंट

भैरवगढ़ प्रिंट

उज्जैन से कुछ किलोमीटर की दूरी पर भैरवगढ़ शहर है। भैरवगढ़ बाटिक प्रिंट की प्राचीन कला के लिए प्रसिद्ध है, जो सुंदर डिजाइनों के लिए विख्यात है। माना जाता है कि भारत में रंगाई तकनीक का प्रयोग 500 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है। इस तकनीक में पिघले हुए मोम के उपयोग से फूल और पत्तियां बनाई जाती हैं। इस तकनीक से वस्त्रों पर पीले और लाल रंगों में पत्तियां, फूल, सर्पिलिंग क्रीपर्स और जटिल डूडल बनाये जाते हैं।

इस प्रक्रिया में, गर्म मोम के टब को गैस पर धीरे-धीरे गर्म किया जाता है, और फिर रेत से ढके टेबल पर ले जाया जाता है, जहां कपड़े पर मोम से पैटर्न खींचा जाता है। धातु की एक छड़ पर नारियल की भूसी बांधकर बनाई गई एक स्टाइलस के साथ, शिल्पकार कपड़े पर मोम का पैटर्न निकालते हैं। पुराने समय में, पैटर्न आलू और बैंधेज से बने ब्लॉकों से बनाए जाते थे। इन ब्लॉकों को बाद में लकड़ी से बदल दिया जाता है। जब मोम कपड़े पर सूख जाता है, तो इसे रंग दिया जाता है। जिस भाग पर मोम लगाया जाता है, वहां डाई का रंग नहीं चढ़ता है। अलग-अलग रंगों के पैटर्न बनाने के लिए इसे बार-बार दुहराया जा सकता है। दुहराने पर ये धीरे-धीरे हल्के रंग से गहरे रंग में बदलने लगते हैं। कहा जाता है कि लगभग 400 साल पहले मुगल काल में गुजरात और राजस्थान के बैटिक प्रिंटिंग के विशेषज्ञ कारीगर यहां आकर बस गए। भैरवगढ़ मध्य प्रदेश में बैटिक प्रिंटिंग केंद्र तभी बना।

भैरवगढ़ प्रिंट

बाटिक प्रिंट

बाटिक प्रिंट में टिकाऊ रंगाई के लिए गर्म और पिघली हुई मोम का उपयोग किया जाता है। इसमें ऐसी जगहों पर लाइनें या डॉट्स खींचे जाते हैं, जहां आप परिधान पर रंग को फैलने से बचाना चाहते हैं। ब्रश या पेन से उन स्थानों पर मोम लगाई जाती है, जहां आमतौर पर एक स्पाउटिंग टूल होता है जिसे तंजंटिंग / कैंटिंग कहा जाता है। बड़े और व्यापक पैटर्न के लिए कठोर ब्रश का उपयोग किया जाता है। एक और ड्राइंग तकनीक भी है, जिसमें ऐसी जगहों पर स्टैम्प का उपयोग किया जाता है, जहां पैटर्न व्यापक और बहुत सरल होते हैं। कपड़े के दोनों किनारों पर पैटर्न तैयार करने की आवश्यकता होती है। कपड़े को पहले धोया जाता है और फिर मलेट से पीटा जाता है। पैटर्न तैयार किए जाने के बाद, कपड़ों को पसंदीदा रंग में रंगा जाता है। फिर कपड़ों पर लगे मोम को गर्म पानी से हटाया जाता है। प्रतिरोध को हटाने के बाद, परिधान का मूल रंग रंगे हुए, रंगीन क्षेत्र के उलट होता है। चूंकि मोम रंग का प्रतिरोध करता है, इसलिए अंतिम चरण में वस्त्र सृजनात्मक और जटिल पैटर्नों वाला एक सुंदर वस्त्र होता है। इच्छित रंग पाने के लिए आवश्यक्तानुसार इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है। पारंपरिक डिज़ाइन को बाटिक ट्यूलिस कहा जाता है-बाटिक से लिखे गए आध्यात्मिक छंद। बाटिक प्रिंटेड कपड़े उज्जैन में बहुत प्रसिद्ध हैं।

बाटिक प्रिंट

बंधेज प्रिंट

यह एक जटिल प्रिंट है। इसमें कपड़े में कहीं पर भी गांठ बांध दिया जाता है। इसके बाद इस कपड़े को अलग-अलग रंग और पैटर्न देने के लिए रंगों में डुबोया जाता है। कपड़े के बांधने के ढंग के अनुसार कई तरह की छपाई कपड़ों पर हो जाती है। इसमें चन्द्रकला, बावन बाग, शिकरी जैसे विभिन्न प्रकार के पैटर्न प्रमुख हैं। बंधेज टाई और डाई आर्ट का सबसे पुराना रूप है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, बाणभट्ट के हर्षचरित के समय पहली बंधेज प्रिंट की साड़ी पहनी गई थी।

इस प्रिंट के प्रमुख रंगों में लाल, पीले, हरे, नीले और काले रंग हैं। लाल रंग का उपयोग नव विवाहित जोड़े की अच्छी किस्मत के किया जाता है! यद्यपि यहां के रंगरेजों ने प्राकृतिक और मानव निर्मित रंगों के साथ विभिन्न प्रयोग किया है। वे ज्यादातर इस कला में ऑर्गेनिक रंगों का उपयोग करते हैं। इस राज्य की महिलाओं में बांधेज प्रिंट की साड़ियां बहुत लोकप्रिय हैं। इसकी गुणवत्ता बहुत ही उत्तम है। ये साड़ियां हल्की, हवादार और सुंदर होती हैं।

बंधेज प्रिंट