प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने प्राचीन शहर उज्जैन के बारे में कहा है, "पृथ्वी को स्वर्ग बनाने के लिए यह शहर स्वर्ग से उतर आया है। "मध्य प्रदेश राज्य के बीचों-बीच स्थित, यह प्राचीन शहर गलियों से भरा हुआ है। इन गलियों के हर कोनों पर मंदिर ही मंदिर दिखाई पड़ते हैं, इसीलिए उज्जैन का एक और नाम "मंदिरों का शहर" भी पड़ा। हिंदू धर्म के सात पवित्र स्थलों में से एक, उज्जैन पवित्र क्षिप्रा (शिप्रा) नदी के तट पर बसा है; जो दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समूह है। यहां प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। सिंहस्थ कुंभ के दौरान यह शहर एक दुल्हन की तरह शानदार तरीके से सजाया जाता है, तथा दुनिया भर से लाखों भक्त इस विश्वास के साथ पवित्र क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाने आते हैं कि यह उन्हें पापों से मुक्त कर देगी। हिंदुओं का यह भी मानना है कि ऐसा करने से उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति यानि की मोक्ष प्राप्त होगा।

चूंकि यह शहर विभिन्न शासकों के अधीन रहा है, इसीलिए इसकी समृद्ध विरासत के जीवंत कलाओं एवं शिल्पों में विविधता और अद्वितीयता है। यह परंपरागत रूप से छपे वस्त्रों जैसे कि बाटिक, बाघ, भैरवगढ़ प्रिंट और स्क्रीन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां से इन शिल्प शैलियों में से किसी भी शैली में छपी साड़ियों को ख़रीदा जा सकता है।

उज्जैन का इतिहास 600 ईसा पूर्व पुराना है। उस समय उज्जैन में सैकड़ों की संख्या में मंदिर थे। एक समय में यह शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य के भी अधीन था। यहां तक कि सम्राट अशोक ने भी यहां शासन किया था। ऐसा कहा जाता है कि एक बार अशोक को उसके पिता बिन्दुसार ने किसी विद्रोह को दबाने के लिए उज्जैन भेजा था। विद्रोह तो सफलतापूर्वक दबा दिया गया लेकिन इस कोशिश में युवराज अशोक घायल हो गए थे। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा युवराज अशोक का इलाज किया गया। इसी दौरान अशोक पहली बार बौद्ध धर्म के सम्पर्क में आए, और बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।